1 November 2025

WISDOM -------

 

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  -----' ईर्ष्या  एक  प्रकार  की  मनोविकृति  है  l  इससे  भौतिक  क्षेत्र  में  विफलता   और  आध्यात्मिक  क्षेत्र  में  अवगति  प्राप्त  होती  है  l  जो  इस  मानसिक  बीमारी  से  ग्रस्त  हो  गया  , समझा  जाना  चाहिए  कि   उसने   अपनी  प्रगति  के  सारे  द्वार  बंद  कर  लिए  l  "    जिसके  पास  सभी  भौतिक  सुख -सुविधाएँ  है  ,  वह  भी  अपने  जीवन  से  संतुष्ट  नहीं  है  l  उसे  दूसरे  को  सुखी  देखकर  ईर्ष्या  होती  है   l  जो  बहुत  ईर्ष्यालु  हैं  , उनकी  बुद्धि  काम  करना  बंद  कर  देती  है   l  उन्हें  अपनी  आगे  की  तरक्की  का  कोई  रास्ता  नहीं  दीखता   इसलिए  वे  अपनी  सारी  ऊर्जा  दूसरों  की  जिंदगी  में  झाँकने  में  लगा  देते  हैं   l  कोई  खुश  है  तो  क्यों  खुश  है  ?  कोई  हँस  रहा  है  तो  क्यों  ?   वे   हर  संभव  तरीके  से  दूसरे  को  कष्ट  देने  का  हर  संभव  प्रयास करते  हैं  l  ऐसा  करने  से  ही  उनको  सुकून  मिलता  है  l  ईर्ष्या  का  एक  दुःखद   पहलू  भी  है  l  व्यक्ति  जिससे  ईर्ष्या  करता  है  ,  उसे  नीचा  गिराने  के  हर  संभव  प्रयास  भी  करता  है   लेकिन  उसका  प्रतिद्वंदी  उस  पर  कोई  ध्यान  ही  न  दे   और  अपनी  प्रगति  के  पथ  पर  आगे  बढ़ता  जाए   तो   ईर्ष्यालु  व्यक्ति  का  अहंकार  चोटिल  होता  है  ,  घाव  की  भांति  रिसने  लगता  है  l   उसके  सारे  प्रयास  असफल  हो  गए  l  आचार्य जी  ने  हमें  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  कि  संसार  से  मिलने  वाले  मान -अपमान , प्रशंसा -निंदा  की  परवाह   न  करो  , उस  पर  कोई  प्रतिक्रिया  न  दो  ,  अपने  पथ  पर  आगे  बढ़ो  l