यह  जीवन  मात्र  एकाकी  संभव  नहीं  ।  जीवन  व्यापार  में  ईश्वर  को  साझीदार  बनाने  की  दूरदर्शिता  अपनायी  जा  सके  तो  व्यक्ति  हर  द्रष्टि  से  नफे  में  रह  सकता  है  । ईश्वर  की  सामर्थ्य  अनंत  है,  उसकी  अनुकम्पा  से  मिल  सकने  वाली  सम्पदाएँ  भी  असीम  हैं  ।  ईश्वर  हमसे  बदले  में  कुछ  नहीं  चाहता,  सतत  देते  रहना  चाहता  है  |  बस,  उनकी  एक  ही  शर्त  है  कि  हम  निरंतर  आत्मशोधन  कर,  व्यक्तित्व  को  परिष्कृत  कर  उनके  सेवक  होने  योग्य  पात्रता  अर्जित  कर  सकें  । नि:स्वार्थ  भाव  से  जीवन  के  विभिन्न  कर्म  करते  हुए  परमात्मा  का  स्मरण  करने  से  विकार  दूर  होते  हैं  । 
केशव चन्द्र रामकृष्ण परमहंस के बड़े तार्किक शिष्य थे । वे रामकृष्ण से भी तर्क करते रहते और अधिकांश समय यही सिद्ध करने की कोशिश करते की ईश्वर कहां है ? किसने देखा है ?
एक दिन तर्क इतने जोरों से चल पड़ा कि शिष्यों की भीड़ इकट्ठी हो गई । रामकृष्ण की प्रत्येक बात को केशव चन्द्र काट देते थे | किंतु देखते ही देखते बात पलट गई ।
केशव चन्द्र बिलकुल नास्तिकों जैसे वक्तव्य देने लगे । रामकृष्ण उठे और नाचने लगे ।
अब केशव चन्द्र को बेचैनी होने लगी कि क्या करें ?
यदि रामकृष्ण परमहंस प्रतिवाद करें तभी वाद-विवाद आगे बढ़े किंतु वे तो हारकर केशव चन्द्र की बातें सुनकर नाचने लगते । केशव चन्द्र के सभी तर्क चुक गये, उन्होंने रामकृष्ण से पूछा-----
" तो फिर ! आप भी मानते हैं और मेरी बातों से सहमत हैं कि ' ईश्वर नहीं है ' । "
रामकृष्ण ने कहा ---- " तुम्हें न देखा होता तो शायद मान भी लेता किंतु तुम्हारी जैसी विलक्षण प्रतिभा जब पैदा होती है तो बिना ईश्वर के कैसे होगी ? तुम्हें देखकर प्रमाण और पक्का हो गया कि ईश्वर जरुर है । ईश्वर निराकर है, वह तो प्रतिभा, ज्ञान, प्रज्ञा के रूप में ही हो सकता है । "
कहते हैं, केशव चन्द्र उस दिन तो उठकर चले गये, किंतु फिर लौटे तो पक्के आस्तिक होकर और रामकृष्ण के ही होकर रहे ।
' असंभव का संभव होना ही ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण है । '
केशव चन्द्र रामकृष्ण परमहंस के बड़े तार्किक शिष्य थे । वे रामकृष्ण से भी तर्क करते रहते और अधिकांश समय यही सिद्ध करने की कोशिश करते की ईश्वर कहां है ? किसने देखा है ?
एक दिन तर्क इतने जोरों से चल पड़ा कि शिष्यों की भीड़ इकट्ठी हो गई । रामकृष्ण की प्रत्येक बात को केशव चन्द्र काट देते थे | किंतु देखते ही देखते बात पलट गई ।
केशव चन्द्र बिलकुल नास्तिकों जैसे वक्तव्य देने लगे । रामकृष्ण उठे और नाचने लगे ।
अब केशव चन्द्र को बेचैनी होने लगी कि क्या करें ?
यदि रामकृष्ण परमहंस प्रतिवाद करें तभी वाद-विवाद आगे बढ़े किंतु वे तो हारकर केशव चन्द्र की बातें सुनकर नाचने लगते । केशव चन्द्र के सभी तर्क चुक गये, उन्होंने रामकृष्ण से पूछा-----
" तो फिर ! आप भी मानते हैं और मेरी बातों से सहमत हैं कि ' ईश्वर नहीं है ' । "
रामकृष्ण ने कहा ---- " तुम्हें न देखा होता तो शायद मान भी लेता किंतु तुम्हारी जैसी विलक्षण प्रतिभा जब पैदा होती है तो बिना ईश्वर के कैसे होगी ? तुम्हें देखकर प्रमाण और पक्का हो गया कि ईश्वर जरुर है । ईश्वर निराकर है, वह तो प्रतिभा, ज्ञान, प्रज्ञा के रूप में ही हो सकता है । "
कहते हैं, केशव चन्द्र उस दिन तो उठकर चले गये, किंतु फिर लौटे तो पक्के आस्तिक होकर और रामकृष्ण के ही होकर रहे ।
' असंभव का संभव होना ही ईश्वर की उपस्थिति का प्रमाण है । '
 
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