धर्म  के  अनेक  स्वरुप  होते   हैं  l इसमें  कोई  संदेह  नही  है  कि सत्य,  न्याय, दया,  परोपकार,  पवित्रता  आदि  धर्म  के  अमिट  सिद्धांत  हैं  और  इनका  व्यक्तिगत  रूप   से  पालन  किये  बिना  कोई  व्यक्ति  धर्मात्मा  कहलाने  का  अधिकारी  नहीं  हो  सकता  । 
मेजिनी के समय में आस्ट्रिया और फ्रांस ने इटली के विभिन्न भागों पार अधिकार कर रखा था l
देश को पराधीनता के अभिशाप से मुक्त करने के लिए मैजिनी ने ' युवा इटली ' नामक संस्था की स्थापना की | अपने निर्वासन का बहुत सा समय मेजिनी को इंग्लैंड में बिताना पड़ा और गरीबी के कारण बहुत कष्ट सहने पड़े । एक दिन ऐसा भी आया जाब उन्हें अपना पुराना जूता और कोट भी गिरवी रखना पड़ा । इसके बाद जब कोई भी चीज शेष ना रही तो उन्हें उन समितियों से कर्ज लेना पड़ा जो चालीस-पचास रुपया सैकड़ा सूद लेती थीं और मनुष्य का खून तक चूस लेती थीं । सूद न मिलने पर बदन का कपड़ा उतरवा लेतीं और एक चीथड़ा तक नहीं छोडती । इन समितियों का दफ्तर अक्सर शराबखानो मे होता था । मेंजिनी जैसे प्रसिद्ध विद्वान और नेता कों घोर दरिद्रता के कारण इन समितियों के जाल में फँसा रहना पड़ा । इन विपत्तियों का जिक्र करते हुए मेजिनी ने लिखा है----- " मैं नहीं चाहता कि इन विपत्तियों का वर्णन करूं, परन्तु उनका उल्लेख इसलिए करता हूँ कि कोई भाई इन विपत्तियों में मेरी तरह फंस जाये तो उसे इन लेख से सांत्वना मिले । मेरा चित तो यह चाहता है कि मैं यूरोप की माताओं से विनम्र निवेदन करूँ कि--- कोई नहीं कह सकता कि कल उस पर कैसी बीतेगी | ऐसी दशा उचित यही है कि वे अपनी संतान को लाड़-प्यार में न पालें, उनको भोग-विलास का अभ्यस्त न बनायें, वे उन्हें कठिनाइयों का अभ्यस्त बनायें जिससे उन्हें भविष्य में कष्ट पड़ने पर असह्य न हो ।
मेजिनी के समय में आस्ट्रिया और फ्रांस ने इटली के विभिन्न भागों पार अधिकार कर रखा था l
देश को पराधीनता के अभिशाप से मुक्त करने के लिए मैजिनी ने ' युवा इटली ' नामक संस्था की स्थापना की | अपने निर्वासन का बहुत सा समय मेजिनी को इंग्लैंड में बिताना पड़ा और गरीबी के कारण बहुत कष्ट सहने पड़े । एक दिन ऐसा भी आया जाब उन्हें अपना पुराना जूता और कोट भी गिरवी रखना पड़ा । इसके बाद जब कोई भी चीज शेष ना रही तो उन्हें उन समितियों से कर्ज लेना पड़ा जो चालीस-पचास रुपया सैकड़ा सूद लेती थीं और मनुष्य का खून तक चूस लेती थीं । सूद न मिलने पर बदन का कपड़ा उतरवा लेतीं और एक चीथड़ा तक नहीं छोडती । इन समितियों का दफ्तर अक्सर शराबखानो मे होता था । मेंजिनी जैसे प्रसिद्ध विद्वान और नेता कों घोर दरिद्रता के कारण इन समितियों के जाल में फँसा रहना पड़ा । इन विपत्तियों का जिक्र करते हुए मेजिनी ने लिखा है----- " मैं नहीं चाहता कि इन विपत्तियों का वर्णन करूं, परन्तु उनका उल्लेख इसलिए करता हूँ कि कोई भाई इन विपत्तियों में मेरी तरह फंस जाये तो उसे इन लेख से सांत्वना मिले । मेरा चित तो यह चाहता है कि मैं यूरोप की माताओं से विनम्र निवेदन करूँ कि--- कोई नहीं कह सकता कि कल उस पर कैसी बीतेगी | ऐसी दशा उचित यही है कि वे अपनी संतान को लाड़-प्यार में न पालें, उनको भोग-विलास का अभ्यस्त न बनायें, वे उन्हें कठिनाइयों का अभ्यस्त बनायें जिससे उन्हें भविष्य में कष्ट पड़ने पर असह्य न हो ।
 
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