30 September 2025

WISDOM ------

   प्राचीन  काल  के  हमारे  ऋषि  त्रिकालदर्शी  थे  l  उन्होंने  जो   रचनाएँ  की  उन  का    प्रत्येक  युग  के  अनुरूप   भिन्न -भिन्न  अर्थ  था  l  जैसे  हमारे  महाकाव्य  हैं  --रामायण  और  महाभारत  l  इनके  विभिन्न  प्रसंगों  में   कलियुग  की  भयावह  परिस्थितियों  में  स्वयं  के  व्यक्तित्व  को   सुरक्षित  और  विकसित   करने    के  लिए   उचित  मार्ग  क्या  है  ,  इसे  गूढ़  अर्थ  में  समझाया  गया  है  l    रामायण  का  एक  प्रसंग  है  ----- बाली  और  सुग्रीव  दो  भाई  थे  ,  दोनों  ही  बहुत  वीर  थे  लेकिन  बाली  को  यह  वरदान  प्राप्त  था  कि  कोई  भी  उसके  सामने  आकर  उससे  युद्ध  करेगा  तो  उसकी  आधी  शक्ति  बाली  को  मिल  जाएगी  l  इस  कारण  किसी  से  भी  युद्ध  हो  बाली  की  ही  विजय  होती  थी  l  किसी  कारण  से  बाली  और  सुग्रीव  दोनों  भाइयों  में  विवाद हो  गया  ,  युद्ध  की  नौबत  आ  गई  l  बाली  को   जीतना    असंभव  था  , अत:  सुग्रीव  पराजित  होकर  ऋष्यमूक  पर्वत  पर  छिपकर  रहने  लगा  l  बाली  की  यह  विशेष  योग्यता  त्रेतायुग  में  उसका  वरदान  थी  लेकिन  इस  कलियुग  में  जब  कायरता   और  मानसिक  विकृतियाँ  अपने  चरम  पर  हैं  ,  तब  ऐसी  विशेष  योग्यता  प्राप्त  लोग  अपनी  शक्ति  का  दुरूपयोग  कर  रहे  हैं  l  शक्ति  के  दुरूपयोग  के  कारण  यह  वरदान  नहीं  ,  समाज  के  लिए  अभिशाप  है  और  इस  युग  में  इन्हें  कहते  हैं '  एनर्जी  वैम्पायर  "  l  हमारे  जीवन  में  अनेकों  बार  हमारा  सामना  ऐसे  लोगों  से  होता  है   , जिनसे  बात  करके  भी  ऐसा  महसूस  होता  है   जैसे  बिलकुल  थक  गए  ,  शरीर  में  कोई  शक्ति  नहीं  रही  ,  निराशा  सी  आने  लगती  है  l  ऐसे  ही  लोग  एनर्जी  वैम्पायर  होते  हैं   जो  अपनी  बातों  से  या  किन्ही  अद्रश्य  शक्तियों  की  मदद  से   अपने  विरोधियों  को   या  जिससे  वे  ईर्ष्या  और  प्रतियोगिता  रखते  हैं   उसे  विभिन्न  तरीके  से  कष्ट  देते  हैं  , परेशान  करते  हैं  और  उसकी  एनर्जी  को  खींचकर  स्वयं  बड़ी  उम्र  तक  भी  भोग विलास  का  जीवन  जीते  हैं  l  इस  युग  में  तंत्र -मन्त्र   विज्ञान  के  साथ  मिलकर   इतना  शक्तिशाली   हो  गया  है    की  अद्रश्य  शक्तियों  की  मदद  से   एनर्जी  की  सप्लाई  और  व्यापार  भी  संभव  है  l  ऐसे  वैम्पायर  समाज  में  सभ्रांत  लोगों  की  तरह  शान  से  रहते  हैं  l  जिसकी  एनर्जी  को  वे  खींच  लेते  हैं   उसका  शरीर  बिना  किसी  बीमारी  के  सूख  जाता  है  ,  उम्र  से  पहले  बुढ़ापा  दीखने  लगता  है  ,  कोई  दवा  फायदा  नहीं  करती  l  ये  एनर्जी  वैम्पायर   अपने  धन  और  शक्ति  के  बल  पर   अमर  रहना  चाहते  हैं  l  ऐसे  लोगों  को  कोई  सुधार  नहीं  सकता  l  इस  कथा   की  यही  शिक्षा  है  कि   जब  इन्हें  पहचान  लें  तो  ऐसे  लोगों  से  सुग्रीव  की  तरह  दूर  रहे  ,  ईश्वर  की  शरण  में  रहें  l  शक्ति  का  दुरूपयोग  करने  वालों  का  न्याय  ईश्वर  ही  करते  हैं  l  

29 September 2025

WISDOM ------

   हमारे  पुराणों  की कथाएं   मात्र  मनोरंजन  नहीं  हैं  , उनमें  गूढ़  अर्थ  छिपा  रहता  है  l  उस  अर्थ  को  समझ  कर  ,  उसके  अनुसार  आचरण  कर  पारिवारिक , सामाजिक , राजनीतिक  सभी  क्षेत्रों  में  सुधार  संभव  है  ----  एक  कथा  है  ----- पांडवों  ने    अभिमन्यु  के  पुत्र  परीक्षित  को  राजगद्दी  सौंपकर  वनगमन  किया  l  महाराज  परीक्षित  के  काल  में  ही  धरती  पर  कलियुग  का  आगमन  हुआ  l  एक  बार  महाराज  परीक्षित  शिकार  खेलने  वन  में  गए  , राह  भटक  गए  ,  उन्हें  बहुत  प्यास  लगी  l   वहां  एक  आश्रम  था  l  राजा  बड़ी  तेजी  से  आश्रम  गए  और  ऋषि  ने  पानी  माँगा  l  ऋषि  समाधि  में  थे  , उन्होंने  सुना  नहीं  l  कलियुग  के  प्रभाव  के  कारण  राजा  की  भी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई   और  उन्होंने  ऋषि  के  गले  में  एक  मृत  सांप  डाल  दिया  ,  और  महल  वापस  लौट  आए  l  ऋषि  का  पुत्र  जब  आश्रम   में  आया  तो  उसने  अपने  पिता  के  गले  में  मृत  सांप  देखा  तो  उसे  बहुत  क्रोध  आया  l  कलियुग  सभी  की  बुद्धि  भ्रष्ट  कर  देता  है  ,  ऋषि  पुत्र  ने  बिना  सोचे -समझे   हाथ  में  जल  लेकर   यह  श्राप  दिया  कि  जिसने  भी  मेरे  पिता  के  गले  में  मृत  सर्प  डाला  है  , उसे  आज  से  सांतवें  दिन  तक्षक  नाग  डस   लेगा  l  श्राप  कभी  विफल  नहीं  होता  समाधि  से  जागने  पर  ऋषि  ने  ही  राजा  को  सलाह  दी  कि  वे  शुकदेव  मुनि   से  भागवत  कथा  सुने  , इससे  उन्हें  मोक्ष  प्राप्त  होगा  l  ऐसा  ही  हुआ  और  सांतवे  दिन   महाराज  परीक्षित  को  मोक्ष  मिलने  के  बाद  उनके  पुत्र  जनमेजय  सिंहासन  पर  बैठे  l  उन्हें  जब  यह  सब  मालूम  हुआ  कि  तक्षक  नाग  के  डसने  से  उनके  पिता  की  मृत्यु  हुई  है  , तो  उन्हें  बहुत  क्रोध  आया  और  उन्होंने   ऋषि -मुनियों  की  मदद  से  ' सर्पयज्ञ  '  का  आयोजन  किया  , जिससे  उस  यज्ञ  में  सब  सर्पों  की  आहुति  दी  जाए  ,  और  इस  तरह  से  संसार  से  यह  प्रजाति  ही  समाप्त  हो  जाए  l  यज्ञ  शुरू  हुआ   और  मन्त्रों  के  साथ   आहुती  में  दूर -दूर  से  सर्प  आकर  उस  हवन  कुंड  में  गिरने  लगे  l  चारों  ओर  हाहाकार  मच  गया  ,  जब  तक्षक  को  पता  चला   तब  वह  भाग  कर  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  की  शरण  में  गया ,  इंद्र  ने  उसको  शरण  दी   और  वह  उनके  सिंहासन  से  लिपट  गया  l  इधर  जब  तक्षक  के  नाम  से  आहुति  के  लिए  मन्त्र  उच्चारण  किया  गया  तब  वह  मन्त्र  इतना  शक्तिशाली  था  कि  इंद्र  के  साथ  ही   सिंहासन  समेत  तक्षक  नाग  यज्ञ  मंडप  की  ओर  जाने  लगा  l  सारे  देवता  वहां  एकत्रित  हो  गए  , जन्मेजय  को  बहुत  समझाया  कि  जो  हुआ  वह  विधि  का  विधान था  ,  यह  यज्ञ  बंद  करो  ,  देवराज  इंद्र  ने  उसे  शरण  दी  है  l  इस  तरह  इंद्र  की  शरण  लेने  से  तक्षक  नाग  की  रक्षा  हुई  l   ------यह  कथा  स्पष्ट  रूप  से  इस  बात  का  संकेत  करती  है   कि  परिवार  और  समाज  के  जहरीले  ,  अपराधी   इसी  तरह  किसी  शक्तिशाली   का   संरक्षण  पाकर   पलते  हैं  और   अपने  जहर  से  परिवार  को  समाज  को  दूषित  करते  हैं   और   अपने  को  संरक्षण  देने  वाले  का  जीवन  भी  संकट  में  डाल  देते  हैं   l  शक्तिशाली  और  पद -प्रतिष्ठा  वालों  के  लिए  भी  संकेत  है   कि  अपनी  गलत  इच्छाओं  के  लिए  ऐसे  जहरीले  लोगों  से  मित्रता  न  करें  ,  वे  तो  डूबेंगे  ही  साथ  में  उन्हें  भी  ले  डूबेंगे ,  अब  देवता  नहीं  आएंगे  बचाने  के  लिए   l  

26 September 2025

WISDOM ------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  ज्ञान  चक्षुओं  के  आभाव  में   हम  परमात्मा  के  अपार  दान  को  देख  और  समझ  नहीं  पाते   और  सदा  यही  कहते   रहते  हैं  हमारे  पास   कुछ  नहीं  है  l  पर  यदि  जो  नहीं  मिला  है   उसकी  शिकायत  करना  छोड़कर   जो  मिला  है  ,  उसकी  महत्ता  को  समझें   तो  मालूम  होगा  कि  जो  मिला  है   वह  अद्भुत  है  l  "    ईश्वर  ने  जो  दिया  है   उसे  न  देख  पाने  के  कारण  ही  व्यक्ति  के  मन  में  दूसरों  के  प्रति  ईर्ष्या -द्वेष  का  भाव  पनपता  है   प्रत्येक  व्यक्ति  की  मानसिक  स्थिति  भिन्न -भिन्न  होती  है  l  कोई  ईर्ष्या -द्वेष  के  कारण   छल , कपट , षड्यंत्र , धोखा  जैसे  कायरतापूर्ण  अपराधिक  कार्यों  में  संलग्न  हो  जाता  है  l  कहीं  कोई  डिप्रेशन  में  चला  जाता  है , इतनी  निराशा  कि  आत्महत्या  को  तत्पर  हो  जाता  है  क  जीवन  जीने  की  कला  का  ज्ञान  न  होने  के  कारण  ही   ऐसी  स्थिति  निर्मित  होती  है  l  प्राचीन  काल  में  हमारे  गुरुकुल  थे  , वहां  कोई  राजकुमार  हो  या  गरीब  सबको  ज्ञान -अर्जन  के  साथ    जीवन  कैसे  जिया  जाता  है  यह  भी  सिखाया  जाता  था  l  वहां  से  अध्ययन  के  उपरांत  वे  विद्यार्थी   शारीरिक  और  मानसिक  रूप  से  इतने  मजबूत  , इतने  सक्षम  हो  जाते  थे  कि  बड़ी  से  बड़ी  विपरीत  परिस्थिति  उन्हें  विचलित  नहीं  कर  सकती  थी  l  लेकिन  अब  केवल  पुस्तकीय  ज्ञान  है  ,  इससे  विवेक  जागृत   नहीं  होता  l  इस  कलियुग  में  अजीबोगरीब  स्थिति  है  --- कहीं  स्वार्थी  तत्व    युवा  पीढ़ी  की   ऊर्जा  का  उपयोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  करते  हैं  ,  एक  तरीके  से  अपना  गुलाम  बना  लेते  हैं  l  ऐसी  भी  स्थिति  है  कि  शिक्षा  ही  कुछ  ऐसी  दो  कि  वे  यही  न  समझ  पायें  कि  जागरूकता  क्या  होती  है  ,  दिशाहीन  कर्म  करते   रहो  l  वर्तमान  स्थिति  में  न  केवल  युवा   बल्कि  प्रौढ़  और  वृद्ध  व्यक्तियों  को  भी   सही  दिशा  की  जरुरत  है   क्योंकि  ईश्वर  के  दरबार  में  पेशी  तो  अवश्य  होगी  कि  परमात्मा  ने  उन्हें   जो  विशेष  योग्यता  दी  थी    ,  उसका  उन्होंने  लोक कल्याण  के  लिए  क्या  उपयोग  किया  ?  और  इस  धरती  रूपी  बगिया  को  सुन्दर   बनाए  रखने  के  लिए  युवा  पीढ़ी  को  क्या  सिखा  कर  आए  ?  

25 September 2025

WISDOM -----

  संसार  में  अनेक  धर्म  हैं   और  सभी  धर्म  अपनी  जगह  श्रेष्ठ  हैं  ,  फिर  भी  धर्म  के  नाम  पर  झगड़े  हैं , प्रतियोगिता  है   अपने  धर्म  को  सर्वश्रेष्ठ  बताने  की  l  कलियुग  का  यही  लक्षण  है  कि  धर्म  के  नाम  पर  लड़ते -झगड़ते    धीरे -धीरे  धर्माधिकारी  स्वयं  को  दूसरे  से  श्रेष्ठ  कहलाने  के  लिए  लड़ेंगे   और  धर्म  ,  धर्म  न  रहकर  व्यापार  बन  जायेगा  l  व्यापार  लाभ  कमाने  के  लिए  किया  जाता  है   जिसमें  शोषण  हमेशा  कमजोर  पक्ष  का  होता  है   और  यह  श्रंखलाबद्ध  होता  है  l  यदि  कोई  नेता  किसी  ऐसे  धर्मगुरु  से  जुड़  जाए  जिसके  लाखों   अनुयायी  हैं  ,  तो  स्वाभाविक  है  कि  उसको  अपनी  गद्दी  पर  बने  रहने  के  लिए  उन  सबका  समर्थन  मिलेगा  l   और  उस  धर्म गुरु  को  भी  एक  छतरी  मिल  जाएगी  l  मन  तो  चंचल  होता  ही  है   जब  धन -वैभव   अति  का  है  और  छतरी  भी  मिल  गई   तो  मन  तो  कुलांचे  भरेगा  ही  ,  फिर  जो  कुछ  घटेगा   वह  समाज  देख  ही  रहा  है  l   यह  युग  मुखौटा  लगाकर  रहने  का  है  l  पाप  इतना  बढ़  गया  है  कि  मुखौटा  लगाकर  व्यक्ति  अपने  ही  परिवार  को   धोखा  देता  है  l  सामने  से  ऐसा  दिखाएंगे  कि  कितने  भगवान  के  भगत  हैं , समाजसेवी  हैं   लेकिन  उसके  पीछे  जो  कालिख  है  वो  उनकी  आत्मा  स्वयं  जानती  है  l  कई  लोगों  ने  तो  इतने  मुखौटे  लगा  लिए  हैं    कि  वे  अब  भूल  गए  कि  वे  वास्तव  में  हैं  कौन  ?   ऐसे  मुखौटों  में  सबसे  खतरनाक  साधु -संत  का  मुखौटा  है   क्योंकि  यह  गरीबों  और   इस  वेश  पर  विश्वास  करने  वालों  को  छलता  है  l  समाज  का  एक  बहुत  बड़ा  भाग  इनकी  चपेट  में  आ  जाता  है  l  इन  सब  समस्याओं  का  एक  ही  इलाज  है  कि  धर्म  सबका  व्यक्तिगत  हो  अपने  घर  में  अपने  भगवन  को  अपने  तरीके  से  पूजो   और  घर  के  बाहर  सामूहिक  रूप  से  ' मानव  धर्म  '  हो  ,  इंसानियत  ही  सबसे  बड़ा  धर्म  है  l  इन्सान  बनोगे  तभी  चेतना   परिष्कृत  होगी   अन्यथा  मनुष्य  तो  अब  पशु   और  पिशाच  बनने  की  दिशा  में  अग्रसर  है  l  

23 September 2025

WISDOM -----

   आज  संसार  की  सबसे  बड़ी  समस्या  ' तनाव ' की  है  l  यह  समस्या  अनेक   बीमारियों  और  मुसीबतों  को  जन्म  देती  है  l  सबसे  बड़ी  मुसीबत  है  नींद  न  आना  l  ईश्वर  ने  रात्रि  का  समय  निद्रा  के  लिए  बनाया  है  l  प्रात:काल  व्यक्ति  ताजगी  तभी  महसूस  करेगा  जब  उसे  रात  को  अच्छी  नींद  आए  l  गरीब  व्यक्ति  को  तो  पथरीली  जमीन  पर  भी  चैन  की  नींद  आती  है  लेकिन  दुनिया  के  ऐसे  देश  जहाँ   भौतिक  सुख -सुविधाओं  की  कोई  कमी  नहीं  है  , वहां  करोड़ों  लोग  ऐसे  हैं  जिन्हें  नींद  की  गोली  खाने  पर  भी  नींद  नहीं  आती  l  कारण  यही  है  कि   व्यक्ति  भौतिक  सुखों  के  पीछे  इतना  भाग  रहा  है  कि  वह  अध्यात्म  से  दूर  हो  गया  l  जीवन  का  संतुलन  बिगड़  गया  l  अध्यात्म  जीवन  जीने  की  कला  है  l  अध्यात्म  हमें  यही  सिखाता  है  कि  अपने  जीवन  की  बागडोर  ईश्वर  के  हाथ  में  सौंप  दो  और  निश्चिन्त  होकर  कर्म  करो  l  अपना  प्रत्येक  कर्म  ईश्वर  को  समर्पित  करो  , यहाँ  तक  कि  निद्रा  को  भी  l    श्रीदुर्गासप्तशती  में   निद्रा  को  भी  देवी  कहा  गया  है  --'              या  देवी   सर्वभूतेषु  निद्रारूपेण  संस्थिता  l  नमस्तस्यै l  नमस्तस्यै  l नमस्तस्यै नमो नम:  l '  जो  देवी  सब  प्राणियों  में  निद्रा  रूप  से  स्थित  हैं ,  उनको  बारंबार  नमस्कार  l  श्रद्धा  और  विश्वास  से  निद्रा  देवी  को  पुकारो  , वे  कभी  किसी  को  निराश  नहीं  करेंगी  l  

19 September 2025

WISDOM ------

 युग  बदलते  हैं  l  परिवर्तन  प्रकृति  का  नियम  है   l  अजीबोगरीब  घटनाएँ  देखने  को  मिलती  हैं  l   कहीं  लोगों  ने  स्वयं  को   ईश्वर  समझ  लिया  और  उस  अज्ञात  शक्ति  से  मुँह  मोड़कर   युद्ध  में  उलझ  गए  , ' मरो  और  मारो  '  पर  उतारू  हैं  l  कहीं  स्थिति  इसके  विपरीत  है   l  ईश्वर  लोगों  के  कर्मकांड  और  ढकोसलों  से  परेशान  हो  गए  ,  ईश्वर  माला , फूल , घंटी  से ---- परेशान   हो  गए  l  लोग  अपनी  बुराइयों  को  दूर  नहीं  कर  रहे , सन्मार्ग  को  भूल  गए  हैं  , तो  अब  भगवान  ने  ही  अपने  दरवाजे  बंद  कर  लिए  l  प्रकृति  माँ  परेशान  हो  गईं  l  सहन  शक्ति  की  अति  हो  गई  तो  अब  क्रोध  आना  स्वाभाविक  है  l  ' जब  नाश  मनुज  पर  छाता  है  ,  पहले  विवेक  मर  जाता  है  l '    समूचे  संसार  पर  दुर्बुद्धि  हावी  है  ,  बड़े -बड़े  लोग  जिनके  पास  दुनिया  के  सारे  सुख  हैं   लेकिन  मन  की  शांति  नहीं  है  ,  स्वयं  भी  लड़  रहे , निर्दोष  लोगों  को  अपने  अहंकार  की  खातिर  मरने  को  विवश  कर  रहे  l  दुर्बुद्धि  ने  धर्म  के  ठेकेदारों  को  भी  नहीं  छोड़ा  l  आसुरी  शक्तियां  यही  तो  चाहती  हैं   l   वर्षों  पहले  इंग्लॅण्ड  का  साम्राज्य  पूरी  दुनिया  में  था  , संसार  के  विभिन्न  देशों  में   स्वतंत्रता  के  लिए  आन्दोलन  हुए  और  साम्राज्यवाद  का  अंत  हुआ  l  यदि  किसी  एक  का  ही  सब  ओर  साम्राज्य  हो  तो   सारा  दोष  भी  उसी  के  माथे  पर  आता  है  ,  बुरा -भला  सब  सुनना  पड़ता  है  l  इसलिए  अब  आसुरी  शक्तियों  ने  नया  तरीका  खोजा  l  सारे  असुर  अब  एक  हो  गए  , संगठित  होकर   छुपकर   अपने  आसुरी  कार्य  करने  लगे  l  सब  एक  नाव  पर  सवार  हो  गए  , असली  'डॉन '  कौन  है  ?  यह  मालूम  करना  बहुत  कठिन  है  l  यह  स्थिति   परिवार  में , संस्थायों  में  , संसार  में  छोटे -बड़े  सब  स्तर  पर  है  l  जो  भी  असुरों  के  मापदंडों  से  अलग  है  ,  उस  पर   आसुरी  प्रवृति  के  लोग  गुट  बनाकर  आक्रमण  करते  हैं  , अपने  अपने  तरीकों  से  उसे  सताते  हैं  l  उन्हें  सबसे  ज्यादा  भय  अपनी  नाव  में   ' छेद '  होने  का  है  l    आसुरी  प्रवृति  ने  समूचे  संसार  को  अपनी  चपेट  में  ले  लिया  है   इसलिए  अब   भगवान   को  आना  पड़ा  है  l  गीता  का   वचन  निभाने  तो  आना  ही  पड़ेगा  l   कहीं  शिवजी  का  तृतीय  नेत्र  खुला  है ,  कहीं  परमात्मा  का  सुदर्शन  चक्र  तो  कहीं  हनुमानजी  की  गदा   प्रभावी  है  l  ईश्वर  भी  क्या  करें  ?  मनुष्य  सुधरता  ही  नहीं  है  ,  तब  यही  एक  मार्ग   है  इस  दुर्बुद्धि  को  ठिकाने  लगाने  का  l  

16 September 2025

WISDOM -----

कलियुग   में  दुर्बुद्धि  ने  धर्म  को  भी   नहीं  छोड़ा  l  धर्म  के  नाम  पर  पाखंड  है  , सभी  को  अपनी  दुकान  की  चिंता  है  l  संसार  में  इतनी  अशांति  का  कारण  यही  है  कि  अब  धर्म  और  धार्मिक  कार्य  एक  व्यवसाय  बन  गया  है  l  इस  क्षेत्र  में  सच्चे  लोगों  की  संख्या   बहुत  ही  कम  है   और  असुरता  का  साम्राज्य  बहुत  विशाल  है  l   यदि  केवल  धर्म  ही  दुनियाभर  के  दिखावे  और  आडम्बर  से  मुक्त  हो  जाये   तो  संसार  का  कल्याण  हो  सकता  है  l  हमारे  पुराणों  में  सत्संग  की  महिमा  बताने  वाली  एक  कथा  है  ---- एक  बार  देवर्षि  नारद  भगवान  विष्णु  के  पास  गए  और   बोले ---- " हे  प्रभु  !कृपा  करके  मुझे  सत्संग  की  महिमा   सुनाएँ   क्योंकि  भ्रमण  के  दौरान  लोग  मुझसे  सत्संग  की  महिमा  के  विषय  में  जानना  चाहते  हैं  l  इस  महिमा  का  वर्णन  आपसे  श्रेष्ठ  कौन  कर  सकता  है  ?  "  लोक कल्याण  की  द्रष्टि  से  नारद जी  की  इस  जिज्ञासा  को  सुनकर  भगवान  विष्णु  प्रसन्न  हुए  और  बोले ---"  सत्संग  की  महिमा   इतनी  ज्यादा  है  कि   इसकी  अनुभूति  की  जा  सकती  है   इसलिए  हे  नारद  !  तुम  यहाँ  से  कुछ  दूर  जाओ  l  वहां  एक  इमली  के  वृक्ष  पर   विविध  रंगों  वाला  गिरगिट  रहता  है  l  वह  तुम्हे  सत्संग  की  महिमा  सुना  सकता  है  l  '  नारद  जी  प्रसन्न  होकर  चल  पड़े  l  उस  वृक्ष  के  पास  पहुंचकर  उन्होंने  उस  गिरगिट  को  देखा   और  अपनी  योगविद्या  से  उस  गिरगिट  से  पूछा  --- "  क्या  तुम  मुझे  सत्संग  की  महिमा  बता  सकते  हो  ? "  नारद जी  का  यह  प्रश्न  सुनते  ही  गिरगिट  वृक्ष  से  नीचे  गिरकर  मर  गया  l  नारद जी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ  कि  उनका  प्रश्न  सुनते  ही  गिरगिट  ने  अपने  प्राण  क्यों  त्याग  दिए  l  वे  भारी  मन  से  पुन:  भगवान  विष्णु  के  पास  पहुंचे   और  सारी  घटना  सुनाई  l  भगवान  ने  कहा ---- "  कोई  बात  नहीं   l  अब  तुम  नगर  सेठ  के  घर  जाओ  l  वहां  पिंजरे  में  एक  तोता  है  , वह  सत्संग  की  महिमा  जानता  है  l  "   नारद जी  उस  सेठ  के  घर  पहुंचे  और  योगबल  से  उस  तोते  से  पूछा  ---- " सत्संग  की  क्या  महिमा  है  ? "  यह  सुनते  ही  तोते  ने  भी  अपने  प्राण  त्याग  दिए  l  अब  तो  नारद जी  बड़े  परेशान  हुए   और  भगवान  से  कहा  --- " हे  प्रभु  !  क्या  सत्संग  का  नाम  सुनते  ही  प्राण  त्याग  देना  ही  सत्संग  की  महिमा  है  ? "l  भगवान  बोले  ---- "  इसका  मर्म  तुम्हे  शीघ्र  ही  समझ  में  आएगा  l  तुम  इस  बार  राजा  के  दरबार  में  जाओ   और  उसके  नवजात  पुत्र  से सत्संग  की  महिमा  पूछो  l  नारद  जी  सोचने  लगे    कि  यदि  सत्संग  का  नाम  सुनते  ही   राजा  का  नवजात  पुत्र  मर  गया  तो  मैं  कहीं  का  नहीं  रहूँगा  l  राजा  के  कोप  का  सामना  करना  पड़ेगा  ,  पर  भगवान  का  आदेश  था  , सो  नारद जी   राज महल  पहुंचे   , वहां  पुत्र  जन्म  का  उत्सव  मनाया  जा  रहा  था  l  नारद जी  ने  योगबल  से  उस  पुत्र  से  पूछा  --- "  क्या  आप  मुझे  सत्संग  की  महिमा  सुना  सकते  हैं  ? "   नवजात  शिशु  बोला  ---- "  चन्दन  को  अपनी  सुगंध  और  अमृत  को  अपने  माधुर्य  का  पता  नहीं  होता  l  ऐसे  ही  आप  अपनी  महिमा  नहीं  जानते  l  वास्तव  में  आपके  क्षण मात्र  के  संग  से  मैं   गिरगिट  की  योनि  से  मुक्त  हो  गया   और  पुन:  आपके  दर्शन  से  मैं  तोते  की  योनि  से  मुक्त  होकर   मनुष्य  का  जन्म  मिला  l  ईश्वर  की  कृपा  से  मुझे  आपका  सान्निध्य  मिला  ,  इससे  मेरे  कितने  ही  कर्मबंधन  कट  गए  ,  कितनी  ही  योनियाँ  बिना  भोगे  ही  कट  गईं   और  मैं  मनुष्य  तन  पाकर  राजकुमार  बना  l  हे  देवर्षि  !  आप  मुझे  आशीर्वाद  दें  कि  मैं  मनुष्य  जन्म  में  उत्तम  कर्म  करके  मोक्ष  पा  सकूँ  l "    नारद जी  उसे  आशीर्वाद  देकर  भगवान  के  पास  पहुंचे  औए  उन्हें   सब  घटना  सुनाई  l  भगवान  ने  कहा -- "  जैसी  संगति  होती  है  , जीव को  वैसी  ही  गति  मिलती  है  l "   गोस्वामी  तुलसीदास जी  ने  भी  कहा  है ---- " सत्संग  से  मनुष्य  को  उचित -अनुचित  का  ज्ञान बोध  हो  जाता  है  , विवेक  जाग  जाता  है  , मनुष्य  की  प्रकृति -प्रवृत्ति  बदल  जाती  है  l "  

15 September 2025

WISDOM ------

   इस  संसार  में  आदिकाल से  ही  देवताओं  और  असुरों  में  संघर्ष  रहा  है  l  असुरों  का  एक  ही  लक्ष्य  होता  है  कि   वह  हर  संभव  प्रयास  करो  जिससे  लोगों  को  अधिकाधिक  शारीरिक  , मानसिक  कष्ट  हो  ,  वे   थक -हार  कर  असुरता  के  राज्य  में  सम्मिलित  हो  जाएँ  ,  उनकी  कठपुतली  बनकर  ऐसे  ही  आतंक  मचाएं  l  इसमें  एक  बात  महत्वपूर्ण  है  कि  आसुरी  शक्तियां  चाहे  वे  प्रत्यक्ष  हों   या  विशेष  तरीकों  से  अप्रत्यक्ष  शक्तियों  को  वश  में  किया  गया   हो  ,  यह  दोनों  ही  प्रकार  की  आसुरी  शक्तियों  के  कार्य  करने  का  एक  विशेष  पैटर्न  होता  है   जैसे  हम  देखते  हैं  किन्ही  परिवारों  में  आकाल  मृत्यु  होती  हैं , कई  परिवारों  में  दुर्घटना  से   कई  सदस्यों  की  मृत्यु  होती  है  ,  किसी  परिवार  में  पिछली  पीढ़ियों  से  लेकर  कई   सदस्यों  का   घातक  बीमारियों  से    अंत  होता  है  , कहीं  पीढ़ी -दर -पीढ़ी  परिवार  के  सदस्य  ही  परस्पर  धोखा , जालसाजी  , षड्यंत्र  करते  हैं  l  यही  स्थिति  संसार  में  होती  है  l  जितना  शक्तिशाली  असुर  , उतने  हो  व्यापक  क्षेत्र  में  उसका  आतंक  होता  है   जैसे  हिरण्यकश्यप , भस्मासुर   l  उनके  पास  एक  ही  तरीका  था  --हिरण्यकश्यप  कहता  था , उसे  भगवान  की  तरह  पूजो , इसी  बात  पर  वह  सबको , यहाँ  तक  कि  अपने  पुत्र  को  भी  सताता  था   l भस्मासुर  के  लिए  लोगों  को  सताना   , उसके  मनोरंजन  का  साधन  था  , सबके  सिर  पर  हाथ  रखकर  वह  उन्हें  भस्म  कर  देता  था  l  वर्तमान  में  भी  मानवता  को  उत्पीड़ित  करने  वाली  जो  भी  घटनाएँ  हो  रही  हैं   , उनका  भी  एक  ही  पैटर्न  है  l  असुरता  बहुत  शक्तिशाली  है , उसे  पराजित  करना  आसान  काम  नहीं  है  l  जब  मनुष्य  जागरूक  होगा  , अध्यात्म  से  जुड़ेगा  ,  जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  सोच  होगी   तभी  वह  अपने  अस्तित्व  को  बचा  सकेगा  l  असुरता  तो  पूरे  संसार  पर   ,  कृषि , चिकित्सा , उद्योग , निर्माण , शिक्षा , कला -साहित्य  -------- आदि  जीवन  के  प्रत्येक  क्षेत्र  पर , यहाँ  तक  कि  मनुष्य  के  मन  पर  भी  अपना  नियंत्रण   करने  को  उतारू  है  l  

13 September 2025

WISDOM -------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  ---- 'अहंकार  सारी  अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l "  अहंकार  एक  ऐसा  दुर्गुण  है  जिसके  पीछे  अन्य  बुराइयाँ  अपने  आप  खिंची  चली  आती  हैं  l   यहाँ  कोई  भी  अमर  होकर  नहीं  आया  ,  इसलिए  अहंकार  व्यर्थ  है  l  एक  कथा  है  ---- एक  फकीर  ने  किसी  बादशाह  से कहा  --- " खुद  को  बादशाह  कहते  हो  और  जीते  हो  दंभ  और  अहंकार  में  l  सच्चा  बादशाह  तो  वही  होता  है  ,  जो  जीवन  के  सब  रहस्यों  को  समझकर   इसके  आनंद  को  अनुभव  करे  l  "  बादशाह  को  फकीर  का  कहा  सच  अप्रिय  लगा  ,  सो  उसने   फकीर  को  कैद  कर  लिया  l  फकीर  के  एक  मित्र  ने  उससे  कहा  --- "  आखिर  यह  बैठे बैठाए   मुसीबत  क्यों  मोल  ले  ली  ?  न  कहते   वे  सब  बातें  ,  तो  तुम्हारा  क्या  बिगड़  जाता  l  "  मित्र  की  बात  सुनकर  फकीर  हँस  पड़ा   और  बोला  ---- "  मैं  करूँ  भी  तो  क्या करूँ  ?  जब  से  खुदा  का  दीदार  हुआ  है  ,  झूठ  तो  बोला  ही  नहीं  जाता  l "  मित्र  ने  कहा  --- "  यह  कैद  कितनी  कष्टप्रद  है   !  जाने  कब  तक  ऐसे  ही  रहना  पड़े  ? "   फकीर  ने  अपने  जीवन  को  परमात्मा  के  चरणों  में  समर्पित  कर  दिया  था  ,  उसने  बड़ी  निश्चिंतता  से  कहा  --- " इस  कैद  का  क्या  ?  यह  कैद  तो   बस   घड़ी  भर  की  है  l  "   फकीर  की  बात  एक  सिपाही  ने  सुन  ली   और  बादशाह  को  भी  बता  दिया  l  सिपाही  की  बात  सुनकर  बादशाह  ने  कहा  ---" उस  पागल  और  फक्कड़  फकीर  से  कहना   कि   यह  कैद  घड़ी  भर  की  नहीं  ,  बल्कि  जीवन  भर  की  है  l  उसे  जीवन  भर   इसी कालकोठरी  में  सड़ते  हुए  मरना  है  l  जीवन  भर   उसे   उसी  कैद  में   रहते  हुए   यह  याद  रखना  होगा  कि  मैं  भविष्य  को   अपनी  मुट्ठी  में  भर  सकता  हूँ  l "    फकीर  ने  जब  बादशाह  के  इस  कथन  को  सुना   तो  हँसने  लगा  l  फकीर  ने  कहा  --- "  ओ  भाई  !   उस  नादान  बादशाह  से  कहना  कि  उस  पागल  फकीर  ने  कहा  है  कि  क्या  जिन्दगी  उसकी  मुट्ठी  में   कैद  है  ?  क्या  उसकी  सामर्थ्य  समय  के  पहिए  को  थामने  की  ताकत  रखती  है  ?  क्या  उसे  पता  है  कि  पल  भर   के  बाद  क्या  घटने  वाला  है  ?    फकीर  की  बात  बादशाह  तक  पहुंचे  , तब  तक  अचानक  क्या  हो  गया   ?-------  नए  बादशाह  ने  फकीर  को  आजाद  कर  दिया   और  फकीर  के  उपदेशों  को  आत्मसात  किया  l  

7 September 2025

WISDOM ------

   आज  हम  वैज्ञानिक  युग  में  जी  रहे  हैं  l  दुनिया  ने  कितनी  तरक्की  कर  ली  लेकिन  फिर  भी  जाति , धर्म  को  लेकर  लोग  लड़  रहे  हैं , दंगे -फसाद  कर   स्वयं  अपना  जीवन  कष्टप्रद  बना  रहे  हैं  l  कितने  ही  इन  दंगों  की  आग  में  झुलसकर   अपने  परिवार  को  अनाथ  कर  रहे  हैं  l  यह  दुर्बुद्धि  का  सबसे  बड़ा  उदाहरण  है   कि  व्यक्ति  के  पास  जो  कुछ  है  , वह  उसका  आनंद  नहीं  उठा  पा  रहा  ,  अपनी ऊर्जा  को   ऐसे  नकारात्मक  कार्यों  की  योजना  बनाने , , उन्ही  में  उलझे  रहने  में  गँवा  रहा  है  l  यदि  व्यक्ति   परिवार  में  होने  वाले  झगड़े  या  समाज  और  संसार  में  होने  वाले  दंगे -फसाद  और  उपद्रवों   के  पीछे  की  सच्चाई  को  समझ  जाए  तब   वह  इनमें  उलझना  बंद  कर  देगा  l  इनका  सच  यह  है  कि  संसार  में  सकारात्मक  और  नकारात्मक   दोनों  ही   शक्तियां   प्रत्यक्ष और  अप्रत्यक्ष  रूप  से  हैं  l  संसार  में  हजारों  वर्षों  से  ही  युद्ध , उपद्रव  आदि  होते  रहे  हैं  ,   ऐसा  करने  और  कराने  वालों  की  आत्माएं   अप्रत्यक्ष  रूप  से   इस  वायुमंडल  में  हैं  l  संसार  में  युद्ध  हों , दंगे -फसाद , उपद्रव  और  हत्याएं  हों ,  परिवारों में  आपस  में  झगड़े  हो ,  लूटपाट , धोखाधड़ी  जालसाजी  सब  होता  रहे  ,   यही  उनके  मनोरंजन  का  साधन  है  l  जब  ऐसा  होता  है  तब  ये  नकारात्मक  , आसुरी  शक्तियां    चाहे  प्रत्यक्ष  हों  या  अप्रत्यक्ष   ताली  बजा -बजाकर    खुश  होती  हैं   कि  क्या  मजा  आ  गया  !  यह  सब  उनकी  खुराक , उनके  आनंद  का  स्रोत  हैं  l  ये  आसुरी  शक्तियां  लोगों  के  दिमाग  में  प्रवेश  कर   उन्हें  ऐसे  नकारात्मक  कार्य  करने  को  विवश  कर  देती  हैं ,  उन्हें  अपनी  कठपुतली  बनाकर  नचाती  हैं  l  इनसे   बचने  का  एक   ही  तरीका है  कि  स्वयं  को  सकारात्मक  कार्यों  में  व्यस्त   रखो  , अपने  विवेक  को  जगाओ  l   मानव  जीवन  अनमोल  है  ,  ऐसे  नकारात्मक  कार्यों  में  उलझकर  अपने   जीवन   को  गँवाने  से   कोई  फायदा  नहीं  ,  न  तो  इस  धरती  पर  ही  कोई  सम्मान  मिलेगा  और  न  ही  ऊपर  कोई  जगह  मिलेगी  ,  बीच  में  ही  युगों -युगों  तक  भटकना  होगा  l  

6 September 2025

WISDOM ------

     पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  द्रष्टिकोण  में  बसते  हैं  स्वर्ग -नरक  l    स्वर्ग  और  नरक  किसी  स्थान  या  जिले  का  नाम  नहीं  है  ,  यह  हमारी  आँखों  से  देखने  का  एक  तरीका  है   l  जब  हम  अपने  से  पिछड़े  और  गुजरे  हुए  लोगों  की  ओर  देखते  हैं  तो  मालूम  होता  है  कि  हम  हजारों  , लाखों  करोड़ों  मनुष्यों  की  अपेक्षा  ज्यादा  सुखी   हैं  l  लेकिन  यदि  हम  आसमान  की  ओर  देखेंगे  ,  अपने  से  अधिक  संपन्न  लोगों  को  देखेंगे   तो  हमें  बड़ा  क्लेश , ईर्ष्या , द्वेष    और  जलन  होगी  कि  अमुक  के  पास  कितना  सुख -वैभव  है  और  हमारा  जीवन  दुःख  में  डूबा  हुआ  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --सुख  वस्तुओं  में  नहीं  ,  यह  मनुष्य  की  सोच  है   जो  मनुष्य  को  सुखी  और  दुखी  बनाती  है  l  अपने  से  ऊपर  देखने  की  महत्वाकांक्षा  रखने  वाले   दिन  रात  जलते   रहते  हैं  l  कामनाएं  असीम  और  अपार  हैं  ,  ऐसे  लोगों  को  शांति  नहीं  है  , वे  निरंतर  अशांति  की  आग  में  जलते  रहते  हैं  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --मनुष्य  का  जीवन  प्रगतिशील  एवं  उन्नतिशील  होना  चाहिए  , लेकिन  अशांत  और  विक्षुब्ध  नहीं   l  एक    कथा  है  ------- एक  मल्लाह  था  ,  वे  एक  बड़ी  भारी  नाव  को  खेते  हुए  चले  आ  रहे  थे  l  थोड़ी  देर  बाद  भयंकर  तूफान  आया   और  जहाज  डगमगाने  लगा  l  मल्लाह  ने  अपने  बेटे  से  कहा  ---- "  ऊपर  जाओ  और  अपने  पाल  को  ऊपर  ठीक  से  बाँध  आओ  l  पाल  को  और  पतवार  को  ठीक  से   बाँध  दिया  जाए  तो  हवा  के  रुख  में  कमी  हो  जाएगी   और  हमारी  नाव  डगमगाने  से  बच  जाएगी  l  "     बेटा    रस्सी  के  सहारे  बांस    पर   चढ़ता  हुआ   ऊपर  गया   और  पाल  को  पतवार  से   ठीक  तरह  से  बाँध  दिया  l  उसने  देखा  कि   चारों  ओर  समुद्र  में  ऊँची -ऊँची  लहरें  उठ  हैं , तूफान  आ  रहा  है  ,  जोर  की  हवा  से  सांय -सांय  हो  रही  है   और  अँधेरा  बढ़ता  जा  रहा  है  l  मल्लाह  का  बेटा  ऊपर  से  चिल्लाया  ----' पिताजी  !  मेरी  मौत  आ  गई  ,  दुनिया  में  प्रलय  आने  वाली  है  l  देखिए !  समुद्र  में  लहरें    कितनी  जोर  से  उठती  हुई  चली  आ  रही  हैं  l  ये  लहरें  हमारे  जहाज  को  निगल  जाएँगी  l "  बूढ़ा  बाप  हुक्का  पी  रहा  था  l  उसने  कहा  ---"  बेटे  !  नजर  नीचे   की  ओर  रख   और  चुपचाप   उतरता  हुआ  चला  आ  l  "  लड़के  ने  न  आसमान  को  देखा  , न  बादलों  को  देखा  l  उसने  न  नाव  को  देखा  और  न  आदमियों  को  l  उसने  बस  नीचे  की  ओर  नजर  रखी   और  चुपचाप  नीचे  आ  गया  l    यही  शिक्षा  है  कि    इधर -उधर  न  देखकर  निरंतर   अपने  जीवन  को  सही  दिशा  में   निरंतर  प्रगतिशील  बनाने  का  प्रयास  करें  l  

4 September 2025

WISDOM ----

  अत्याचार  और  अन्याय  से  मनुष्य  का  पुराना  नाता  है  l   युग  चाहे  कोई  भी  हो  , जब  भी  मनुष्य  के  पास  धन-वैभव  , शक्ति  और  बुद्धि  है   और  इन  सबका  अहंकार  होने  के  कारण  वह  विवेकहीन  हो  जाता  है   तब  वह  अत्याचार  और  अन्याय  करने  ,  लोगों  को  पीड़ित  करने  में  ही   गर्व  महसूस  करता  है  l  यही  उसका  आनंद  और  उसकी  दिनचर्या  होती  है   l  सबसे  बड़ा  आश्चर्य  यही  है  कि  ऐसे  अत्याचारियों  का  साथ  देने  वाले , उनके  पाप  और  दुष्कर्मों  को  सही  कहकर  उनका  समर्थन  करने  वाले  असंख्य  होते  हैं  l   रावण  की  विशाल  सेना  थी   लेकिन  भगवान  राम  के  साथ  केवल  रीछ , वानर  थे  l  इसी  तरह  महाभारत  में   दुर्योधन  के  पास  विशाल  सेना  थी   और  उस  समय  के   हिंदुस्तान  के  लगभग  सभी  शक्तिशाली  राजा  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  थे  l  जब  महाभारत  का  महायुद्ध   आरम्भ  होना  था  तब  अर्जुन  ने   अपने  सारथी  श्रीकृष्ण  से  निवेदन  किया  ---- " हे  वासुदेव  !  मेरे  रथ  को  दोनों  सेनाओं  के  मध्य  स्थित  कर  दीजिए  l  मैं  देखूं  तो  सही  कि  मनुष्य , मनुष्यता   और  उसका  जीवन  कितना  निम्न  कोटि  का  हो  गया  है  l  द्रोपदी  के  चीरहरण  का  पक्ष  लेने   कौन -कौन  लोग  हैं  जो  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  हैं  l  दुर्योधन  के  कुकर्मों , लाक्षाग्रह   , शकुनि  और  दु:शासन  के  कुकर्मों   को  जानते  हुए  भी   ऐसे  कौन  लोग  हैं  जो  दुर्योधन  के  पक्ष  में  खड़े  हैं  l  भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य   जिन्हें  धर्म , अधर्म  का  ज्ञान  था  , जब  वे  सब  दुर्योधन  के  पक्ष  में  थे  तब  औरों  की   क्या  कहे  !   यह  सत्य  है  कि  सत्य  और  न्याय  के  पथ  पर  चलने  वालों  के  साथ  ईश्वर  होते  हैं  ,  यह  संसार  तो  स्वार्थ  से  , अपनी  लाभ -हानि  की  गणित  से  चलता  है   लेकिन  इन  सबका  परिणाम  वही  होता  है   जो  त्रेतायुग  और  द्वापरयुग  में  अत्याचारियों  का  और  उनका  समर्थन  करने  वालों  का  हुआ  l  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नातियों  समेत    रावण  का  अंत  हुआ   और  इधर  कौरव  वंश  का  भी  नामोनिशान  मिट  गया  l  सत्य  तो  यही  है  कि  मनुष्य  स्वयं  महाविनाश  को  आमंत्रित  करता  है  l  इसके  लिए  चाहें  ईश्वर  अवतार  लें  या  प्रकृति  अपना  रौद्र  रूप  दिखाकर   मनुष्य  को  सबक  सिखाए  l   लेकिन  मनुष्य  की  चेतना  सुप्त  हो  गई  है   , वह  कुछ  सीखना , सुधरना  नहीं  चाहता  है  ,  ,  मुसीबतें  आती  हैं  तो  आती  रहें  ,  उनकी  जान  बची  तो  दूनी  गति  से  पापकर्म  में  लिप्त  हो  जाते  हैं  l  अब  राम-रावण  और  महाभारत  जैसे  युद्ध  नहीं  होते  , वे  तो  धर्म  और  अधर्म  की  लड़ाई  थी  l  अब  आजकल  के  युद्ध  और  दंगों  में  महिलाओं  की  सबसे  ज्यादा  दुर्गति  होती  है  l  प्रकृति   ' माँ  '  हैं  , उनके  लिए  यह  सब  देखना  असहनीय  है  , इसलिए  अब  प्रकृति  माँ  अपना  रौद्र रूप  दिखाकर   सामूहिक  दंड  देतीं  हैं   l  पापकर्म  करने  वाले , उसे  चुपचाप  देखने  वाले  , देखकर  मौन  रहने  वाले  ,  बहती  दरिया  में  हाथ  धोने  वाले  ,  स्वयं  को   अनजान  कहने  वाले  सभी  पाप  के  भागीदार  हैं  l   प्रकृति  का  न्याय  किस  रूप  में  किसके  सामने  आए , यह  कोई  नहीं  जानता  l  

1 September 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहा  करते  थे  ---- "  चिंता  मनुष्य  को  वैसे  ही  खा  जाती  है  ,  जैसे  कपड़ों  को  कीड़ा  l  बहुत  चिंता  करने  वाले  व्यक्ति  अपने  जीवन  में   चिंता  करने  के  सिवा   और  कुछ  सार्थक  नहीं  कर  पाते   और  चिंता  से  अपनी  चिता  की  ओर  बढ़ते   हैं  l  चिंता   दीमक  की  तरह  है   जो  व्यक्ति  को  खोखला  बनाकर  नष्ट  कर  देती  है  , इसलिए  दीमक  रूपी  चिंता  से  हमेशा  सावधान  रहना  चाहिए  l  आचार्य श्री  कहते  हैं ----  चिंता   करने  के  बजाय   हमें  स्वयं  को  सदा  सार्थक  कार्यों  में  संलग्न   रखना  चाहिए  l  मन  को  अच्छे  विचारों  से  ओत -प्रोत  रखना  और  जीवन  के  प्रति  सकारात्मक  द्रष्टिकोण  रखना  -- ऐसे  उपाय  हैं    जिनसे  मन  को  चिंतामुक्त  किया  जा  सकता  है  l  "   एक  प्रसंग  है  ----  एक  वृद्ध  और  युवा  वैज्ञानिक  आपस  में  बात  कर  रहे  थे  l  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने   युवा  से  कहा ---- "  चाहे  विज्ञानं  कितनी  भी  प्रगति  क्यों  न  कर  ले  ,  लेकिन  वह  अभी  तक  ऐसा  कोई  उपकरण  नहीं  ढूंढ  पाया  ,  जिससे  चिंता  पर  लगाम  कसी  जा  सके  l   "  युवक  ने  कहा  ----" चिंता  तो  बहुत  मामूली  बात  है  ,  उसके  लिए  उपकरण  ढूँढने  में  समय  क्यों  नष्ट  किया  जाए  l "   अपनी  बात  समझाने  के  लिए  वे  उस  युवक  को  एक  घने  जंगल  में  ले  गए  l   एक  विशालकाय  वृक्ष  की  ओर  संकेत  करते  हुए  वृद्ध  वैज्ञानिक  ने  कहा  --- "  इस  वृक्ष  की  उम्र  चार  सौ  वर्ष  है  l  इस  वृक्ष  पर  चौदह  बार  बिजलियाँ  गिरी  l  चार  सौ  वर्षों  से  इसने  अनेक  तूफानों  का  सामना  किया  l  यह  विशाल  वृक्ष  बिजली  और  भारी  तूफानों  से   धराशायी   नहीं  हुआ   लेकिन  अब  देखो   इसकी  जड़ों  में  दीमक  लग  गई  है  l  दीमक  ने  इसकी   छाल    को  कुतरकर  तबाह  कर  दिया  l  इसी  तरह  चिंता  भी    दीमक  की  तरह   एक  सुखी , संपन्न  और  ताकतवर  व्यक्ति  को  चट  कर  जाती  है  l