पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ज्ञान चक्षुओं के आभाव में हम परमात्मा के अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं हमारे पास कुछ नहीं है l पर यदि जो नहीं मिला है उसकी शिकायत करना छोड़कर जो मिला है , उसकी महत्ता को समझें तो मालूम होगा कि जो मिला है वह अद्भुत है l " ईश्वर ने जो दिया है उसे न देख पाने के कारण ही व्यक्ति के मन में दूसरों के प्रति ईर्ष्या -द्वेष का भाव पनपता है प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक स्थिति भिन्न -भिन्न होती है l कोई ईर्ष्या -द्वेष के कारण छल , कपट , षड्यंत्र , धोखा जैसे कायरतापूर्ण अपराधिक कार्यों में संलग्न हो जाता है l कहीं कोई डिप्रेशन में चला जाता है , इतनी निराशा कि आत्महत्या को तत्पर हो जाता है क जीवन जीने की कला का ज्ञान न होने के कारण ही ऐसी स्थिति निर्मित होती है l प्राचीन काल में हमारे गुरुकुल थे , वहां कोई राजकुमार हो या गरीब सबको ज्ञान -अर्जन के साथ जीवन कैसे जिया जाता है यह भी सिखाया जाता था l वहां से अध्ययन के उपरांत वे विद्यार्थी शारीरिक और मानसिक रूप से इतने मजबूत , इतने सक्षम हो जाते थे कि बड़ी से बड़ी विपरीत परिस्थिति उन्हें विचलित नहीं कर सकती थी l लेकिन अब केवल पुस्तकीय ज्ञान है , इससे विवेक जागृत नहीं होता l इस कलियुग में अजीबोगरीब स्थिति है --- कहीं स्वार्थी तत्व युवा पीढ़ी की ऊर्जा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करते हैं , एक तरीके से अपना गुलाम बना लेते हैं l ऐसी भी स्थिति है कि शिक्षा ही कुछ ऐसी दो कि वे यही न समझ पायें कि जागरूकता क्या होती है , दिशाहीन कर्म करते रहो l वर्तमान स्थिति में न केवल युवा बल्कि प्रौढ़ और वृद्ध व्यक्तियों को भी सही दिशा की जरुरत है क्योंकि ईश्वर के दरबार में पेशी तो अवश्य होगी कि परमात्मा ने उन्हें जो विशेष योग्यता दी थी , उसका उन्होंने लोक कल्याण के लिए क्या उपयोग किया ? और इस धरती रूपी बगिया को सुन्दर बनाए रखने के लिए युवा पीढ़ी को क्या सिखा कर आए ?
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