संसार में अनेक धर्म हैं और सभी धर्म अपनी जगह श्रेष्ठ हैं , फिर भी धर्म के नाम पर झगड़े हैं , प्रतियोगिता है अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ बताने की l कलियुग का यही लक्षण है कि धर्म के नाम पर लड़ते -झगड़ते धीरे -धीरे धर्माधिकारी स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ कहलाने के लिए लड़ेंगे और धर्म , धर्म न रहकर व्यापार बन जायेगा l व्यापार लाभ कमाने के लिए किया जाता है जिसमें शोषण हमेशा कमजोर पक्ष का होता है और यह श्रंखलाबद्ध होता है l यदि कोई नेता किसी ऐसे धर्मगुरु से जुड़ जाए जिसके लाखों अनुयायी हैं , तो स्वाभाविक है कि उसको अपनी गद्दी पर बने रहने के लिए उन सबका समर्थन मिलेगा l और उस धर्म गुरु को भी एक छतरी मिल जाएगी l मन तो चंचल होता ही है जब धन -वैभव अति का है और छतरी भी मिल गई तो मन तो कुलांचे भरेगा ही , फिर जो कुछ घटेगा वह समाज देख ही रहा है l यह युग मुखौटा लगाकर रहने का है l पाप इतना बढ़ गया है कि मुखौटा लगाकर व्यक्ति अपने ही परिवार को धोखा देता है l सामने से ऐसा दिखाएंगे कि कितने भगवान के भगत हैं , समाजसेवी हैं लेकिन उसके पीछे जो कालिख है वो उनकी आत्मा स्वयं जानती है l कई लोगों ने तो इतने मुखौटे लगा लिए हैं कि वे अब भूल गए कि वे वास्तव में हैं कौन ? ऐसे मुखौटों में सबसे खतरनाक साधु -संत का मुखौटा है क्योंकि यह गरीबों और इस वेश पर विश्वास करने वालों को छलता है l समाज का एक बहुत बड़ा भाग इनकी चपेट में आ जाता है l इन सब समस्याओं का एक ही इलाज है कि धर्म सबका व्यक्तिगत हो अपने घर में अपने भगवन को अपने तरीके से पूजो और घर के बाहर सामूहिक रूप से ' मानव धर्म ' हो , इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है l इन्सान बनोगे तभी चेतना परिष्कृत होगी अन्यथा मनुष्य तो अब पशु और पिशाच बनने की दिशा में अग्रसर है l
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