पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ईर्ष्या वह काली नागिन है जो समस्त पृथ्वी -मंडल में जहरीली फुफकारें छोड़ रही है l यह गलतफहमियों की एक गर्म हवा है , जो शरीर के अंदर ' लू ' की तरह चलती है और मानसिक शक्तियों को झुलसाकर राख बना देती है l " आज सम्पूर्ण संसार में युद्ध , तनाव , धक्का -मुक्की की जो विकट स्थिति है , उसका कारण ईर्ष्या का रोग है l व्यक्ति धन संपन्न हो , उच्च पद पर हो ईर्ष्या के रोग से उसका पीछा नहीं छूटता l ईर्ष्या की आग इतनी भयंकर है कि इससे ईर्ष्यालु व्यक्ति का तो सुख -चैन समाप्त हो ही जाता है और जिससे वह ईर्ष्या करता है उसका सुख -चैन छीनने में वह कोई कसर बाकी नहीं रखता l पारिवारिक झगड़े , मुकदमे , संस्थाओं में अशांति , दूसरे को धक्का देकर आगे बढ़ने की होड़ , इन सबका कारण परस्पर ईर्ष्या ही है l जीवन जीने की कला कहती है कि जो ईर्ष्या करता है उसे उसका काम करने दो l यदि वह ईर्ष्यावश तुम्हारी ओर पत्थर फेंकता है , तो उन पत्थरों से सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ जाओ l अपनी प्रगति पर , अपने जीवन को व्यवस्थित बनाने पर ध्यान केन्द्रित करो l अपने मन को इतना मजबूत बनाओ कि दूसरे हमारे लिए क्या कहते हैं , हमारे विरुद्ध क्या षड्यंत्र रचते हैं , उससे जरा भी विचलित न हो l वे अपनी ऊर्जा व्यर्थ के कार्यों में बरबाद कर रहे हैं तो इसमें उनका ही नुकसान है l यदि स्वयं की सोच सकारात्मक हो तो नकारात्मक शक्तियों का आक्रमण एक चुनौती बन जाता है l चुनौती का सकारात्मक तरीके से सामना करने में ही मनुष्य की भलाई है l