पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " संसार में बुराई और भलाई का , हानि -लाभ का , प्रिय -अप्रिय का और सुख -दुःख अस्तित्व है और वह बना ही रहेगा l हमें किसी का भी प्रभाव अपने ऊपर ऐसा नहीं पड़ने देना चाहिए जो मानसिक संतुलन बिगाड़ कर रख दे l यदि हमारा द्रष्टिकोण सकारात्मक है तो विपत्ति का प्रत्येक धक्का हमें अधिक साहसी , बुद्धिमान और अनुभवी बनाता है l " आचार्य श्री कहते हैं ---- " जीवन एक कला है और इसे आनंदपूर्वक सीखना एवं जीना चाहिए l जो जीवन जीना जानता है वही सही मायने में कलाकार एवं प्रतिभावान है l " विभिन्न सर्वेक्षणों से यह तथ्य प्रकट होता है अपने विषय के विद्वान , प्रतिभावान , धन-वैभव संपन्न , , उच्च पदों पर बैठे व्यक्ति ---- अनेक ऐसे हैं जिनका निजी जीवन विखंडित और विभाजित है l उन्हें अपनी सामान्य सी जिन्दगी को चलाने के लिए नशा , मादक द्रव्य ------ आदि का सहारा लेना पड़ता है l कारण यही है कि लोगों की सोच सकारात्मक नहीं है , जो उन्हें मिला है वे उसमें खुश नहीं हैं , उनका मन कामनाओं , वासना के पीछे भाग रहा है ऐसे में दुःख का , कष्ट का एक छोटा सा झटका भी उन्हें विचलित कर देता है l हमें इस सत्य को स्वीकार करना होगा कि ईश्वर कभी किसी को पूर्ण रूप से दुःख नहीं देते l अपने मन के तराजू में तोल कर देखें कुछ न कुछ सुख तो होता ही है l और यदि हम ध्यान से देखें तो उस दुःख में भी कोई सुख अवश्य छिपा होता है l यदि हम उस सुख पर अपनी द्रष्टि केन्द्रित करेंगे तो हमारा मन शांत रहेगा , तनाव नहीं होगा l संत तुकाराम ने लिखा है ------ " हे भगवान ! अच्छा ही हुआ , मेरा दिवाला निकल गया l अकाल भी पड़ गया , यह भी अच्छा ही हुआ l स्त्री और पुत्र भी भोजन के अभाव में मर गए और मैं भी हर तरह से दुर्दशा भोग रहा हूँ , यह भी ठीक ही हुआ l संसार में अपमानित हुआ , यह भी अच्छा हुआ l ग्राम , बैल , द्रव्य सब चला गया , यह भी अच्छा ही हुआ l लोक -लाज भी जाती रही , यह भी अच्छा हुआ क्योंकि इन्ही सब कारणों के फलस्वरूप तुम्हारी मधुरिमामय , शांतिपूर्ण गोद मुझे मिली l "