' अनाचारी  पागलपन  की  हरकतों  को  चुपचाप  सहते  रहने  से  उसकी   उन्मतता   भड़कती  है  ।  इन  कृत्यों  के  प्रति  उदासीनता  आग  में  घी  का  काम  करती  है  ।  '   जतीन ( ज्योतिन्द्र  नाथ मुखर्जी ) इस  तथ्य  को   बहुत  अच्छी  तरह  समझते  थे  इसी  कारण  उन्होंने   अपनी  आँखों  के  सामने   कभी  न  होने   योग्य  काम  नहीं  होने  दिया   ।   शरीर  बल  और  सामर्थ्य  की   सार्थकता  भी  यही  है   । 
दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करना ही शक्तिशाली का धर्म है । यह निष्ठा उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है ।
1905 की बात है , प्रिंस आफ वेल्स उन दिनों भारत आये हुए थे । कलकत्ता में उनकी सवारी निकलने जा रही थी l हजारों नर - नारी फुट पाथ पर जमा थे । एक गली के नुक्कड़ पर एक बग्घी खड़ी थी जिसमे कुछ महिलाएं थीं । उन औरतों को परेशान करने के लिए कुछ गोरे युवक बग्घी की छत पर चढ़ गए और औरतों के मुंह के सामने पैर लटकाकर बैठ गए और सीटी बजाने लगे । जतिन वहीँ पास में खड़े थे उनसे महिलाओं का यह अपमान देखा नहीं गया । जतिन ने उन युवकों की खूब पिटाई की , आखिर वे युवक मुंह छिपाकर भाग गए । ऐसी अनगिनत घटनाएँ हैं जो जतिन के स्वाभिमानी व्यक्तित्व से परिचित कराती हैं । स्वामी विवेकानन्द से प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर वे राष्ट्रीय आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेने लगे ।
दुर्बल और पीड़ित व्यक्ति की आततायी से रक्षा करना ही शक्तिशाली का धर्म है । यह निष्ठा उसके व्यक्तित्व में चार चाँद लगा देती है ।
1905 की बात है , प्रिंस आफ वेल्स उन दिनों भारत आये हुए थे । कलकत्ता में उनकी सवारी निकलने जा रही थी l हजारों नर - नारी फुट पाथ पर जमा थे । एक गली के नुक्कड़ पर एक बग्घी खड़ी थी जिसमे कुछ महिलाएं थीं । उन औरतों को परेशान करने के लिए कुछ गोरे युवक बग्घी की छत पर चढ़ गए और औरतों के मुंह के सामने पैर लटकाकर बैठ गए और सीटी बजाने लगे । जतिन वहीँ पास में खड़े थे उनसे महिलाओं का यह अपमान देखा नहीं गया । जतिन ने उन युवकों की खूब पिटाई की , आखिर वे युवक मुंह छिपाकर भाग गए । ऐसी अनगिनत घटनाएँ हैं जो जतिन के स्वाभिमानी व्यक्तित्व से परिचित कराती हैं । स्वामी विवेकानन्द से प्रेरणा और प्रोत्साहन पाकर वे राष्ट्रीय आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेने लगे ।
 
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