पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " व्यक्ति का चरित्र और उसकी उच्च भावनाएं ही उसे महान और यशस्वी बनती हैं , पद , सम्मान नहीं l " अथाह धन -संपदा जोड़ लेने से , उच्च पद प्राप्त कर लेने से , प्रवचन से कोई व्यक्ति महान नहीं बनता l महत्वपूर्ण यह है कि इस स्थिति तक पहुँचने का सफ़र कैसे तय किया ? आचार्य जी लिखते हैं - ' गलत रास्ते से प्राप्त की गई सफलता अंत में कलंकित हो जाती है l ' कलियुग की सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि समाज को सही दिशा देने वाले ही दिशा भ्रमित हैं l तृष्णा , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा ----का जाल इतना घना है कि व्यक्ति उसमें एक बार फँस गया तो निकलना मुश्किल है ! लेकिन इस संसार में असंभव कुछ भी नहीं l व्यक्ति की आत्मा में इतनी शक्ति है कि वह संकल्प ले तो असंभव को भी संभव कर सकता है l आचार्य श्री कहते हैं ---भूल समझ आने पर उल्टे पैरों लौट आने में कोई बुराई नहीं l ' विचारों में परिवर्तन और परिमार्जन से जीवन की दिशा कैसे बदल जाती है इसका उदाहरण लियो टालस्टाय का जीवन है l l वे रूस के सामंती वंश के राजकुमार थे l सामंत सेनापतियों की सारी बुराइयाँ उनमें भरी पड़ी थीं लेकिन सत्य का प्रकाश आते ही , विचारों में परिवर्तन होते ही उनके जीवन की दिशा धारा ही बदल गई l मद्यपान , क्रूरता , हत्या , व्यसन और विलासिता का जीवन जीने वाले टालस्टाय अब प्रेम , करुणा , सह्रदयता , सहानुभूति और त्याग , तपस्या की मूर्ति महात्मा टालस्टाय बन गए l लियो टालस्टाय कहते हैं --- " दुनिया की हर बुराई और बेइंसाफी की अधिकतम जिम्मेदारी से विद्वान , साहित्यकार और कलाकार बच नहीं सकता l आरम्भ में मैं भी साहित्यकार की जिम्मेदारी को नहीं समझा था l मैं नहीं जानता था कि मैं क्या लिख रहा हूँ और क्या शिक्षा दे रहा हूँ l मेरी एक ही अभिलाषा थी कि अधिक से अधिक धन और यश का संपादन किया जाए l यह मेरा पागलपन था और इस पागलपन को दूर करने में मुझे पूरे छह वर्ष लग गए l " टालस्टाय ने जब अपने साहित्यिक दायित्व को समझा तो वे महात्मा बन गए l