स्कन्दगुप्त  को  मगध  का  विशाल  साम्राज्य  अपने  पिता  से  उत्तराधिकार  में  मिला  था  । उन्होंने  इसे  सुख  की सेज  नहीं  काँटों  का  ताज   मानकर  स्वीकार  किया   था  ।  राज्य  सुख  भोगने  के  लिए  नहीं,  प्रजा  की  सेवा  का  सुअवसर  समझकर  इस  सौभाग्य  को  स्वीकारा   था  | 
सम्राट स्कन्दगुप्त के समय मे जिस बर्बर जाति ने भारत पर आक्रमण किया था, वह थी मध्य एशिया से आने वाली जाति-- हूण । भारत में इस जाति को अपने पाँव जमाने में सफलता नहीं मिल सकी, उन्हें उलटे पाँव भागना पड़ा । इस बर्बर जाति को भारत से भगाने का श्रेय जिन दो पराक्रमी सम्राटों को है वे हैं सम्राट स्कन्दगुप्त और यशोधर्मा ।
सम्राट स्कन्दगुप्त ने इस जाति को कुम्भा नदी के तट पर रोक दिया । एक-दो महीने नही पूरे सोलह वर्ष तक सम्राट स्कन्दगुप्त अपनी सेना के साथ वहां डटे रहे ।
सोलह वर्ष तक एक सम्राट एक सामान्य सिपाही की तरह धरती पर सोते रहे, उन्ही का साधारण भोजन करते रहे । ऐसे उदाहरण विश्व के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिल सकेगा । उनके जीते जी एक भी हूण भारत भूमि पर पाँव नहीं रख सका ।
संस्कृति की रक्षा के लिए उनका यह बलिदान प्रेरणादायक है ।
सम्राट स्कन्दगुप्त के समय मे जिस बर्बर जाति ने भारत पर आक्रमण किया था, वह थी मध्य एशिया से आने वाली जाति-- हूण । भारत में इस जाति को अपने पाँव जमाने में सफलता नहीं मिल सकी, उन्हें उलटे पाँव भागना पड़ा । इस बर्बर जाति को भारत से भगाने का श्रेय जिन दो पराक्रमी सम्राटों को है वे हैं सम्राट स्कन्दगुप्त और यशोधर्मा ।
सम्राट स्कन्दगुप्त ने इस जाति को कुम्भा नदी के तट पर रोक दिया । एक-दो महीने नही पूरे सोलह वर्ष तक सम्राट स्कन्दगुप्त अपनी सेना के साथ वहां डटे रहे ।
सोलह वर्ष तक एक सम्राट एक सामान्य सिपाही की तरह धरती पर सोते रहे, उन्ही का साधारण भोजन करते रहे । ऐसे उदाहरण विश्व के इतिहास में अन्यत्र नहीं मिल सकेगा । उनके जीते जी एक भी हूण भारत भूमि पर पाँव नहीं रख सका ।
संस्कृति की रक्षा के लिए उनका यह बलिदान प्रेरणादायक है ।
 
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