भगवान  के  दर्शन  की  ,  उनकी  प्राप्ति  की  आकांक्षा   सभी  को  रहती  है  ।   गीता  में  भगवान  ने  कहा  है --- ईश्वर  को  चमड़े  की  आँखों  से  नहीं  विवेक  की  दिव्य  द्रष्टि  से  देखा  जा  सकता  है   ।
आस्तिकता की परम्पराओं को मानव जाति अतीत काल से अपनाये हुए है । अब उसके परिष्कार की आवश्यकता है । यह परिष्कार समस्त जड़ - चेतन में भगवान को देखना , प्रत्येक पदार्थ एवं प्राणी में प्रभु की ज्योति के दर्शन करने के रूप में ही हो सकता है ।
यदि ईश्वर भक्ति का यह स्वरुप अपना लिया जाये तो संसार की सभी समस्याओं का मंगलमय हल निकल सकता है ।
एक बार पार्वतीजी ने शंकर भगवान से पूछा ----- गंगा स्नान करने वाले प्राणी समस्त पापों से छूट जाते हैं ?
शंकरजी बोले --- जो भावना पूर्वक स्नान करता है , उसी को सद्गति मिलती है ।
पार्वतीजी ने गंगा स्नान का बड़ा महत्त्व सुना था , इसलिए उन्हें संतोष नहीं हुआ । शंकरजी ने कहा --- अच्छा चलो तुम्हे प्रत्यक्ष दिखाते हैं -- । कोढ़ी का रूप बनाकर वे रास्ते में बैठ गये , साथ में पार्वतीजी सुन्दर स्त्री के रूप में उनके साथ हो गईं । गंगा स्नान का पर्व था , अनेकों लोगों ने कोढ़ी के साथ सुन्दर स्त्री को देखा तो किसी ने कोढ़ी को गाली दी , किसी ने उस स्त्री से कहा कि तुम हमारे साथ चलो । जो भी देखता वह उस स्त्री की ओर आकर्षित होता ।
अंत में एक ऐसा व्यक्ति भी मिला जिसने उस स्त्री के पतिव्रत धर्म की सराहना की और कोढ़ी को गंगा स्नान कराने में मदद की ।
शंकरजी प्रकट हुए और बोले --- प्रिये ! यही श्रद्धालु सद्गति के सच्चे अधिकारी हैं ।
आस्तिकता की परम्पराओं को मानव जाति अतीत काल से अपनाये हुए है । अब उसके परिष्कार की आवश्यकता है । यह परिष्कार समस्त जड़ - चेतन में भगवान को देखना , प्रत्येक पदार्थ एवं प्राणी में प्रभु की ज्योति के दर्शन करने के रूप में ही हो सकता है ।
यदि ईश्वर भक्ति का यह स्वरुप अपना लिया जाये तो संसार की सभी समस्याओं का मंगलमय हल निकल सकता है ।
एक बार पार्वतीजी ने शंकर भगवान से पूछा ----- गंगा स्नान करने वाले प्राणी समस्त पापों से छूट जाते हैं ?
शंकरजी बोले --- जो भावना पूर्वक स्नान करता है , उसी को सद्गति मिलती है ।
पार्वतीजी ने गंगा स्नान का बड़ा महत्त्व सुना था , इसलिए उन्हें संतोष नहीं हुआ । शंकरजी ने कहा --- अच्छा चलो तुम्हे प्रत्यक्ष दिखाते हैं -- । कोढ़ी का रूप बनाकर वे रास्ते में बैठ गये , साथ में पार्वतीजी सुन्दर स्त्री के रूप में उनके साथ हो गईं । गंगा स्नान का पर्व था , अनेकों लोगों ने कोढ़ी के साथ सुन्दर स्त्री को देखा तो किसी ने कोढ़ी को गाली दी , किसी ने उस स्त्री से कहा कि तुम हमारे साथ चलो । जो भी देखता वह उस स्त्री की ओर आकर्षित होता ।
अंत में एक ऐसा व्यक्ति भी मिला जिसने उस स्त्री के पतिव्रत धर्म की सराहना की और कोढ़ी को गंगा स्नान कराने में मदद की ।
शंकरजी प्रकट हुए और बोले --- प्रिये ! यही श्रद्धालु सद्गति के सच्चे अधिकारी हैं ।
 
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