30 December 2024

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " स्वर्ग  और  नरक  कोई  स्थान  नहीं , बल्कि  मन: स्थितियां हैं  , जिनके  कारण  मनुष्य  के  जीवन  में   सुखद  या  दुःखद  परिस्थितियां  बनती  हैं  l "   मनुष्य  के  जीवन  में  ऐसा  संभव  नहीं  है  कि   हमेशा   पूर्ण  रूप  से  वह  सुखी  रहे  l  कोई  न  कोई  कष्ट , कठिनाइयाँ  निरंतर  बनी  रहती  हैं  l  यदि  हमारी  सोच  सकारात्मक  है   तो  हम  उन  दुःख  और  कष्टों  में  भी  सुख  की  कोई  किरण  खोजकर  अपने  मन  को  शांत  रख  सकेंगे   लेकिन  यदि  मन  नकारात्मक  विचारों  से  घिरा  हुआ  है   तो थोडा  सा  कष्ट  भी  मनुष्य  को  विचलित  कर  देता  है  और  अपनी  नकारात्मक  सोच  से  वह  उस   कष्ट  को  और  अधिक  विशाल  बना  देता  है  , जीवन  कष्टप्रद  हो  जाता  है  l  इसलिए  जरुरी  है  कि  हम   दुःख और  कष्ट  को  नहीं   उसके  पीछे  छुपे  सुख   को  ढूंढें ,  देखें  l  ईश्वर  ने  हमें  जो  दिया  है  उसके  लिए  ईश्वर  को  हर  पल  धन्यवाद दें  , इससे  जीवन  धीरे -धीरे  सुखमय  होता  जायेगा  l    एक  कथा  है -----  भगवान  के  तीन सच्चे  भक्त  मंदिर  में  भगवान  को  धन्यवाद  दे  रहे  थे  l  एक  ने  कहा --- " प्रभु  !  आप   आप  बड़े  कृपालु  हैं  l  आप  का  लाख -लाख  धन्यवाद   कि  मेरी  पत्नी  बहुत  धार्मिक  है , वह  मेरे  पूजा , पाठ  , यज्ञ , हवन , सत्संग  में  कभी  बाधक  नहीं  बनती   l  मैं  एकाग्र  होकर  पूजा , ध्यान , दान -पुण्य  सब  करता  हूँ  और  आनंद  पूर्वक  जीवन  जीता  हूँ  l  "  दूसरा  भक्त  कह  रहा  था  --- " हे  प्रभु   !  आपने  मेरे  ऊपर  बड़ा  उपकार  किया  कि  मुझे  कर्कशा  पत्नी  मिली  l  वो  इतनी  कर्कशा  है  की  मुझे  विरक्ति  हो  गई   और  मैं  आपके  ध्यान , चिन्तन  में  लीन  हो  सका  l  यदि  पत्नी  प्रेम  करने  वाली  होती  तो  मैं  उसकी  आसक्ति  में  डूब  जाता  और  आपसे  दूर  हो  जाता  l  इसलिए  हे  प्रभु  आपका  बारंबार  धन्यवाद  , आपने  मुझे  सद्बुद्धि  दी  कि  मैं   अपनी  पारिवारिक  और  सामाजिक  जिम्मेदारियों  को  पूरा  करते  हुए  आपका  ध्यान  कर    सकूँ  l ध्यान  से  मुझे  सच्चा  आनंद  मिलता  है  l "    तीसरा  भक्त  भगवान  से  कह  रहा  था --- हे  प्रभु  !  आप  ने  मुझ  पर  बड़ी  कृपा  की  l  मेरे  तो  बीबी -बच्चे  ही  नहीं  हैं  ,  जो  आपके  और  मेरे  बीच  दीवार  बनते  l  मेरा  मन  और  जीवन  आप  के  चरणों  में  समर्पित  है  l  आपकी  पूजा  और  ध्यान  से  मुझे  जो  आत्मिक  सुख  मिलता  है  , वह  बीबी  -बच्चों  और  धन -दौलत  से  नहीं  मिल  पाता  l  "  ----  महात्मा जी  ने  लोगों  को  समझाया  कि  देखो   !  अलग -अलग  परिस्थितियों  में  रहते  हुए  भी   ये  तीनों  प्रसन्नचित ,  ईश्वर  के  प्रति  कृतज्ञ  और  भक्ति  में  लीन  हैं  l  इनके  मन  में  ईश्वर  के  प्रति  या  परिस्थिति   के  प्रति कोई  शिकायत  नहीं  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं --- ' परिस्थितियां  चाहे  कैसी  भी  हों , हमें  अपनी  मन: स्थिति  ठीक  और    सकारात्मक   रखना  चाहिए   l " 

29 December 2024

WISDOM ----

   पुराण  की  विभिन्न  कथाएं  हमें  जीवन    जीना   सिखाती  हैं  l   मनुष्यों  में  ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , स्वार्थ , लालच , बदले  की  भावना   आदि  ऐसे  दुर्गुण  हैं  जिनके  वशीभूत  होकर   वह  लोगों  को  पीड़ा , दुःख  देने  वाला  व्यवहार  करता  है  l  लेकिन  जो  इस  सत्य  को  समझता  है  कि  जिसके  पास  जो  है  वह  वही  देगा  , इसलिए  हमें  मान -अपमान  में  तटस्थ  रहना  चाहिए  , उसे  अपने  ऊपर  हावी  नहीं  होने  देना  है   तभी  हम  शांति  से  जी सकेंगे  l ----- राजा  उत्तानपाद  के  दो  रानियाँ  थीं  , सुनीति  और  सुरुचि  l  राजा  छोटी  रानी  सुरुचि  को  चाहते  थे   और  उसकी  अनुचित बातों  का  भी  समर्थन  करते  थे  l   एक  दिन   सुरुचि  का  पुत्र  उत्तम  राजसभा  में  महाराज  की  गोद  में  बैठा  था  , उसी  समय  बड़ी  रानी  सुनीति  का  पांच  वर्षीय   पुत्र  ध्रुव  भी  खेलते  हुए  आए   और  महाराज  की  गोद  में  बैठ  गए  l  यह  देखकर   सुरुचि  को  बहुत  ईर्ष्या  हुई  , उसने   तुरंत   ध्रुव  को  राजा  की  गोद  से  खींचकर  उतार  दिया  और  फटकारते  हुए  कहा  --- " महाराज  की  गोद  में  बैठना  है  तो   मेरी  कोख  से  जन्म  लेना  होगा  l "  महाराज  और  सारी  सभा  चुप  देखती  रही  और  ध्रुव  अपमानित  होकर  रोते  हुए  अपनी  माँ  सुनीति  के  पास  गए   और  सब   बात   कही  l   तब  माँ  ने  समझाया  ----- " पुत्र  !  पिता  की  गोद  से  सौतेली  माँ  तुम्हे  उतार  सकती  है   लेकिन  जो  परम  पिता  की  गोद में  बैठता  है  उसे   उनकी  गोद  से    कोई  नहीं  उतार  सकता  l   इस  स्रष्टि  के  राजा  भगवान  हैं  ,  उन्ही  परम  पिता  को  तुम  पुकारो  , प्रार्थना  करो  l  वे  तुम्हारी  प्रार्थना  अवश्य  सुनेंगे  l  माता  की  प्रेरणा  से  पांच  वर्षीय  बालक  ध्रुव  तपस्या  के  लिए   वन  की  ओर  चल  पड़े  , सारे  महल  में  हाहाकार  मच  गया  l  राजा  ने  और  सभी  ने  उन्हें  वापस  लौटने  के  लिए  बहुत  प्रयास  किया   लेकिन  ध्रुव  का  निश्चय  अटल  था  l  मार्ग  में  उन्हें  नारदजी  मिल  गए  l  उन्होंने  ध्रुव  को  मन्त्र  और  ध्यान  आदि  की  सब  विधि  समझा  दी  l  बालक  ध्रुव  की  कठिन  तपस्या  से  प्रसन्न  होकर  भगवान    उनके  सामने  प्रकट  हो  गए   और  ध्रुव  को  वरदान  दिया  कि  दीर्घकाल   तक  राज्य   भार   स्संभालना  होगा   फिर   तुम्हे  वह  अटल , स्थिर  ध्रुव  पद  प्राप्त  होगा  जहाँ  से  तुम्हे  कोई  हटा  नहीं  सकेगा   और  संसार  को  दिशा  प्राप्त  होगी  l   

28 December 2024

WISDOM -----

  कहते  हैं  कि  इस  संसार  में  एक  पत्ता  भी  हिलता  है तो  वह  ईश्वर की  मर्जी से  हिलता  है    लेकिन  जो  अहंकारी  हैं  ,  शराफत  का  मुखौटा  लगाकर  रहते  हैं  ,   लोगों  को  बिना  वजह  सताते  हैं , उत्पीड़ित  करते  हैं ,  धोखा  देना , हक  छीनना ,  किसी  को  सुख -चैन  से  जीने  न  देना  ---- जैसे  घ्रणित  अपराध  करते  हैं  ,  वे  सोचते  हैं कि  वे  ही   भगवान   हैं  ,  जो  चाहे  वह  कर  सकते  हैं  , अपने  धन  और  शक्ति  से  वे  कानून  से  भी  बच  सकते  हैं   और  ऐसा  होता  भी  है  लेकिन  वे यह  नहीं  जानते  कि  ईश्वर  हजार आँखों  से  उनके  हर  कर्म  को  देख  रहा  है  l  जो  पाप  कर्म  करते  हैं  उनकी  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  जाती  है  ,  वे  स्वयं  अपने  हर  गलत  कदम  से  अपने  पाप  के  घड़े  को  भरते  जाते  हैं  l  ईश्वर  चाहते  हैं  कि   दुनिया  में  अच्छाई  हो ,   लोग  शांति  से  रहें  इसलिए  ऐसे  लोगों  को  सुधरने के  अनेक  मौके  भी  देते  हैं  l  कुकर्म  करते   रहने  से  उनके  पाप  का  घड़ा  पूरा  भर  जाता  है  और  पुण्य  का  खाली  हो  जाता  है   और  तब  उन्हें  ईश्वर  की  लाठी   पड़नी   शुरू  हो  जाती  है  l   यह  सब  ईश्वरीय  विधान  है    किसी  को  कष्ट , दुःख , पीड़ा  देकर   उसे  सद्बुद्धि  भी  देते  हैं  कि  इन  कष्टों  को  चुनौती  मानकर  अपने  व्यक्तित्व  को  निखारो ,  कष्टों  की   अग्नि   में  तपकर   स्वर्ण  बनो   और  दूसरी  ओर  पापियों   की  बुद्धि  भ्रष्ट  कर  उन्ही  के  हाथों  उनका  पाप  का  घड़ा  भरवा  देते  हैं   और  फिर  उन्हें  पापों  का  दंड  देते  हैं  l  जो  भी  व्यक्ति  ईश्वर  के  इस  विधान  को  समझ  जाता  है  , वह  सिर्फ  ईश्वर  से  ही   भय  खाता  है  ,  वह  संसार  में  किसी  से  नहीं  डरता  है  l  

27 December 2024

WISDOM ------

    विज्ञान  ने   हमें   सुख - सुविधा के  अनेकों  साधन  दिए  हैं   लेकिन  विज्ञानं  के  पास  वो  तकनीक  नहीं  है  जो  मनुष्य  को  शांति  और  आनंद  दे  सके  l  संसार  में   अनेक  लोग  ऐसे  हैं  जिनके  पास  शक्ति  है , पद , प्रतिष्ठा , सुख -वैभव , भोग -विलास  के  सब  साधन  हैं  लेकिन  उनके मन  में  शांति  नहीं  है , जीवन  में  आनन्द  नहीं  है  l  शांति  और  आनंद  के  अभाव  में  व्यक्ति  जितने  बड़े  क्षेत्र  को  प्रभावित  करने  की  क्षमता  रखता  है  उतने  क्षेत्र  में  अशांति  को   फैलाता  है  l  मानव  जाति  के  इतिहास  में  युद्ध  और  रक्तपात का  हिस्सा  सबसे  अधिक  है   जो  मनुष्यों  के  अशांत  मन  का  ही  परिणाम  है  l  बाहरी  शांति  के  लिए  भीतर  से  शांत  होना  बहुत  जरुरी  है   लेकिन  इस  महत्वपूर्ण  तथ्य  पर  कभी  ध्यान ही  नहीं  दिया  गया  l   जीवन  में  संतुलन  जरुरी  है  l  एक  पक्षीय  विकास  में  विनाश  के  बीज  विद्यमान  होते  हैं  ,  बुद्धि  बेलगाम  हो  जाती है  , मनुष्य  स्वयं  ही  अपने  पतन  के  मार्ग  पर  चल  देता  है  l  

25 December 2024

WISDOM -------

     यह  संसार  कर्मभूमि  है  l   यदि  हमें   विधाता  के  बनाए  इस  कर्म विधान  को  समझना  है  तो   ' महाभारत ' का  अध्ययन -मनन  अवश्य  करना  चाहिए  l   हम  सबसे  जाने -अनजाने  अनेक  गलतियाँ  हो  ही  जातीं  हैं   उनके  परिणाम स्वरुप   जीवन  में  सुख -दुःख  आते  रहते  हैं  और  जीवन  अपनी  गति  से  चलता  रहता  है  l  लेकिन  जो  अपराध  सोच -समझकर  ,  योजनाबद्ध  तरीके  से  , षड्यंत्र  रचकर , धोखा  देकर   किए  जाते  हैं  ,  उन  अपराधों  की  कोई  क्षमा  नहीं  मिलती   और  वैसे  भी  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  है  l   दुर्योधन  आदि  कौरवों  ने  बचपन  से  ही  पांडवों  के  विरुद्ध  अनेक  षड्यंत्र  रचे , हर  पल  उन्हें  अपमानित  किया  ,  उनका  हक   छीना  ,  चौसर  के  खेल  में  छल  से  पांडवों  को  पराजित  कर   द्रोपदी  को  अपमानित  किया  l  अत्याचार  की  अति   हो  गई  l  इस  अति  का  अंत  तो  होना  ही  था  l  पांडवों  ने  अपने  जीवन  की  डोर   भगवान  श्रीकृष्ण  के  हाथ  में  सौंप  दी  l   ईश्वर  की  प्रेरणा  से  ही  महाभारत  का  महायुद्ध   रचा  गया  ,  कौरव  वंश  समूल  नष्ट  हो  गया  l  जिसने  भी  कौरवों  का  साथ  दिया  ,  उन  सबका  अंत  हो  गया  l  कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  , वही  इस  धरती  पर  है  l  परिवारों  में  , संस्थाओं  में  , समूचे  संसार   में  --- जहाँ  कहीं  भी  अशांति  है  , वहां  उसके  पीछे   किसी  न  किसी  का  अहंकार  है  l  रावण  , दुर्योधन  और  उनके  जैसा  कोई  भी  अहंकारी  हो   उसके  पास  बाहरी  सुख -वैभव  अवश्य   होता  है   लेकिन  उनके  मन  में  शांति  नहीं  होती  l अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए  उनके  भीतर  एक  आग  सी  जलती  रहती  है  l  अब  वो  महाभारत  का  युग  बीत  गया  l  अब  जरुरी  है  कि   मनुष्य  का  विवेक  जागे  l  इतनी  हाय -तौबा  किस  लिए  ?  यदि  मन  की  शांति  नहीं  है   तो  सुख -वैभव  का  यह  दिखावा  किस  लिए  ?   ईश्वर  ने  हमें   चयन  की  स्वतंत्रता   दी  है  ,  यह  निर्णय  हमें  ही  करना  है  कि   हम   कौरवों  के  मार्ग  पर  चलें  या  पांडवों  की  तरह  सत्य  और  धर्म  के  मार्ग  पर  चलें  l    मार्ग   तो  दोनों  ही  कठिन  हैं  ,  अंतर  केवल   इतना  है  कि  सत्य  और  धर्म  के  मार्ग  पर  चलने  से  ईश्वर  की  प्रत्यक्ष   कृपा  का  लाभ  मिल  जाता  है  l