यह संसार कर्मभूमि है l यदि हमें विधाता के बनाए इस कर्म विधान को समझना है तो ' महाभारत ' का अध्ययन -मनन अवश्य करना चाहिए l हम सबसे जाने -अनजाने अनेक गलतियाँ हो ही जातीं हैं उनके परिणाम स्वरुप जीवन में सुख -दुःख आते रहते हैं और जीवन अपनी गति से चलता रहता है l लेकिन जो अपराध सोच -समझकर , योजनाबद्ध तरीके से , षड्यंत्र रचकर , धोखा देकर किए जाते हैं , उन अपराधों की कोई क्षमा नहीं मिलती और वैसे भी प्रकृति में क्षमा का प्रावधान नहीं है l दुर्योधन आदि कौरवों ने बचपन से ही पांडवों के विरुद्ध अनेक षड्यंत्र रचे , हर पल उन्हें अपमानित किया , उनका हक छीना , चौसर के खेल में छल से पांडवों को पराजित कर द्रोपदी को अपमानित किया l अत्याचार की अति हो गई l इस अति का अंत तो होना ही था l पांडवों ने अपने जीवन की डोर भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में सौंप दी l ईश्वर की प्रेरणा से ही महाभारत का महायुद्ध रचा गया , कौरव वंश समूल नष्ट हो गया l जिसने भी कौरवों का साथ दिया , उन सबका अंत हो गया l कहते हैं जो कुछ महाभारत में है , वही इस धरती पर है l परिवारों में , संस्थाओं में , समूचे संसार में --- जहाँ कहीं भी अशांति है , वहां उसके पीछे किसी न किसी का अहंकार है l रावण , दुर्योधन और उनके जैसा कोई भी अहंकारी हो उसके पास बाहरी सुख -वैभव अवश्य होता है लेकिन उनके मन में शांति नहीं होती l अपने अहंकार के पोषण के लिए उनके भीतर एक आग सी जलती रहती है l अब वो महाभारत का युग बीत गया l अब जरुरी है कि मनुष्य का विवेक जागे l इतनी हाय -तौबा किस लिए ? यदि मन की शांति नहीं है तो सुख -वैभव का यह दिखावा किस लिए ? ईश्वर ने हमें चयन की स्वतंत्रता दी है , यह निर्णय हमें ही करना है कि हम कौरवों के मार्ग पर चलें या पांडवों की तरह सत्य और धर्म के मार्ग पर चलें l मार्ग तो दोनों ही कठिन हैं , अंतर केवल इतना है कि सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने से ईश्वर की प्रत्यक्ष कृपा का लाभ मिल जाता है l
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