' इतिहास  इस  बात  का  साक्षी  है  कि   एक  अकेले  निष्काम  कर्मयोगी   नाना  फड़नवीस  ( जन्म 1744 )  के  पुण्य  प्रताप  से  महाराष्ट्र  मण्डल  की  नौका  जिसमे  अनेकानेक   महत्वाकांक्षी  पैंदे  में   छेद  करने  वाले  सामंत  बैठे  थे   फिर  भी  वह  तब  तक  नहीं   डूब  सकी   जब  तक  वे  जीवित  रहे   । '
मराठों के अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत के युद्ध में माता व पत्नी को खोकर वह एक साथ अनाथ और विधुर हो गए । मन में वैराग्य हो गया कि घर - बार त्याग कर संन्यासी हो जाये । एक दिन जब चित बहुत परेशान था तो वह समर्थ गुरु रामदास का ' दासबोध ' लेकर बैठ गये ।
इसके पठन, मनन ] चिंतन से उन्हें बोध हो गया कि संसार से भागना सम्भव नहीं है । मैं यदि निष्काम भाव से करणीय कर्म करता रहूँ तो मुझे संसार त्यागने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।
माधवराव द्वितीय के समय में नाना फड़नवीस महामात्य के पद पर पहुंचे । उस समय की परिस्थितियों में स्वार्थी लोग महाराष्ट्र को रसातल में ले जाने को उद्दत थे । इन सबके बीच नैतिक और निस्वार्थी नाना फड़नवीस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य पालन के कठिन दायित्व को जिस तत्परता से निभाते रहे वह अपूर्व धैर्य और साहस का ही कार्य था । वे अपने समय के चाणक्य माने जाते हैं । अंग्रेज उनकी राजनीति से भयभीत रहा करते थे ।
नाना साहब ने चालीस वर्षों तक राष्ट्र की जो सेवा की वह आज भी आदर्श है । उन्होंने सवाई माधवराव बालक पेशवा के आत्मघात के पश्चात् राघोबा के पुत्र बाजीराव को पेशवा स्वीकार किया क्योंकि पेशवा वंश में कोई उत्तराधिकारी बचा ही नहीं था । बाजीराव उनका जानी दुश्मन था फिर भी नाना साहब की राष्ट्र निष्ठा कि उसके पेशवा रहते हुए भी महाराष्ट्र को डूबने नहीं दिया । राजकार्य में रत रहते हुए भी वे सच्चे योगी , सच्चे संन्यासी थे ।
मराठों के अहमदशाह अब्दाली के साथ पानीपत के युद्ध में माता व पत्नी को खोकर वह एक साथ अनाथ और विधुर हो गए । मन में वैराग्य हो गया कि घर - बार त्याग कर संन्यासी हो जाये । एक दिन जब चित बहुत परेशान था तो वह समर्थ गुरु रामदास का ' दासबोध ' लेकर बैठ गये ।
इसके पठन, मनन ] चिंतन से उन्हें बोध हो गया कि संसार से भागना सम्भव नहीं है । मैं यदि निष्काम भाव से करणीय कर्म करता रहूँ तो मुझे संसार त्यागने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी ।
माधवराव द्वितीय के समय में नाना फड़नवीस महामात्य के पद पर पहुंचे । उस समय की परिस्थितियों में स्वार्थी लोग महाराष्ट्र को रसातल में ले जाने को उद्दत थे । इन सबके बीच नैतिक और निस्वार्थी नाना फड़नवीस राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य पालन के कठिन दायित्व को जिस तत्परता से निभाते रहे वह अपूर्व धैर्य और साहस का ही कार्य था । वे अपने समय के चाणक्य माने जाते हैं । अंग्रेज उनकी राजनीति से भयभीत रहा करते थे ।
नाना साहब ने चालीस वर्षों तक राष्ट्र की जो सेवा की वह आज भी आदर्श है । उन्होंने सवाई माधवराव बालक पेशवा के आत्मघात के पश्चात् राघोबा के पुत्र बाजीराव को पेशवा स्वीकार किया क्योंकि पेशवा वंश में कोई उत्तराधिकारी बचा ही नहीं था । बाजीराव उनका जानी दुश्मन था फिर भी नाना साहब की राष्ट्र निष्ठा कि उसके पेशवा रहते हुए भी महाराष्ट्र को डूबने नहीं दिया । राजकार्य में रत रहते हुए भी वे सच्चे योगी , सच्चे संन्यासी थे ।
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