अहंकार एक ऐसा दुर्गुण है जो व्यक्ति के सद्गुणों पर पानी फेर देता है और अनेक अन्य दुर्गुणों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है l रावण महापंडित , महाज्ञानी और परम शिव भक्त था लेकिन बहुत अहंकारी था l उसमें गुण तो इतने थे कि उसकी मृत्यु के समय भगवान राम ने भी लक्ष्मण को उसके पास ज्ञान प्राप्त करने के लिए भेजा l लेकिन उसके अहंकार ने उसके सारे गुणों पर परदा डाल दिया , उसके अहंकार को मिटाने के लिए स्वयं ईश्वर को अवतार लेना पड़ा l रावण स्वयं को असुरराज कहने में ही गर्व महसूस करता था l सम्पूर्ण धरती पर उसका आतंक था l अनेक छोटे -बड़े और सामान्य असुर ऋषियों को सताते थे , उनके यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों का विध्वंस करते थे l रावण सभी असुरों का प्रमुख था जिसे वर्तमान की भाषा में ' डॉन ' कहते हैं l माता सीता का हरण कर उसने स्वयं ही अपना स्तर गिरा लिया l वह ज्ञानी था और जानता था कि ऐसे कार्य से उसका समाज में सम्मान कम हो जायेगा इसलिए वह वेश बदलकर भिक्षा का कटोरा लेकर सीताजी के पास गया l रावण वध यही संदेश देता है कि छोटे और साधारण असुरों को मारने से , उनका अंत करने से असुरता के साम्राज्य का अंत नहीं होगा क्योंकि वे तो रावण के टुकड़ों पर पलने वाले , अपना जीविकापार्जन करने वाले थे l इन सबके मुखिया रावण का अंत करो तभी इस धरती से अधर्म और अन्याय के साम्राज्य का अंत होगा l इसी उदेश्य को ध्यान में रखकर यह ईश्वरीय विधान रचा गया l ईश्वर चाहते हैं कि धरती पर सभी प्राणी शांति और सुकून से रहें लेकिन जब मनुष्यों की आसुरी प्रवृत्ति प्रबल हो जाती है तब ईश्वर कोई विधान अवश्य रचते हैं l
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