शिक्षा  की  महत्ता  जितनी  बताई  जाये , कम  है , पर  विद्दा  को  ज्ञानचक्षु  की  उपमा  दी  गई  है  | उसके  आभाव  में  मनुष्य  अंधों  के  समतुल्य  माना  जाता  है  | विद्दा  सर्वोपरि  धन  है  | विद्दा  अमृतवर्षिणी  है |विद्दा  व्यक्तित्व  को  उभारती  है  , प्रतिभा  को  जगाती ,द्रष्टिकोण  को  उत्कृष्टता  से  जोड़ती है  और  अंत:करण  को  आत्मीयता  व  उदारता  से  लबालब  भरती  है  |
           कोरी  शिक्षा  तो  भ्रष्ट  चिंतन  और  दुष्ट  आचरण  द्वारा  मनुष्य  को  और  अधिक  खतरनाक  बना
देती है | ऐसे में ब्रह्मराक्षस ज्यादा जन्म लेते हैं जो हर किसी का अहित करते हैं |
सही शिक्षा वही है , जिसके द्वारा विद्दार्थी विचारों को आत्मसात कर सके , अच्छा इनसान बने , उसका व्यक्तित्व एवं चरित्र विकसित हो | साथ ही उसकी प्रतिभा एवं कुशलता का भी विकास हो ,जिससे वह आत्मनिर्भर होने के साथ साथ अपने राष्ट्र एवं समाज के लिये उपयोगी बन सके |
देती है | ऐसे में ब्रह्मराक्षस ज्यादा जन्म लेते हैं जो हर किसी का अहित करते हैं |
सही शिक्षा वही है , जिसके द्वारा विद्दार्थी विचारों को आत्मसात कर सके , अच्छा इनसान बने , उसका व्यक्तित्व एवं चरित्र विकसित हो | साथ ही उसकी प्रतिभा एवं कुशलता का भी विकास हो ,जिससे वह आत्मनिर्भर होने के साथ साथ अपने राष्ट्र एवं समाज के लिये उपयोगी बन सके |
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