19 August 2025

WISDOM -----

  लघ







































 आचार्य  ज्योतिपाद  संध्या  के  बाद  उठे  ही  थे  कि  एक  ब्राह्मण  , जिसका  नाम  आत्मदेव  था  , उसने  उनके  चरण  पकड़  लिए  l  वह  बोला  --- " आप  सर्वसमर्थ  हैं  , एक  संतान  दे  दीजिए  l  आपका  जीवन  भर  ऋणी  रहूँगा  l "  आचार्य  बोले  ---" संतान  से  सुख  पाने  की  कामना  व्यर्थ  है  l  तुम्हारे  भाग्य  में  संतान  नहीं  है  l   जिसने   पूर्व जन्म  में  अपनी  संपत्ति  को  लोकहित  में  नहीं  लगाया  , वह  अगले  जन्म  में  संतानहीन  होता  है  l  संतान  दैवयोग  से  मिल  भी  गई   तो  उसका  कोई  औचित्य  नहीं  है  l  "   लेकिन  आत्मदेव  ने  उनके  चरण  नहीं  छोड़े   और  बोला  ---- " या तो  पुत्र  लेकर  लौटूंगा   या  आत्मदाह  कर  लूँगा  l "  आचार्य  ने  कहा  --- " श्रेष्ठ  आत्माएं  ऐसे  ही    नहीं  आतीं  l  यदि  विधाता  की  ऐसी  ही  इच्छा  है   तो  यह  फल  तुम  अपनी  पत्नी  को  खिलाना   और  धर्मपत्नी  से  कहना   कि  वह   एक  वर्ष  तक  नितांत  पवित्र  रहकर   दान -पुण्य  करे  l "  आत्मदेव  प्रसन्न  भाव  से  लौटा   और  फल  अपनी  पत्नी  धुंधली  को   दे  दिया   और  जैसा  आचार्य ने  कहा  था  उसे  पवित्र  आचरण  करने  को  कहा  l   पत्नी  धुंधली  ने  सोचा  --पवित्रता  का  आचरण  और  दान  , और  वह  भी  वर्षभर  , मैं  न  कर  सकुंगी  l  उसने  वह  फल  गाय  को  खिला  दिया  l  समय  पर  बहन  का  पुत्र  गोद  ले  लिया  , घोषणा  कर  दी  कि  पुत्र  हुआ  , उसका  नाम  धुंधकारी  रखा  l  बाल्यावस्था  से  ही   वह  दुराचारी , जुआ  खेलने  वाला  , भोगी , दुराचारी  निकला  l  माता -पिता  कुढ़कर  , दुःख  में  मर  गए  , वह  भी  अकालमृत्यु  को  प्राप्त  हुआ  l  जीवन  में  किए  गए  पापों  के  कारण   वह  प्रेत योनि  को  प्राप्त  हुआ  l  धुंधली  ने  जिस  गाय  को  वह  फल  खिलाया  था   उस  गोमाता  ने  गोकर्ण  नामक  पुत्र  को  जन्म  दिया  l   वह  परम  विद्वान  और  धर्मात्मा  था  , उसने  प्रेत योनि  में  पड़े   धुंधकारी  को  भागवत  कथा   सुनाकर   मुक्त  कराया  l   









कि  

17 August 2025

WISDOM ------

  अपनी  शक्ति  के  बल  पर  किसी  भूभाग  को  जीतना  ,  लोगों  को  अपना  गुलाम  बनाना  बहुत  सरल  है   लेकिन  अपने  ही  मन  को   काबू  में  रखना  , उसकी  लगाम  अपने  हाथ  में  रखना  सबसे  कठिन  कार्य  है  l   कोई  कितना  भी  शक्तिशाली  क्यों  न  हो  यदि  उसका  अपनी  कामना , वासना  , तृष्णा , महत्वाकांक्षा, अहंकार     जैसे  विकारों  पर  नियंत्रण  नहीं  है   तो  वह  इन  विकारों  के  वशीभूत  होकर  किसी  न  किसी  की  गुलामी  अवश्य  करेगा  l  जैसे  रावण  कितना  शक्तिशाली  और  ज्ञानी  था   लेकिन  उसका  अपने  मन  पर  नियंत्रण  नहीं  था  l  सीताजी  को  पाने  के  लिए  अपनी  लंका  छोड़कर  , भिखारी  बनकर   , सबसे  छुपते -छिपाते   कटोरा  लेकर   पर्णकुटीर  आ  गया  l  अपनी  धूर्तता  के  बल  पर  वह  उन्हें  लंका  ले  भी  गया  , बहुत  प्रलोभन  दिए  --तुम  मेरी  पटरानी  बनो , मंदोदरी  तुम्हारी  सेवा  करेगी  l  सीताजी  के  आगे  वह  कितना  झुका  !  सीताजी  ने  उसे  देखा  तक  नहीं  l  लंकापति  रावण  उनकी  एक  नजर  के  लिए  भी  तरस  गया  l  ऐसी  शक्ति  किस  काम  की  !     हमारे  ऋषियों  का   आचार्य का  कहना   है कि  मन  को  जबरन  और  डंडे  के  बल  पर  नियंत्रण  में  नहीं  रखा  जा  सकता  l  जबरन  नियंत्रित  किए  गए  मन  में  विस्फोट  की  संभावना  बनी  रहती  है  l  स्वयं  के  अनुभव  से   अर्थात  अब  तक  जो  अनुपयुक्त  किया  उसके  दुष्परिणामों  को  समझकर   और  दूसरों  की  दुर्गति  से  शिक्षा  लेकर  भी   अपने  मन  को  साधा  जा  सकता  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  मन  की  चंचलता  पर  नियंत्रण  रखने  का  सबसे  सरल  उपाय  बताया , उन्होंने  कहा  कि  निष्काम  कर्म  से , नि: स्वार्थ  सेवा  से   मन  पर  जमी   मैल   की  परतें  हटती  जाती  हैं   और  मन  निर्मल  हो  जाता  है  l  हमारे  मन  पर  जन्म -जन्मान्तर  का  मैल  चढ़ा  हुआ  है  ,  इसकी  धुलाई -सफाई  इतनी  सरल  नहीं  है  l  जब  भी  कोई   इस  दिशा  में  आगे  बढ़ने  का  प्रयास  करता  है   तो  मन  की  गहराई  में  छुपी  हुई  गंदगी , नकारात्मकता  उछलकर  और  बाहर  आती  है  ,  मन  को  विचलित  करने  का  हर  संभव  प्रयास  होता  है  ,  इसे  ईश्वर  द्वारा  ली  जाने  वाली  परीक्षाएं  भी  कह  सकते   हैं  l  ईश्वर  के  प्रति    समर्पण  और  उनके  शब्दों  पर  श्रद्धा  और  विश्वास  से  ही   इस  बेलगाम  मन  को  नियंत्रित  किया  जा  सकता  है  l  

9 August 2025

WISDOM -----

   मानव  जीवन  में  आज  जितनी  भी  समस्याएं  हैं  ,  वे  कोई  नई  समस्या  नहीं  है  ,  ये  सब  युगों  से  चली  आ  रहीं  हैं  l   मानसिक   विकृतियां   जन्म -जन्मान्तर  के  संस्कार  हैं   जो  पीछा  नहीं  छोड़ते  l  समाज  में  , परिवार  में  जो  भी  अपराध  होते  हैं  ,  यदि  निष्पक्ष  भाव  से   सर्वे  किया  जाए  तो  यह  सत्य  सामने  आएगा  कि  उनकी   पूर्व  की  6 -7   पीढ़ियों  में  भी  लोग  इसी  तरह  के  अपराधों  में  संलग्न  रहे  हैं  l  बुरी  आदतें   संस्कार  बनकर  पीढ़ी -दर -पीढ़ी  आ   जाती   हैं  l  जब  तक  मनुष्य    संकल्प  लेकर   स्वयं  को  सुधारने  का  प्रयत्न  न  करे  सुधार  संभव  नहीं  है   ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा   जैसे  विकारों  के  कारण  ही  अशांति  है  l  सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि  आज  मनुष्य  किसी  को  खुश  नहीं  देख  सकता  l  त्रेतायुग  में  भी   यही  था  , मंथरा  को  ईर्ष्या  थी   वह  श्रीराम  को  राजगद्दी  पर   और  सीताजी  को  महारानी  के  रूप  में  नहीं  देख  सकती  थी   इसलिए  उसने  कैकयी  के  कान  भरे   कि  राम  के  लिए  राजा  दशरथ  से  वनवास  मांगो   और  भारत  के  लिए  राजगद्दी  l    अपनी  बातों  से  किसी  के  माइंड  को  वाश  कर  देना   यह  तकनीक  युगों  से  चली  आ  रही  है  l  महाभारत  में  शकुनि  ने  भी  इसी  तरह  दुर्योधन  के  मन  में  पांडवों   के  लिए  ईर्ष्या , द्वेष  भर  दिया  था  l  इसी  तकनीक  का  प्रयोग  कर  के   ईर्ष्यालु  लोग  किसी  का  घर  तोड़ते  हैं  ,  पति -पत्नी  में  झगड़े   और  परिवारों  में  क्लेश   कराते    हैं  l  हर  किसी  का  मन  इतना  मजबूत  नहीं  होता  ,  अधिकांश  लोग  कान  के  कच्चे  होते  हैं  और  बड़ी  जल्दी  दूसरों  की  बातों  में  आकर  अपना  ही  नुकसान  करा  लेते  हैं   l   जब  तक  मनुष्य  को  ईश्वर  का  और  अपने  कर्मों  के  परिणाम  का  भय  नहीं  होगा   स्थिति  में  सुधार  संभव  नहीं  है  ,  मनुष्य  इतिहास  से  शिक्षा  नहीं  लेता  ,  गलतियों  को  बार -बार  दोहराता  है  l  

8 August 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त  ' में   छोटी -छोटी  कथाओं  और  प्रसंगों  के  माध्यम  से    हम  सभी  को  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  उनके  विचार  हमें  पलायन  करना  नहीं  सिखाते  l  उन्होंने  अपने  साहित्य  के  माध्यम  से  यही  सिखाया  कि  कैसे  संसार  में  रहते  हुए  , गृहस्थ  जीवन   जीते  हुए  एक  योगी  की  भांति  जीवन  जिया  जा  सकता  है  l  यदि  मनुष्य  का  मन  संसार  में  है  , ऐसे  में  उसका  एकांत  में  रहना , हिमालय  पर  जाना  व्यर्थ  है  l  मन  पर  नियंत्रण  जरुरी  है  और  वह  भी  स्वेच्छा  से  , जबरन  नहीं  l ----------- सम्राट   पुष्यमित्र  का  अश्वमेध  यज्ञ   संपन्न  हुआ  l  दूसरी   रात  अतिथियों  की  विदाई  के  उपलक्ष्य  में    नृत्य -उत्सव    रखा  गया  l  महर्षि  पतंजलि  भी  उस  उत्सव  में  सम्मिलित  हुए  l  महर्षि  के  शिष्य  चैत्र  को   उस  आयोजन  में  महर्षि  की  उपस्थिति   अखर    रही  थी  l  उसके  मन  में  लगातार  यह  विचार  आ  रहे  थे  कि  महर्षि   तो  संयम , यम नियम    ----- योग  की  शिक्षा  देते  हैं   और  स्वयं   नृत्य -संगीत    देख  रहे  हैं  l  उस  समय  तो  चैत्र  ने   कुछ  नहीं  कहा  ,  पर  एक  दिन  जब  महर्षि  ' योग दर्शन  '  पढ़ा  रहे  थे   तब  चैत्र  ने   उनसे  कहा ---- "  गुरुवर  !  क्या  नृत्य -गीत  के  रास -रंग  चितवृत्तियों   के  निरोध  में  सहायक  होते  हैं   ?  "  महर्षि  ने  शिष्य  का  अभिप्राय  समझा   और  कहा  --- " सौम्य  !   आत्मा  का  स्वरुप  रसमय  है  l  उसमें  उसे  आनंद  मिलता  है  और  तृप्ति  भी   l  वह  रस  विकृत  न  होने  पाए   और  अपने  शुद्ध  स्वरूप  में  बना  रहे  ,  इसी  सावधानी  का  नाम  संयम  है   l   विकार  की  आशंका  से  रस  का  परित्याग   कर  देना  उचित  नहीं   l  क्या  कोई  किसान  पशुओं  द्वारा  खेत  चर   लिए  जाने  के  भय  से   कृषि  करना  छोड़  देता  है  ?   रस  को  नहीं  उसकी  विकृति  को  हेय    माना  जाता  है  l "  

5 August 2025

WISDOM -----

 भगवान  बुद्ध  अपने  ज्ञान  का  प्रकाश  संसार  को  दे  रहे  थे  l  एक  सेठ  भी  उनका  प्रवचन  नियमित  सुनता  था  l  उसने  तथागत  से  कहा --- भगवन  ! मैं  नियमित  प्रवचन  सुनता  हूँ  लेकिन  मेरे  मन  में  शांति  नहीं  है  l  ईश्वर की  कृपा  कैसे मिले   ?  महात्मा  बुद्ध  ने  उस  समय  तो  कुछ  नहीं  कहा  l  दूसरे  दिन  वे  उस  सेठ  के  घर   पहुंचे  ,   उनके  आने  की   सूचना    मिलने  पर  उसने  बड़े  प्रेम  से  उनके  लिए  खीर  बनवाई  और  उनके  कमंडल  में   देने  लगा  l  उसने  आश्चर्य  से  देखा कि  कमंडल  में  तो  गोबर  भरा  हुआ  है  l  उसने  कमंडल  उठाया  , उसे  अच्छी  तरह  साफ़  किया  , फिर  उसमें  खीर   रखी  l  खीर  रखने  के  बाद  वह  तथागत  से  बोला  ---- " भगवन  !  कहीं  भिक्षा  हेतु  पधारा करें  तो   अपना  कमंडल  साफ़  करके  ही  लाया करें  l  गंदे पात्र  में  खीर  रखने  से   आहार  की   पवित्रता   नष्ट  हो  जाएगी  l  " भगवान  बुद्ध  शांत  भाव  से  बोले --- " वत्स  !  भविष्य  में  कभी  आऊंगा  तो  कमंडल  साफ  कर  के  ही  लाऊंगा  l  तुम  भी  अपना  कमंडल  साफ  रखा  करो  l "  सेठ  ने  आश्चर्य  से  कहा --- " कौन  सा  कमंडल  ? "  तथागत  बोले  ---- "  यह  तन  रूपी  कमंडल   !  मन  में  मलिनता  भरी  रहने  से   जीवन  भी  कलुषित  हो  जाता  है  l  मन  को  शांति  नहीं  मिलती  और  भगवान  की  कृपा  भी  उसमें  ठीक  से  कार्य  नहीं  करती  l  "  सेठ  को  बात  समझ  में  आ  गई   और  अब  वह  भी   अपने   दोष -दुर्गुणों  को  मिटाने  में  जुट  गया  l  

4 August 2025

WISDOM -----

   संसार  के  लगभग  सभी  देशों  में   धर्म , जाति , रंग ,  ऊँच -नीच , अमीर -गरीब  आदि  के  आधार  पर   भेदभाव   प्राचीन  काल  से  ही  रहा  है   और  इस  वैज्ञानिक  युग  में  भी   इस  प्रकार  के  भेदभाव  समाप्त  नहीं  हुए  l  ऐसी  बेवजह  की  बातों  पर  विवाद , युद्ध , दंगे  आदि  कर  के  मनुष्य  ने   बहुत  कुछ  खोया  है  l  भौतिक  प्रगति  तो  हो  गई   लेकिन  चेतना  के  स्तर  पर   आज  मनुष्य  कहाँ  पर  है   इसे  संसार  में  होने  वाले  युद्ध , हत्याकांड , आत्महत्या , और  धन  कमाने  की  अंधी  दौड़  को  देखकर  समझा  जा  सकता  है  l  यदि  मनुष्य  की  चेतना  विकसित  हो  , उसमें  अहंकार  न  हो  तो  वह  जीवन  में   घटने  वाली  अनेक  घटनाओं  के  पीछे  की  वजह  समझ  जाता  है   और  उनसे  लाभान्वित  होता  है  l ---------- महाभारत  में  जब  चौसर  के  खेल  में  पराजित  होने  पर  पांडवों  को  वनवास  हुआ  l  उस  समय  दिव्य  अस्त्रों   को  प्राप्त  करने  के  लिए  अर्जुन  ने  महादेव  को  प्रसन्न  करने  के  लिए  तप  किया  l  ईश्वर  से  कुछ  प्राप्त  करना  हो  तो  बड़ी  परीक्षाएं  देनी  पड़ती  हैं  l  अर्जुन  जिस  वन  में  तप  कर  रहा  था  वहीँ  महादेव  जी  व्याध  के  रूप  में  शिकार  करने   उसी  वन  में  पहुंचे  l  वे   एक  जंगली  सुअर  का  पीछा  कर  रहे  थे  l  सामने  अर्जुन  को  देख   सुअर  उस  पर  झपटा  l  अर्जुन  चौंक  गया  और  तुरंत  अपने  गांडीव  से  बाण  चला  दिया  l  उसी  समप  व्याध  रूप  धारी  महादेव  ने  भी  सूअर  पर  तीर  चला  दिया  l  दोनों  के  तीर  एक  साथ  लगे  l  अपने  शिकार  पर  एक  शिकारी  को  हमला  करते  देख  अर्जुन  को  क्रोध  आया   उसने  शिकारी  से  कहा --- ' तुमने  मेरे  शिकार  पर  अपना  तीर  चलाने  की  हिम्मत  कैसे  की  ?  '   दोनों  में  बहुत  विवाद  हुआ  कि  किसका  तीर  पहले  लगा  ?   विवाद  इतना  बड़ा  कि  यह  निश्चय  हुआ  कि  आपस  में  लड़कर  निश्चय  हो  कि  किसके  तीर  से  शिकार   मरा  है  l  अर्जुन  ने  व्याध  पर   बाणों   की  वर्षा  की  l  जितने  भी  उसके  पास  बाण  थे  , सब  चला  दिए  लेकिन  व्याध  पर  कोई  असर  नहीं , वह  हँसता  रहा  और  उसने  हँसते  हुए  अर्जुन  के  हाथ  से  उसका  धनुष  छीन  लिया  l  अर्जुन  ने  तलवार  से  मारा  तो  तलवार  टूट  गई ,  अब  अर्जुन  ने  घूंसे  मारना  शुरू  किया   लेकिन  व्याध  पर  कोई  असर  नहीं  , वह  मुस्कराता  रहा  l  अर्जुन  का  दर्प  चूर -चूर  हो  गया , अपना  घमंड  छोड़कर  उसने  देवाधिदेव  महादेव  का  ध्यान  किया  , ईश्वर  की  शरण  ली  तो  उसके  मन  में  ज्ञान  का  प्रकाश  फ़ैल  गया  , वह  समझ  गया  कि  ये  व्याध  नहीं  साक्षात्  महादेव  हैं  , अर्जुन  उनके  चरणों  में  गिर  गया  , उनसे  क्षमा  मांगी  l  महादेव  ने  प्रसन्न  होकर  अर्जुन  को  पाशुपत  अस्त्र  और  अनेक  दिव्य  अस्त्र  तथा  अनेक  वरदान  दिए  l     यहाँ  अर्जुन  ने  अपने  अहंकार  को  छोड़ा  और  ईश्वर  के  प्रति  शरणागत  हुआ  तब  उसे  ईश्वर  की  कृपा  मिली  l  -------------  एक  दूसरी  कथा  है  ------ उत्तंक  मुनि  मरुभूमि  के  आसपास  घूमने  वाले  तपस्वी  थे  l  जब जब  भगवान  श्रीकृष्ण  पांडवों  से  विदा  लेकर  द्वारका  लौट  रहे  थे  तब  मार्ग  में  उनकी  भेंट  उत्तंक  मुनि  से  हुई  l  उनसे  प्रसन्न  होकर  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उनसे  कहा  --- 'मुनिवर !  मैं  आपको  कुछ  वरदान  देना  चाहता  हूँ  , जो  चाहें  मांग  लो  l ' उत्तंक  मुनि  ने  कहा --- "  भगवन  आपके  दर्शन  हो  गए  , अब  किसी  वरदान  की  चाह  नहीं  है  l ' भगवान  ने  उनसे  आग्रह  किया  कि कोई  वरदान   मांग  लो  ! '  उत्तंक  मुनि  मरुभूमि  में  घूमते थे  इसलिए  उन्होंने  कहा  ---" प्रभो  !  आप  इतना  वरदान  दें  कि  मुझे  जब  भी  और  जहाँ  कहीं  भी  जल  की  आवश्यकता  हो  , मुझे  वहीँ  जल  मिल  जाए  l '  भगवान  वरदान  देकर  द्वारका  चले  गए  l   बहुत  दिन  बाद  उत्तंक  मुनि  वन  में  फिर  रहे  थे  ,  उन्हें  बड़ी  प्यास  लगी  , उन्होंने   श्रीकृष्ण  का  ध्यान  किया  ,  तुरंत  ही   उन्हें  सामने  एक  चाण्डाल  खड़ा  दिखाई  दिया  ,  उसने  फटे -पुराने  चीथड़े  पहन  रखे  थे  , साथ  में  चार -पांच  जंगली  कुत्ते  थे  और  कंधे  पर  मशक  में  पानी  था  l  चांडाल  बोला  --- "  मालूम  होता  है  आप  प्यास  से  परेशान   हैं  l  यह  लीजिए   पानी  l '   चांडाल  की  गन्दी  सूरत , उसकी  चमड़े  की  मशक   और  कुत्तों  को  देखकर  उन्होंने  नाक -भौं  सिकोड़  ली   और  उसका  पानी  लेने  से  इनकार  कर  दिया    उत्तंक  मुनि  को  बहुत  क्रोध  आया  कि  श्रीकृष्ण  ने  मुझे  झूठा  वरदान  कैसे  दिया ,  मैं  ब्राह्मण  , उस  चांडाल  के  हाथ  का  , मशक  का  गन्दा  पानी  कैसे  पी  सकता  हूँ  ? '  उसी  समय  चांडाल  अचानक  कुत्तों  समेत   आँखों  से  ओझल  हो  गया  l  अब  उत्तंक  मुनि  समझे  कि  यह  तो  उनकी  परीक्षा  थी  ,  उनसे  भारी  भूल  हो  गई  ,  मेरे  ज्ञान  ने  समय  पर  मेरा  साथ  नहीं  दिया  l  थोड़ी  देर  में  भगवान  श्रीकृष्ण   शंख , चक्र  लिए  उनके  सामने  प्रकट  हुए  l  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- " मुनिवर  !  आपने  पानी  की  इच्छा  की  थी  तो  मैंने  देवराज  से  आग्रह  किया  कि  मुनि  को  अमृत  ले  जाकर  पिलाओ  l  तब  देवराज  ने  कहा  कि  मैं  चांडाल  के  रूप  में  जाऊँगा  , यदि  मुनि  ने  इनकार  कर  दिया   तो  नहीं  पिलाऊंगा  l  ' कृष्णजी  ने  कहा   मैंने  सोचा  था  कि  आप  ज्ञानी   और  महात्मा  हैं , आपके  लिए  तो  चांडाल  और  ब्राह्मण  समान  होंगे   और  चांडाल  के  हाथ  का  पानी  पीने  में  आप  संकोच  नहीं  करेंगे   लेकिन  स्वयं  को  श्रेष्ठ  समझने  के  कारण  आप  अमृत  से  वंचित  रह  गए  l  "  उत्तंक  मुनि  अपनी  गलती  पर  बहुत  लज्जित  हुए   लेकिन  अब   क्या  हो  सकता  है  ?  देवराज    अमृत  लेकर  वापस  जा  चुके  थे  l  

2 August 2025

WISDOM ------

 वृक्ष  ने  पथिक  से  कहा --- " तुम  जितनी  बार  पत्थर  मारोगे  , उतनी  ही  बार  मैं  उपहार  में  फल  दूंगा  l  यह  तो  मेरा  व्रत  है l  पत्थर  का  उत्तर  पत्थर  से  देना  मुझे  नहीं  आता  , भले  ही  मुझे  कितना  ही  कष्ट  क्यों  न  हो  l "  पथिक  ने  कुढ़कर  कहा --- "  तुम  यों  फलो -फूलो   और  मैं  भूखा  फिरु, क्या यह  तुम्हारा  और  तुम्हारे  भगवान  का  अन्याय  नहीं  l "    वृक्ष  ने  हँसकर  कहा --- "  ईर्ष्या  क्यों  करते  हो  पथिक  !  मेरे  पतझड़  के  कष्टों  को  देखते  तो   पता  चलता  कि  यह  फल  मैंने  कितनी  तपस्या  कर  प्राप्त  किए  हैं  ?  तू  भी  वैसा  ही  पुरुषार्थ  कर  देखो  l  "                                                                                                                                                                 सत्य  है  किसी  को  सफल  होते  देख  उससे  ईर्ष्या  करने  वालों  की  कमी  नहीं  है  l   लोग  सफल  व्यक्ति  को  देखकर  जलते  भी  हैं  और  उसे  नीचे  गिराने   का  हर  संभव  प्रयत्न  भी  करते  हैं  l  सफलता  प्राप्त  करने  के  लिए   उसने   जो  त्याग  और  तपस्या  की , कठिन  संघर्ष  किया   , उससे  प्रेरणा  लेकर  वे   स्वयं  सफल  होने  के  लिए  कोई  प्रयत्न  नहीं  करते  l  अब  लोग  शार्ट कट  से  सफल  होना  चाहते  हैं   लेकिन  गलत  तरीके  से  प्राप्त  सफलता  में  कोई   सुकून  व  आनंद  नहीं  होता  , हमेशा  गिरने  का  भय  सताता  रहता  है  l  

31 July 2025

WISDOM -----

   लघु -कथा ---- जीवन  का  रहस्य ---- देवताओं  और  असुरों  में  घोर  युद्ध  हो  रहा  था   l  राक्षसों  के  शस्त्र बल  और  युद्ध  कौशल  के  सम्मुख  देवता  टिक  नहीं  पाते  थे  l  वे  हारकर  जान  बचने भागे  और  महर्षि   दत्तात्रेय  के  पास  पहुंचे  और  उन्हें  अपनी  विपत्ति  की  गाथा  सुनाई  l  महर्षि  ने  उन्हें  धैर्य  बँधाया  और  पुन:  लड़ने  को  कहा  l  इस  बार  भी  देवता  पराजित  हो  गए   और  भागकर  महर्षि   दत्तात्रेय  के  पास  आए  l  इस  बार  असुरों  ने  भी  उनका  पीछा  किया   और  वे  भी  आश्रम  में  आ  पहुंचे  l  असुरों  ने  आश्रम  में   बैठी  हुई  एक  अति  सुन्दर  युवती  को  देखा   तो  वह  लड़ना  भूल  गए  और  उस  स्त्री  पर  मुग्ध  हो  गए   और  उसके  अपहरण  की  योजना  बनाने  लग  गए  l  वह  स्त्री  रूप  बदले  हुए  लक्ष्मीजी  थीं  ,  असुरों  का  पुइरा  ध्यान  उन्ही  पर  केन्द्रित  हो  गया  l  महर्षि  ने  देवताओं  से  कहा  --- "  अब  तुम  तैयारी  कर  असुरों  पर  आक्रमण  करो  l "  इस  बार  के  युद्ध  में  असुर  बुरी  तरह  पराजित  हुए  l  विजय  प्राप्त  कर  के  देवता  फिर  से  महर्षि  दत्तात्रेय  के  आश्रम  पहुंचे   और  उनसे  पूछा  --- "  भगवान  !  दो  बार  पराजय  और  अंतिम  बार  विजय  का  रहस्य  क्या  है  ? "  महर्षि  ने  कहा --- "  जब  तक  मनुष्य  सदाचारी  और  संयमी   रहता  है  , तब  तक  उसमें  पूर्ण  बल  विद्यमान  रहता  है   और  जब  वह  कुपथ  पर  कदम  रखता  है  , तो  उसका  आधा  बल  क्षीण  हो  जाता  है  l  पर -स्त्री  का  अपहरण  करने  की  कुचेष्टा  में  असुरों  का  आधा  बल  नष्ट  हो  गया  ,  तभी  तुम  उन  पर  विजय  प्राप्त  कर  सके  l "  

29 July 2025

WISDOM ---

 इस  युग  की  सबसे  बड़ी  समस्या   दुर्बुद्धि की  है  l  मनुष्य  स्वस्थ  रहे  , सुखी  रहे  , इसके  लिए  विभिन्न  तरह  की  चिकित्सा  पद्धति  हैं  लेकिन  फिर  भी   मनुष्य  स्वस्थ  नहीं  है  l  बड़े - छोटे , सस्ते - महँगे  हर  तरह  के   अस्पताल   बीमार  लोगों  से  भरे  हैं  l  जिसके  पास  सब  सुख -सुविधा  है  , वह  भी  पूर्ण  स्वस्थ  नहीं  है  l    इसका  कारण  हमारे  ऋषियों  ने  बताया   --' ओषधियां   तो  व्याधियों  की  रोकथाम  भर  करती  हैं  , मन  के  पतन  पर  उनका  नियंत्रण  नहीं  है  l  जब  मनुष्य  का  मन  अधर्मरत  होकर  विपत्तियों  को  आमंत्रित  करेगा  , तब  मनुष्य  के  हाथ  में  उपचार  का  अमृत कलश  भी  हो  तब  भी  वह  रोगी  होगा  l '   दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  आज  मनुष्य   पांचो  तत्वों  को  , सम्पूर्ण  प्रकृति  को  प्रदूषित  कर  रहा  है   और  स्वयं  आत्महत्या  की  ओर  बढ़  रहा  है  l  ऋषि   पुनर्वसु  कहते  हैं ---- " बुद्धि  विपर्यय   मनुष्य  का  सबसे  बड़ा  दुर्भाग्य  है  l  बुद्धि  के  भ्रमित  और  पतित  होने  पर   मनुष्य  जो  करने  योग्य  काम  है  उसका  परित्याग  कर  देता  है   और  न  करने  योग्य  काम  को  करने  की  प्रवृत्ति  बढ़ती  है  l  इससे  न  केवल  शारीरिक  व्याधियां  बढ़ती  हैं  , वरन  हर  दिशा  से  विपत्तियाँ  बरसती  हैं  l  इसलिए  शारीरिक  व्याधियों  के  निवारण  हेतु   मानसिक  व्याधियों  का   समाधान  अधिक  आवश्यक  और  प्राथमिकता  देने  योग्य  है  l  "  

26 July 2025

WISDOM -------

  जीवन  में  सफलता  के  लिए  जागरूकता  बहुत  जरुरी  है  l   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- 'जीवन  जीना  एक  तकनीक  है  , कला  है  l  जो  इसे  जानता  है  , सही  मायने  में  वही  कलाकार  एवं  प्रतिभावान  है  l '   व्यक्ति  पढ़ -लिख  कर  , शिक्षा  प्राप्त  कर  उच्च  पदों  पर  पहुँच  जाता  है   लेकिन  अपनी  सामान्य  सी  जिन्दगी  को  चलाने  के  लिए   नशा , शराब  जैसे  मादक  द्रव्यों  का  सहारा  लेता  है  l  शांति  और  सुकून  के  साथ  जीवन  जीने  के  लिए  बहुत  बड़ी  बातों  की  , सिद्धांतों  की  आवश्यकता  नहीं  होती  l  यदि  मनुष्य  कोई  भी  कार्य  सोच -विचारकर   विवेकपूर्ण  ढंग  से  करे  तो  व्यर्थ  की  परेशानियों  से  बच  सकता  है  l  बहुत  छोटी  सी  बात  है  --मनुष्य  अपने  स्वाद  पर  नियंत्रण  रखे  , बिना  सोचे -विचारे  कुछ  न  खाए -पिए  तो  अनेक  समस्याओं  से , बीमारी  से  बच  सकता  है  l  एक  कथा  है  --- रेगिस्तान  में  एक  काफिला  जा  रहा  था  l  रास्ते  में  एक  पेड़  पर  बहुत  से  पके  फल  लगे  थे  l  सबको  भूख  लगी  थी  , इसलिए  फल  खाने  को  दौड़े  l  काफिले  के  सरदार  ने  उन्हें  रोका  और  कहा  ---'अपने  विवेक  से  काम  लो  l  यदि  ये  उपयोगी  होते  तो  पहले  वाले  काफिले  ही  इन्हें  खाकर  समाप्त  कर  देते  l  पक्षी  ही  इन्हें  कुतर  डालते   l  लेकिन  ऐसा  नहीं  हुआ  l  '  फलों  का  परिक्षण  करने  पर  पता  चला  कि  वे  जहरीले  थे  l  विवेक  से  काम  लेने  से  काफिले  के  प्राणों  की  रक्षा  हुई  l   

24 July 2025

WISDOM -----

 आज  संसार  में  चारों  ओर  भय  का   वातावरण  है  l  इसका  सबसे  बड़ा  कारण  है   कि  कलियुग  के  प्रभाव  से  लोगों  में  कायरता  बढ़ती  जा  रही  है  l  ईर्ष्या , द्वेष , कामना , वासना , महत्वाकांक्षा  , लालच  और  दमित  इच्छाओं  की  पूर्ति  के  लिए  अब  लोग  प्रत्यक्ष  रूप  से  कोई   वाद -विवाद , हाथापाई  और  किसी  तरह  की  लड़ाई  नहीं  करते  l  ऐसा  करने  से  उनका  असली  चेहरा  सामने  आ  जायेगा  l  इसलिए   समाज  में  सबके  सामने  सभ्य  बने  रहकर  लोग  पीठ  पर  वार  करते  हैं  l  धोखा , षड्यंत्र , ब्लैकमेल , माइंडवाश  करना  ,  यह  सब  आम  बात  हो  गई  है  l  यही  कारण  है  कि  आज  सब  भयभीत  है  l  घर , परिवार , आफिस , समाज  में  आप  जिसके  साथ  हैं , जिसका  विश्वास  करते  हैं  ,  वह  अपनी  चालाकी  से , अपनी  दुर्बुद्धि  से  आपको  कब  गिरा  दे , मार  दे  , कोई  नहीं  जानता  l  वातावरण  में  इतनी  नकारात्मकता  है  कि  अब  किसी  का  भी  विश्वास  नहीं  किया  जा  सकता  l  भय  का  एक  दूसरा रूप  भी  है  , जहाँ  व्यक्ति  अपनी  ही  कमजोरियों  से  भयभीत  है  l  और  आश्चर्य  यह  है  कि  वह  अपनी  कमजोरियों  पर  विजय  पाने  का  कोई  प्रयास  नहीं  करता   बल्कि  अपनी  कमजोरियों  के  साथ  जीवन  जीने  के  लिए  किसी  भी  हद  तक  जा  सकता  है  l  वैराग्यशतक  में  भतृहरि  ने  लिखा  है ---- " भोग  में  रोग  का  भय ,  सत्ता  में  शत्रुओं  का भय , सामाजिक  स्थिति  में  गिरने  का  भय  , सौन्दर्य  में  बुढ़ापे  का  भय   और  शरीर  में  मृत्यु  का  भय  है  l  इस  संसार  में  सब  कुछ  भय  से  युक्त  है  l  निर्भयता  से  जीने  के  लिए  उन्होंने  त्याग  का  मार्ग  बताया  है  l  "    लेकिन  युग  का  प्रभाव  ऐसा  है  कि  अब  लोग  'त्याग ' शब्द  को  ही  भूल  गए  हैं  l    जब   मनुष्य  से  ईश्वर  से    डरेगा  , ईश्वर  से  भय  खायेगा  , तभी  उसे  संसार  में  दूसरा  भय  नहीं  सताएगा  l  

17 July 2025

WISDOM ------

  प्राकृतिक  आपदाएं  तो संसार  में  शुरू  से  ही  आती  रही  हैं    लेकिन  मनुष्य  अपनी  गलतियों  से  इन  आपदाओं  की  तीव्रता  को  बढ़ा  देता  है  l  मनुष्य  कहाँ  गलत  है  इसे  सरल  ढंग  से  समझा  जा  सकता  है  , जैसे  --मनुष्य  अपनी  धन -संपदा ,  गहने , बहुमूल्य  धातुओं  को  बहुत  संभालकर  , छुपाकर  रखता  है  l  चोरी  से  बचने  के  लिए  तो  छुपाकर  रखा  ही  जाता  है   लेकिन  यदि  ये  बहुमूल्य  संपदा  --हीरे , मोती , स्वर्ण  आदि   सड़क  पर   बिखेर  दिए  जाएँ  तो   लूट मच  जाए , बलवा  हो  जाए  l  बेवजह   सामाजिक  जीवन  में  संकट  न  हो  इसलिए  जीवन  के  सभी  क्षेत्रों  में  मर्यादा  जरुरी  है  l  इसी  तरह  धरती  माँ  अपनी  बहुमूल्य  संपदा  को  अपने  गर्भ  में  छुपाकर  रखती  है   और  ऐसी  संपदा  जिससे  मानव  जीवन  के  अस्तित्व  पर  खतरे  के  बादल  आ  जाएँ  , उन्हें  और  भी  गहराई  में  छुपाकर  धरती  माँ  रखती  है  l  लेकिन  अब  इसे  मनुष्य  का  लालच  कहें  या  असुरक्षा  का  भाव ,   मनुष्य     बहुत  गहराई  तक  खोदकर    वह  सब  सामग्री  धरती  के  ऊपर  ले  आया    जिनसे  बम  और  मारक  अस्त्र -शस्त्र  बनते  हैं  l  मनुष्य  ने  मर्यादा  का  उल्लंघन  कर  दिया  ,  इसलिए    अब  विध्वंसक  रूप  में  प्राकृतिक  आपदाएं  आना  स्वाभाविक  है  l  सहन  शक्ति  की  भी  कोई  सीमा  होती  है   l  एक  ओर  तो  धरती  पर  पाप , अपराध , अत्याचार  बढ़ता  जा  रहा  है   और  इसके  साथ  मनुष्य  तंत्र , ब्लैक मैजिक  , भूत , प्रेत  आदि  नकारात्मक  शक्तियों   के  प्रयोग  से   सम्पूर्ण  वातावरण  को  नकारात्मक  बना  रहा  है  l  नकारात्मक  शक्तियों  को  भी  तो  अपनी  खुराक  चाहिए  l  मनुष्य  के  अस्तित्व  पर  दोहरा  आक्रमण  है  --एक  ओर  प्रकृति  नाराज  है   इसलिए  सामूहिक  दंड  देती  है   l  दूसरी  ओर  नकारात्मक  शक्तियां  अपनी  खुराक  के  लिए   ऐसी  ह्रदय विदारक  घटनाओं  को  रचती  हैं  , इससे  उनको  खुराक  भी  मिलती  है  और उनकी  फौज  भी  बढ़ती  है  l  कहते  हैं  जब  जागो , तभी  सवेरा  l  संसार  के  सभी    देश  अपने  विध्वंसक  हथियारों , बम  आदि  को  समुद्र  में  फेंक  दें , इस  तरह  लड़ने  से  कोई  स्वर्ग  का  सिंहासन  तो  मिल  नहीं  रहा  !   प्रत्येक  मनुष्य  जागरूक  हो  , मर्यादा  में  रहे  , अपने  गलत  कर्मों  से  अगले  जन्म  में  भूत -प्रेत  बनने  की  तैयारी  न  करे  l  

16 July 2025

WISDOM -------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' अहंकार  जब  व्यक्ति  के  सिर  पर  चढ़ता  है  तो  उसे  एहसास  कराता  है  कि कोई  उसका  कुछ  भी  नहीं  बिगाड़  सकता  , क्योंकि  वह  सबसे  श्रेष्ठ  है  , वह  शक्तिमान  है  , दुनिया  उसी  के  इशारों  पर  चल  रही  है  , उसके  बिना  कुछ  भी  नहीं  हो  सकता  l  लेकिन  ऐसा  संभव  नहीं  है  , इसलिए  एक  न  एक  दिन  वह  पराजित  होता  है   और  उसकी  पराजय  उसे  यह  एहसास  कराती  है   अहंकार  का  नाश  होना  ही  एकमात्र  सच्चाई  है  l '  आचार्य श्री  कहते  हैं ---" हमारे  व्यक्तित्व  की  सार्थकता   सद्भावनाओं , सद्विचारों   और  सत्कर्मों  से  है  , अहंकार  के  अनुचित  पोषण  में  नहीं  l  पूरे  जीवन  केवल  अहंकार   को  पोषित  करने   के  लिए  जिया  जाए   तब  भी  उसकी  संतुष्टि   संभव  नहीं  है  l '------ एक  सत्य घटना  है ---  दक्षिण  में  मोरोजी  पंत  नामक  एक  बहुत  बड़े  विद्वान  थे  l  उनको  अपनी  विद्या  का  बहुत  अभिमान  था  l  वे  अपने  समान  किसी  को  भी  विद्वान  नहीं  मानते  थे  और  सबको  नीचा  दिखाते  रहते  थे  l  एक  दिन  की  बात  है   वे  दोपहर  के  समय  अपने  घर  से   स्नान  करने  के  लिए   नदी  पर  जा  रहे  थे  l  मार्ग  में  एक  पेड़  पर  दो  ब्रह्मराक्षस   बैठे  हुए  थे  l  वे  आपस  में  बातचीत  कर  रहे  थे  l   एक  ब्रह्मराक्षस  बोला  --- "  हम  दोनों  इस  पेड़  की  दो  डालियों  पर  बैठे  हैं  , पर  यह  तीसरी  डाली  खाली  है  ,  इस  पर  बैठने  के  लिए  कौन  आएगा  ? "   तो  दूसरा  ब्रह्मराक्षस  बोला  ----- "  यह  जो  नीचे  से  जा  रहा  है  न  ,  यहाँ  आकर  बैठेगा  , क्योंकि  इसको  अपनी  विद्वता  का  बहुत  अभिमान  है  l "  उन  दोनों  के  संवाद  को  मोरोजी  पंत  ने  सुना   तो  वे  वहीँ  रुक  गए   और  विचार  करने  लगे  कि  हे  भगवन  !  विद्या  के  अभिमान  के  कारण  मुझे  प्रेतयोनि  में  जाना  पड़ेगा , ब्रह्मराक्षस  बनना  पड़ेगा  l  वे  अपनी  होने  वाली  दुर्गति  से  घबरा  गए   और  मन  ही  मन  संत  ज्ञानेश्वर   के  प्रति  शरणागत  होकर  बोले   --- " मैं  आपकी  शरण  में  हूँ , आपके  सिवाय  मुझे  बचाने  वाला  कोई  नहीं  है  l "  ऐसा  सोचते  हुए  वे   वहीँ  से  आलंदी  चले  गए   और  जीवन पर्यंत  वहीँ  रहे  l  आलंदी  वह  स्थान  है  जहाँ  संत  ज्ञानेश्वर  ने  जीवित  समाधि  ली  थी  l  संत  की  शरण  में  जाने  से  उनका  अभिमान  चला  गया   और  वे  भी  संत  बन  गए  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       

13 July 2025

WISDOM ------

   दुनिया  में  जितने  भी  महापुरुष  हुए  हैं   , वे  परोपकारी  और  समस्त  मानवता  के  लिए  संवेदनशील  होते  हैं  l   महानता  की  राह  पर  चलने  वाले  व्यक्ति  अन्याय  और  शोषण  के  विरुद्ध  लड़ते  हैं  l उन्हें  दूसरों  का  दुःख -दरद  अपना  प्रतीत  होता  है   और  वे  उसे  दूर  करने  का  यथासंभव  प्रयास  भी  करते  हैं  l  चीन  के  सम्राट  महान दार्शनिक  कन्फ्यूशियस  की  महानता  से  परिचित  थे  l  एक  दिन  वे  कन्फ्यूशियस  से  बोले  ---- "  तुम  मुझे  उस  व्यक्ति  के  पास  ले  चलो  , जो  महान  हो  l "  इस  प्रश्न  को  पूछने  के  पीछे  सम्राट  का  भाव  था  कि   कन्फ्यूशियस  स्वयं  को  या  सम्राट  को   महान  की  श्रेणी  में  रखेंगे   लेकिन  कन्फ्यूशियस  उन्हें  एक  वृद्ध   व्यक्ति  के  पास  ले  गए  जो  बहुत  कमजोर  भी  था   लेकिन  कुआं  खोद  रहा  था  l  कन्फ्यूशियस  बोले  --- "  सम्राट  !   मुझसे  अधिक  महान  यह  वृद्ध  है  l  यह  शरीर  से  दुर्बल  है  लेकिन  परोपकार  के  भाव  से  कुआं  खोद  रहा  है  l  परोपकार  में  ही  इसका  तन  और  मन  आनंदित  होता  है  l  इससे  अधिक  महान  और  कौन  हो  सकता  है  l  "        

11 July 2025

WISDOM -----

समाज  में  अशांति  का  एक  बहुत  बड़ा  कारण  समाज  में    व्याप्त  कुरीतियाँ  और  अन्धविश्वास  हैं  l  लोग  कितना  भी  पढ़ -लिख  जाएँ  , स्वयं  को  आधुनिक   होने  का  दावा  करें   लेकिन  यह  दावा  सिर्फ   उनके  स्वयं  उनके  लिए  ही  होता  है  , वे  चाहे  जो  करें   लेकिन  जहाँ  परिवार  के   अन्य    सदस्यों  और  समाज  की  बात  आती  है   , ऐसे  लोग  परम्पराओं , कुरीतियों  और  अंधविश्वासों  से  अलग  नहीं  हो  पाते  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं  -- हमारी  वृत्ति  हंस  जैसी  हो ,   जो  श्रेष्ठ  है  उसे  स्वीकार  करो  l  यह  भी  दुर्बुद्धि  का  ही  प्रकोप  है  कि  मनुष्य  अपनी  अधिकांश  ऊर्जा  जाति -पांति , छुआछूत , ऊँच -नीच ,  धार्मिक  भेदभाव    जैसे  मुद्दों  पर  अपने  अहंकार  को  पोषित  करने  में  व्यर्थ  गँवा  देता  है  l   यदि  मनुष्य  को  सद्बुद्धि  आ  जाए   और  वह  अपनी  ऊर्जा  का  सही  उपयोग  करना  सीख  जाए   तो  वह  स्वयं  का  जीवन  भी  सफल  कर  सकता  है   और  धरती  माँ  को  भी  अपने  सिर  पर  होने  वाले  खून -खराबे  से  राहत  मिल  जाएगी  l    आज  संसार   को   महर्षि  दयानंद  सरस्वती  के  विचारों  और  उनके  जैसे  व्यक्तित्व  की  जरुरत  है  l  वे  हर  प्रकार  के  आडम्बर  और  कुरीतियों  के  विरुद्ध  थे  l  महर्षि  दयानंद  मानते  थे  कि  हमारा  नाम  आर्य  है  l  आर्य  का  अर्थ  है  श्रेष्ठ  पुरुष  l  विदेशियों  ने  हमें  हिंदू  नाम  दिया  l  आर्यों  का  संस्कृत  भाषा  में  साहित्य   ही  संसार  का  सबसे  पुराना  साहित्य  है  l  महाभारत  के   उद्योग  पर्व  में  महात्मा  विदुर  धृतराष्ट्र  से  कहते  हैं ---- " हे  राजन  !  इस  संसार  में   दूसरों  को  निरंतर  प्रसन्न  करने  के  लिए  प्रिय  बोलने  वाले  प्रशंसक  लोग  बहुत  हैं  ,  परन्तु    सुनने  में  अप्रिय  लगे   और  वह  कल्याण  करने  वाला  वचन  हो  ,  उसका  कहने  और  सुनने  वाला   पुरुष  दुर्लभ  है  l "   महर्षि  दयानंद  ऐसे  ही  हितकारक  वचन  कहने  वाले  विरले  मनुष्य  थे  l  वे  राजाओं -महाराजाओं  और  बड़े -से -बड़े  अंगरेज  अफसरों  की  उपस्थिति  में  भी  निर्भीक  होकर  सबके  हित  की  सत्य  बात  कहा  करते  थे  l   महर्षि  दयानंद  कहते  थे  ---- " मेरा  काम  लोगों  के  मन -मंदिर   से  मूर्तियाँ  निकलवाना  है  ,  ईंट -पत्थर  के  मंदिरों  को  तोड़ना -फोड़ना  नहीं  है  l "   फर्रुखाबाद  में  एक  दिन  एक   ' साध ' ( निम्न  जाति  का  व्यक्ति )   स्वामी जी  के  लिए  कढ़ी  और  चावल  बनाकर  लाया   और  उन्होंने  उसे  खा  लिया  l  इस  पर  ब्राह्मणों  ने  कहा ---- " आप  भ्रष्ट  हो  गए  ,  जो  ' साध '  के  घर  का  भोजन  कर  लिया  l "    स्वामीजी  ने  उत्तर  दिया  ---- " भोजन  दो  प्रकार  से  भ्रष्ट  होता  है  --एक  तो  यदि  किसी  को  दुःख  देकर  धन  प्राप्त  किया  जाए  और  उससे  अन्न  आदि  खरीदकर   भोजन  बनाया  जाए  ,  दूसरा   भोजन  मलिन  हो  या  उसमें  कोई  मलिन  वास्तु  गिर  जाए  l  ,साध '  लोगों  का  मेहनत  का  पैसा  है  ,  उससे  प्राप्त   किया  हुआ  भोजन  उत्तम  है  l  "  ' सत्यार्थ प्रकाश  ' उनकी  प्रसिद्ध  कृति  है  l  

10 July 2025

WISDOM ------

   सिकंदरिया का  राजा  टालेमी  , यूक्लिड  से   ज्यामिति  सीख  रहा  था  ,  किन्तु  यह  कठिन  विद्या  उसके  पल्ले  ही  नहीं  पड़  रही  थी  l  एक  दिन  टालेमी  अपना  धैर्य  खो  बैठा  l  उसने  अपने  गुरु  से  पूछा  ---- "  क्या  ज्यामिति  सीखने  का  कोई  सरल  मार्ग  नहीं  है  ? "    यूक्लिड  ने  गंभीरता  से  कहा  --- "  राजन  !  आपके  राज्य  में   जनसाधारण  और  अभिजात  वर्ग  के  लिए   पृथक    मार्ग  हो  सकते  हैं  ,  किन्तु  ज्ञान  का  मार्ग  सबके  लिए   एक  सा  ही  है  l  इसमें  अभिजात  वर्ग  के  लिए   कोई  राजमार्ग  नहीं  है  l "   यह  बात  टालेमी  को  समझ  में  आ  गई  l  फिर  इसके  बाद  टालेमी   ज्यामिति  सीखने  के  लिए  कठोर  परिश्रम  करने  लगा  l  

9 July 2025

WISDOM ---

 कहते  हैं  यदि  भगवान  नाराज  हो  जाएँ  तो  गुरु  बचाने  वाले  हैं  ,  लेकिन  यदि  गुरु  नाराज  हो  जाएँ   तो  उसे   कोई  नहीं  बचा  सकता  l  गुरु  पूर्णिमा  को  ' व्यास  पूर्णिमा '  भी  कहा  जाता  है  l  महर्षि  वसिष्ठ  के  पौत्र  ,  महर्षि  पराशर  के  पुत्र   ' वेदव्यास '  जन्म  के  कुछ  समय  बाद  ही   अपनी  माँ  से  आज्ञा  लेकर  तपस्या  करने  चले  गए  थे  l  वेदों  को  विस्तार  प्रदान  करने  के  कारण   ही  इनका  नाम  'वेदव्यास ' पड़ा  l  ' गुरु पूर्णिमा  '  का  पर्व  गुरु  के  प्रति  समर्पित  है  l  '  सच्चे  गुरु  के  लिए  सैकड़ों  जन्म  समर्पित  किए  जा  सकते  हैं  l  सच्चा  गुरु  वहां  पहुंचा  देता  है  ,  जहाँ  शिष्य  अपने  पुरुषार्थ  से   कभी  नहीं  पहुँच  सकता  l "    गुरु  के  द्वारा  कहे  गए  वाक्य  मूलमंत्र  हैं   , वे  हमें  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  l  l    बाहरी  शत्रुओं  से  तो  एक  बार  हम  अपनी  शक्ति  और  सामर्थ्य  से  लड़कर  विजयी  हो  भी  सकते  हैं   लेकिन  अपने  भीतरी  शत्रुओं  ---काम , क्रोध , लोभ  और  अहंकार  पर    विजय   तो  केवल  और  केवलमात्र  गुरु  कृपा  से  ही  संभव  है l  अपनी  पूजा -साधना  से   हम  अपने  मानसिक  विकारों  को  पराजित  नहीं  कर  सकते   l  अहंकार  और  कामवासना  जैसे   दुष्ट   शत्रुओं  पर  विजय  प्राप्त  करना   तो  असंभव  है   लेकिन  सच्चे  गुरु  असंभव  को  संभव  कर  देते  हैं  l  वे  एक   बार  नहीं  अनेकों  बार  अपने  शिष्य  को  गहरी  खाई  में  गिरने  से  बचाते  हैं  ,  उसे  जीवन  जीना  सिखाते  हैं  ,  उसकी  चेतना  का  विस्तार  करते  हैं  l  गुरु  की  कृपा  प्राप्त  करने  के  लिए  शिष्य  को  भी  सच्चा  शिष्य  बनना  होगा  l  गुरु  ने  अपने  प्रवचनों  और  साहित्य  के  द्वारा  जो  विचार  हमें  दिए  ,  जो  मार्ग  दिखाया  ,  उसका   अनुसरण   करें  l 

6 July 2025

WISDOM ------

ईश्वर  ने  इस  स्रष्टि  का  निर्माण  किया  , इसमें  उन्हें  यह  धरती  सबसे  अधिक  प्रिय  है  l  इस  पृथ्वी  का  प्रत्येक  कण  उपयोगी  है  l   एक  बार  ब्रह्माजी  ने  महर्षि  जीवक  को   आदेश  दिया  कि   पृथ्वी  पर   जो  भी  पत्ता -पौधा  , वृक्ष -वनस्पति   व्यर्थ  दिखाई  दे  ,  उन्हें  यहाँ  ले  आओ  l   लगातार  12  वर्षों  तक   पृथ्वी  पर  घूमने  के  बाद   महर्षि  लौटे   और  ब्रह्मा जी  के  समक्ष  नत -मस्तक  होकर  बोले  , प्रभो  !  मैं  इन  12  वर्षों  में   पूरी  पृथ्वी  पर  भटका  हूँ  l  प्रत्येक  पौधे  के  गुण -दोष  को  परखा  है  l  पर  पृथ्वी  पर   एक  भी  ऐसी   वनस्पति  नहीं  मिली   जो  किसी  न  किसी   व्याधि  के  उन्मूलन  में   सहायक  न  हो   l   "  पृथ्वी  पर  विद्यमान  प्रत्येक   तिनके  का , जीव -जंतु , कीट -पतंगे  , वृक्ष , वनस्पति , नदी ,  पर्वत, समुद्र   सबका  महत्त्व  है  l     जब  मनुष्य  अपने  श्रेष्ठ  कर्म  से    धरती  रूपी  इस  बगिया  को  सुन्दर  बनाने  का  प्रयास  करता  है   तो  ईश्वर  को  प्रसन्नता  होती  है   और  लोगों   के    जीवन  सुख -शांति   व  आनंद  रहता  है  l  मनुष्य  की  सबसे  बड़ी  भूल  यह  हो  गई  कि  उसने  ईश्वर  के  सन्देश  को  समझा  नहीं   और  इस  पृथ्वी  को  केवल  भौतिक  द्रष्टि  से  सुन्दर  बनाने  का  प्रयास  किया  l  मनुष्य  शरीर  में  रहकर  पशुवत  व्यवहार  करने  लगा  , अपनी  चेतना  को   उच्च  स्तर  पर  ले  जाने  का  कोई  प्रयास  नहीं  किया  l   अपनी  बुद्धि  का  दुरूपयोग  कर   उसने  सम्पूर्ण  प्रकृति  को  प्रदूषित  कर  दिया  l  यही  कारण  है  कि  अब  संसार  में  आपदाएं -विपदाएं  बहुत  अधिक  हैं  l  प्रकृति  इसी  ढंग  से  अपना  क्रोध  प्रकट  करती  है  l  जब  मनुष्य  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगता  है  तब  ईश्वर  इसी  तरीके  से  मनुष्य  को  समझाते  हैं  l  कोरा  विज्ञान    केवल  नाश  कर  सकता  है  , अपने  द्वारा  किए  गए  विकास  को  अपने  ही  हाथों  नष्ट  कर  सकता  है  l  इसलिए  विज्ञानं  को  अध्यात्म  के  साथ  जोड़ो  l  मनुष्य  शरीर केवल  एक  मशीन  नहीं  है  , इसमें  भावनाएं  भी  हैं  , भावनाओं  के  बिना  यह  जीवन   अधूरा  है  , और  अध्यात्म  हमें   श्रेष्ठ  भावनाओं  और  श्रेष्ठ  विचारों  से  जोड़कर  इनसान   बनाता  है  l   पृथ्वी    का  सौन्दर्य  उस  पर  रहने  वाले  मनुष्यों  से  नहीं  है  ,  मनुष्य  नामक  प्राणी  में  कितनी  इंसानियत  है , मानवता  है   यही   उसका  सौन्दर्य  है  l  अपनी  श्रेष्ठ  संतानों  पर  ही  माँ  को  गर्व  होता  है  l  

5 July 2025

WISDOM ------

  श्री माँ ( श्री अरविन्द  आश्रम ) पांडिचेरी  लौट  रही  थीं  l l  तूफ़ान  के  कारण  जहाज  में  हिचकोले  लगने  लगे  l  अंत:द्रष्टि  संपन्न  श्री माँ  ने  देखा   कि  संभवतः  कोई  भी  न  बचे  , ऐसा  भयंकर  तूफान  है  l  उन्होंने  सुप्रसिद्ध  तंत्र  विशेषज्ञ  ' तेओं '  से  दीक्षा  ली  थी  l  वे  केबिन  में  चली  गईं   और  स्वयं  को  बंद  कर  लिया  l  सूक्ष्म  शरीर  से  वे  समुद्र  में  चली  गईं  l  उन्होंने  देखा  , कुछ  सूक्ष्म  शरीरधारी  आत्माएं   समुद्र  के  पानी  को   तीव्र  वेग  से  उछाल  रही  हैं  l  उनसे  उन्होंने  वार्तालाप  किया  l  वे  बोलीं  ---- "  हम  तो  खेल  रहे  हैं  l  आपका  जहाज  ही  बीच  में  आ  गया  l "  श्री माँ  ने  कहा --- " आप  थोड़ी  देर  विराम  कर  लें  l  हम  इस  बीच  जहाज  निकाल  लेंगे  l "   श्री  माँ  यह  विनती  कर  के  केबिन  से  बाहर  आ  गईं  l अचानक  तूफान   थम  गया  l  उन्होंने  कहा --- " तुरंत  जहाज  निकाल  लो  l  फिर  तूफान  आ  सकता  है  l "  स्पीड  बढ़ाकर  जहाज  निकाला  गया  l  देखा  गया  पीछे  फिर  तूफान  आरम्भ  हो  चुका  था  l  ' श्वेत कमल '  ग्रन्थ  में  इस  घटना  का  उल्लेख  है  l  

4 July 2025

WISDOM -----

   इस  युग  की  सबसे  बड़ी  त्रासदी  यह  है  कि  मनुष्य  के  भीतर  ज्ञान  तो  बढ़ता  जा  रहा  है  लेकिन  वह  विवेकशून्य  होता  जा  रहा  है  l  उसे  स्वयं  नहीं  मालूम  कि  वह  आखिर  चाहता  क्या  है  ?   भीषण  युद्ध  हो  रहे , दंगे  हो  रहे  , बेकसूर  लोग  मारे  जा  रहे  हैं  l  बेकसूर  महिला , बच्चों  को  मारने  और  पर्यावरण  को  प्रदूषित  करने  का  कोई  ठोस  कारण  नजर  नहीं  आता  l  दुर्बुद्धि  का  सबसे  बड़ा  प्रमाण  तो  यह  है  कि  जब  कहीं  वश  न  चले  तो  धार्मिक  स्थलों  को , प्राचीन  मूर्तियों  को  ही  तोड़  डालो  l  यदि  इस  संबंध  में  गहराई  से  विचार  करें  तो  एक  बात  स्पष्ट  है  कि  मनुष्य  कितना  भी  आधुनिक  हो  जाए  वह    ईश्वर  से  डरता  तो  है   लेकिन   ईश्वर  की  प्रतीक  मूर्तियों  को  तोड़कर  वह  स्वयं  को  नास्तिक   होने  का  दिखावा  करता  है  l  प्रत्येक  मनुष्य  के  भीतर  एक  आत्मा  है  , जो  पवित्र  है  l  व्यक्ति  जो  भी  कुकर्म  करता  है  ,  उसकी  आत्मा  उसे  बार -बार  बताती  है  कि  तुम  ये  गलत  कर  रहे  हो   लेकिन  वह  अपनी  आत्मा  की  आवाज  को  अनसुना  कर  देता  है   और  एक  बड़े  अपराधी  की  तरह   अपने  कुकर्मों  के   सबूत    मिटाना  चाहता  है  l  उसे  लगता  है  कि   धार्मिक  स्थल  और  उनमें  छिपा  बैठा  ईश्वर  उसे  देख  रहा  है  ,  कहीं  उसे  दंड  न  दे  दे  , इसलिए  इस  सबूत  को  मिटा  डालो  l  ऐसे  लोग  वास्तव  में  बड़े  भोले  हैं  , उन्हें  नहीं  मालूम  ईश्वर  तो  प्रकृति  के  कण -कण  में  है  , वे  हजार  आँखों  से  हमें  देख  रहे  हैं  l  एक  आस्तिक  व्यक्ति  तो  अपने  धार्मिक  स्थल  पर   अपने  तरीके  से  पूजा -पाठ  कर  लौट  आता  है  , वहां  ईश्वर  हैं  या  नहीं  , यह  सोचने  की  उसे  फुर्सत  नहीं  है  क्योंकि  दैनिक  जीवन की  अनेक  समस्याएं  हैं   लेकिन  जो   ईश्वर  के  प्रतीक  चिन्हों  को  तोड़ते  हैं  , वे  अवश्य  ही  किसी  न  किसी  जन्म  में  ईश्वर  के  बड़े  भक्त  रहे  होंगे  , वे  इन  प्रतीकों  में  ईश्वर  का  अस्तित्व  देखते  हैं  , उनकी  निगाहों  से  डरते  हैं   इसलिए  उन्हें  मिटाकर  चैन  की  साँस  लेते  हैं  l  बड़े -बड़े  भक्तों  से  भी  कभी  कोई  गलती  हो  जाती  है , वे  अपनी  राह  भटक  जाते  हैं  l  उन्हें  अपना    पूर्व  जन्म  याद  नहीं  आता   इसलिए  पाप  के  मार्ग  पर  चलते  जाते  हैं  l  यदि  उनके  जीवन  को  सही  दिशा  मिल  जाये  , वे  स्वयं  को  पहचान  जाएँ  तो  संसार  में  बिना  वजह  के  युद्ध , दंगे  सब  समाप्त  हो  जाएँ  l  बड़ी  मुश्किल  से  जो  मानव  जन्म  मिला  ,  उसे  सुकून  के  साथ  जी  सकें  l  

2 July 2025

WISDOM ------

प्रकृत्ति  के  कण -कण  में  भगवान  हैं   लेकिन  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  ऐसा  प्रकोप  है  कि  वह  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है   और  अपनी  शक्ति  व  वैभव  का  दुरूपयोग  कर  मानवता  को  ही  समाप्त  करने  पर  उतारू  है  l  ऐसे  ' महामानवों '  को  समझना  चाहिए  क्या  वे  नदी , समुद्र , पहाड़ , आकाश  , मिटटी  और  सम्पूर्ण  प्रकृत्ति  का  सृजन  कर  सकते  हैं  ?   ध्वंस  बहुत  सरल  है   l  हमारे  धर्म  में  पेड़ -पौधे , नदी , पर्वत  , आकाश  सभी  को  देवी -देवता  के  रूप  में  पूजने  का  विधान  है  l  हम  उन्हें  सम्मान  देते  हैं , नष्ट  नहीं  करते  क्योंकि  हम  सब  एक  माला  के  मोती  है  , प्रत्येक  मोती  का  अपना  महत्त्व  है  l  --------पुराणों  में   गोवर्धन  पर्वत  के  संबंध  में  कथा  आती  है   कि  वह  कभी  सुमेरु  पर्वत  का  शिखर  हुआ  करता  था  l  जब  श्री  हनुमान  जी  सेतुबंधन  के  समय  उसे  ला  रहे  थे   तो  उनके  ब्रजभूमि  तक  पहुँचते -पहुँचते   घोषणा  हो  गई  कि  सेतुबंधन  का  कार्य  पूरा  हो  गया  है  l  अब  पर्वत  लाने  की  आवश्यकता  नहीं  है  l  यह   घोषणा   सुनकर  हनुमान जी  ने   गोवर्धन  पर्वत  को  वहीँ  रख  देना  चाहा  , जहाँ  से  वे  उसे  उठाकर  ला  रहे  थे  l  ऐसे  में  गोवर्धन  पर्वत  ने   श्री  हनुमान जी  से  कहा  ---- "  तुम  मुझे  घर  से , परिवार  से , कुटुंब  से  अलग  कर  के   भगवान  की  सेवा  के  लिए   ले  जा  रहे  थे  ,  सो  तू  ठीक  था  ,  लेकिन  अब  मुझे  भगवान  की  सेवा  में  लगाए  बिना   मार्ग  में  यों  ही  छोड़  देना  ,  यह  किसी  भी  द्रष्टि  से  उचित  नहीं  है  l  हमारे  लिए  उचित  व्यवस्था  बनाए  बिना  छोड़कर  मत  जाओ  l "  हनुमान जी  असमंजस  में  पड़े  तो  उन्होंने  भगवान  राम  से  पूछा  --- "  क्या  किया  जाए  ? "   भगवान  राम  ने  उत्तर  दिया  ---- "  गोवर्धन  को  ब्रज  में  स्थापित  कर  दो  l  अभी  तो  मेरा  राम  अवतार  है  ,  जब  मैं  कृष्ण  अवतार  में  आऊंगा   तब  गोवर्धन  को  अपना  लीलाकेंद्र  बनाऊंगा  l  अभी  तो  उसे  यहाँ  सेतु  पर  रख  दिया  जाए   तो  मैं  सेतु  पार  करते  समय  उस  के  ऊपर  पाँव  रखकर  निकल  जाऊंगा  l  लौटते  समय  संभव  है  कि  सेतु  का  प्रयोग  न  करना  पड़े  l  इसलिए  ब्रज  में  गोवर्धन  के  स्थापित  हो  जाने  पर   कृष्ण  अवतार  में  मैं   उस  पर  गाय  चराने  के  लिए  नंगे  पाँव  विचरण  करूँगा  ,  उसके  झरनों  के  जल  में  स्नान  करूँगा  ,  उसकी  मिटटी  को  अपने  शरीर  में  लगाऊंगा  ,  उसके  फूलों  से  अपना  श्रंगार  करूँगा   और  अपना  सम्पूर्ण  किशोर काल  वहीँ  गुजारूँगा  l "    भगवान  की  इस  घोषणा  से  संतुष्ट  होकर    गोवर्धन  ब्रजभूमि  में  स्थापित  हो  गए  l  

16 June 2025

WISDOM ------

 आज  संसार  में  जितनी  भी  आपदाएं -विपदाएं  हैं  ,  उनके  मूल  में  कारण   ' आर्थिक '  है  l  धन  जीवन  के  लिए  बहुत  जरुरी  है    लेकिन  धन  को  ही  सब  कुछ  मान  लेने  के  कारण   आज  मानव  जीवन  का  प्रत्येक  क्षेत्र  व्यापार  बन  गया  है   और  व्यापारी  केवल  अपना  लाभ  देखता  है  l  जो  जितना  अमीर  है  , उसका  लालच  उतना  ही  बड़ा  है  l  गरीब  तो  सूखी  रोटी  खाकर  चैन  से  सोता  है  लेकिन  अमीर  और  अमीर ----और  अमीर  ----  बनने  के  लिए   कोई  कोर -कसर  बाकी  नहीं  रखते  l  उनकी  इस  अंधी  दौड़  के  कारण  ही   सम्पूर्ण  मानव  जाति  पर  खतरा  है  l  धन  की  अति  लालसा  ने  ईमानदारी  के  गुण  को  ही  समाप्त  कर  दिया  है  l  मनुष्य  न  घर  में  सुरक्षित  है  , न  बाहर  l  ईश्वर  कभी  किसी  का  बुरा  नहीं  चाहते   l  मानव  जीवन  पर  आज  जो  भी  विपत्तियाँ  हैं  , वे  सब  मानव निर्मित  है  l  रावण , कंस , भस्मासुर , हिरण्यकश्यप   के  पास   धन -संपदा  , सुख -वैभव  की  कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  इनकी   गन्दी  मानसिकता  के  कारण  प्रजा  परेशान  थी  l  ये  असुर  भी  स्वयं  को  भगवान  समझते  थे   लेकिन  मृत्यु  भेदभाव  नहीं  करती  l  l  

15 June 2025

WISDOM ------

   कहते  हैं  जो  कुछ  महाभारत  में  है  ,  वही  इस  धरती  पर  है  l  महर्षि  वेद  व्यास  ने  इस  महाकाव्य  के  माध्यम  से  संसार  को  यह  समझाने  का  प्रयास  किया  कि  धन -वैभव , पद -प्रतिष्ठा  के  साथ  यदि  मनुष्य  में  सद्बुद्धि  और  विवेक  नहीं  है  ,  उसकी  धर्म  और  अध्यात्म  में  रूचि  नहीं  है    तो   ऐसा  व्यक्ति  संवेदनहीन  होता  है  और  वह  अपनी   कभी  संतुष्ट  न  होने  वाली  तृष्णा  और  महत्वाकांक्षा  के  लिए  कितना  भी  नीचे  गिर  सकता  है   l -------- दुर्योधन  के  पास  सब  कुछ  था  , लेकिन  उसे  संतोष  नहीं  था   l  वह  पांडवों  से  ईर्ष्या करता  था ,  उनकी  उपस्थिति  को  वह  बर्दाश्त  नहीं  कर  सकता  था  और  उनको  जड़  से  समाप्त कर   हस्तिनापुर  पर  अपना  एकछत्र  राज्य  चाहता  था    और  इसके  लिए  उसने  शकुनि  के  साथ  मिलकर   बहुत  ही  गुप्त  रूप  से   पांडवों  को  जीवित जला  देने  की  योजना   बनाई  l   दुर्योधन  के  मन  की  इस   घिनौनी  चाल का  पता  किसी  को  नहीं  था  l   अब  उसने   पांडवों  का  हितैषी  बनकर   अपने  पिता  धृतराष्ट्र  से  कहा  कि  वे  पांडवों  को  वारणावत   में   होने  वाले  भव्य  मेले  की  शोभा  देखने  और  सैर  करने  के  लिए   जाने  की  अनुमति  दें  l  पांडव  भी  प्रसन्न  थे  l  माता  कुंती  के  साथ  उन्होंने  पितामह  आदि  सभी  सबसे  अनुमति  ली  l  महात्मा  विदुर  से  अनुमति  लेने  वे  उनके  पास  गए  तब  विदुर जी  ने  युधिष्ठिर  से  सांकेतिक  भाषा  में  कहा  ----- "जो  राजनीतिक -कुशल  शत्रु  की  चाल  को  समझ  लेता  है  ,  वही  विपत्ति  को  पार  कर  सकता  l  ऐसे  तेज  हथियार  भी  होते  हैं  ,  जो  किसी  धातु  के  बने  नहीं  होते  , ऐसे हथियार  से  अपना  बचाव  करना  जो  जान  लेता  है  ,  वह  शत्रु  से  मारा  नहीं  जा  सकता  l  जो  चीज  ठंडक  दूर  करती  है   और  जंगलों  का  नाश  करती  है  ,  वह  बिल  के  अन्दर  रहने  वाले  चूहे  को  नहीं  छू  सकती  l  सेही  जैसे  जानवर   सुरंग  खोदकर   जंगली  आग  से   अपना  बचाव   कर  लेते  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  नक्षत्रों  से  दिशाएं  पहचान  लेते  हैं  l  "     महात्मा  विदुर  ने  सांकेतिक  भाषा  में  दुर्योधन  के  षड्यंत्र   और  उससे  बचने  का  उपाय   युधिष्ठिर  को   सिखा  दिया  l    दुर्योधन  की  पांडवों  को  जीवित  जला  देने  की  गहरी  चाल  थी  l  उसने  अपने  मंत्री  पुरोचन  को  वारणावत  भेजकर  पांडवों  के  लिए  एक  सुन्दर  महल  बनवा  दिया  l  उस  महल  का  वैभव  और  सब  सुख -सुविधा  देखकर  प्रजा  यही  समझे  कि  दुर्योधन  पांडवों  का  हितैषी  है  l  लेकिन  सच  यह  था  कि  वह  महल  लाख  का  बना  था  ,  हर  तरह  के  ज्वलनशील पदार्थों  से  मिलकर  वह  लाख  का  महल  तैयार  हुआ  था  l  दुर्योधन  की  योजना  थी  कि  कुछ  दिन  वहां  आराम  से  रहेंगे  ,  फिर  एक  रात  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  जाएगी  l  इस  षड्यंत्र  का  किसी  को  पता  नहीं  चलेगा   ' सांप  भी  मर  जाए   और  लाठी  भी  न  टूटे  l "    विदुर जी  की  गूढ़  भाषा  समझकर  पांडव  जागरूक  हो  गए  थे  ,  उस  लाख  के  महल  में  रहकर   और  रात्रि  भर  जागकर   उन्होंने   उस  महल  के  नीचे  से  एक  सुरंग  तैयार  कर  ली  l  लगभग  एक  वर्ष  बीत  गया  l  युधिष्ठिर  दुर्योधन  के  मंत्री  पुरोचन  के  रंग -ढंग  देखकर  समझ  गए  कि    वह  क्या  करने  की  सोच  रहा  है  l  उन्होंने  उसी  रात  एक  भव्य  भोज  का  आयोजन  किया  , सभी  नगर  वासियों  को  भोजन  कराया  गया  ,  जैसे  कोई  बड़ा  उत्सव  हो  l  सभी  कर्मचारी  , नौकर  चाकर  भी  खा -पीकर   गहरी  नींद  सो  गए  , पुरोचन  भी  सो  गया  l  आधी  रात  को  भीम  ने  ही  उस  भवन  में  आग  लगा  दी  और  पांचों  पांडव  और  माता  कुंती  सुरंग  से  सुरक्षित  बाहर  निकल  कर  सुरक्षित  स्थान  पर  चले  गए  l  दुर्योधन  आदि  कौरव  तो  मन  ही  मन  बहुत  प्रसन्न  थे  कि  पांडवों  का  अंत  हुआ  लेकिन  ' जिसकी  रक्षा  भगवान  करते  हैं , उन्हें  कोई  नहीं  मार  सकता  l  यह  प्रसंग  हमें  यही  सिखाता  है    कि  मनुष्य  को   जागरूक  होना  चाहिए  l  कलियुग  का  प्रमुख  लक्षण  ही  यही  है  कि  जिसके  पास  धन , पद  , प्रतिष्ठा   है  , उसके  सिर  पर कलियुग  सवार  हो  जाता  है   और  फिर  वह  उससे  वही  सब  कार्य  कराता  है  जो  आज  हम  संसार  में  देख  रहे  हैं  l  

11 June 2025

WISDOM -----

   महाभारत  के  विभिन्न  प्रसंग  मात्र  कहने  और  सुनने  के  लिए  नहीं  है  l  महर्षि  उन  प्रसंगों  के  माध्यम   प्रत्येक  युग  की  परिस्थितियों  के  अनुरूप   संसार  को  कुछ  सिखाना  चाहते  हैं  l  इस  काल  की  बात  हम  करें  तो   यह  स्थिति  लगभग  सम्पूर्ण  संसार  में  ही  है  लोग  धन , पद , प्रतिष्ठा   और  अपने   विभिन्न  स्वार्थ , कामनाओं  और  वासना  के  लिए  बड़ी  ख़ुशी  से  ऐसे  लोगों  का  साथ  देते  हैं  जो   अन्यायी  हैं  , विभिन्न  अपराधों  में  , पापकर्म  में  लिप्त  हैं  l  यह  स्थिति  परिवार  में , संस्थाओं  में   और  हर  छोटे -बड़े  स्तर  पर  है  l  देखने  पर  तो  ऐसा  लगता  है  कि  गलत  लोगों  का  साथ  देने  पर  भी  सब  सुख -वैभव  है   लेकिन  इसके  दीर्घकाल  में  परिणाम  कैसे  होते  हैं  ,  यह  महाभारत  के  इस  प्रसंग  से  स्पष्ट  है  ----- महाभारत  का  सबसे  आकर्षक  व्यक्तित्व  --'कर्ण '    जो  सूत पुत्र  के  नाम  से  जाना  जाता  था  ,  उसकी  वीरता  देखकर  दुर्योधन  ने  उसे  अंगदेश  का  राजा  बना  दिया  l  इस  उपकार  की  वजह  से  दुर्योधन  और  कर्ण  घनिष्ठ  मित्र  बन  गए   और  कर्ण  ने  अपनी  आखिरी  सांस  तक  मित्र  धर्म  निभाया  l  दुर्योधन  अत्याचारी  व  अन्यायी  था  , बिना  वजह  पांडवों  के  विरुद्ध षड्यंत्र  कर  उन्हें  हर  तरह  से  उत्पीड़ित  करता  था  l  ऐसे  दुर्योधन  का  साथ  देकर   कर्ण  अंगदेश  का  राजा  तो  बन  गया  ,  लेकिन  उसका  स्वयं  का  जीवन   धीरे -धीरे  खोखला  होता  गया  l  अपने  गुरु   का  श्राप  उसे  मिला  कि  जब  उसे  जरुरत  होगी   तो  वह  यह  विद्या  भूल  जायेगा  l   फिर  एक  रात्रि  को  स्वप्न  में  स्वयं  सूर्यदेव  ने  उससे  कहा  कि  देवराज  इंद्र  तुम्हारा  कवच -कुंडल  मांगने  आएंगे  ,  तुम  अपने  कवच -कुंडल  नहीं  देना  , इनसे  तुम्हारा  जीवन   सुरक्षित  है  l   लेकिन  कर्ण  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी  और  अपने  कवच -कुंडल  इंद्र  को  दे  दिए  l  इंद्र  ने  उससे  प्रसन्न  होकर  उसे  एक  अमोघ  शक्ति  प्रदान  की   , जिसे  कर्ण  ने  अर्जुन  को  युद्ध  में  पराजित  करने  के  लिए  सुरक्षित  रखा  था   लेकिन  वह  शक्ति  भी  भीम  के  पुत्र  घटोत्कच  का  वध  करने  में   चली  गई  l  अत्याचारी  , अन्यायी  का  साथ  देने  से   वह  राजा  तो  था  लेकिन  संयोग  ऐसे  बनते  जा  रहे  थे  कि  ईश्वर  प्रदत्त  उसकी  शक्तियां  उससे  दूर  होती  जा  रहीं  थीं  l  अंत  में  उसे  सारथि  भी  शल्य  जैसा  मिला   जो  निरंतर  अपनी  बातों  से  उसके  मनोबल  को  कम  कर  रहे  थे  l  कहीं  न  कहीं  कर्ण  के  मन  में  भी  राजसुख  भोगने  का  लालच  था  l  जब  दुर्योधन  ने  पांडवों  को  लाक्षा गृह  में  जीवित  जलाने  का  षड्यंत्र  रचा  ,  फिर  द्रोपदी  को  भरी  सभा  में  अपमानित  किया   तब  कर्ण  चाहता  तो  कह  सकता  था  कि  मित्र ! अपना  अंगदेश  वापस  ले  लो  ,  ऐसे  अधर्म  और  अत्याचार  का  साथ  हम  नहीं  दे  सकते    या  वह  अपने  विभिन्न  तर्कों  से  दुर्योधन  को  समझाने  का  प्रयास  भी  कर  सकता  था  l  यदि  वह  ऐसा  करता  तो  कहानी  कुछ  और  होती   l  महर्षि  ने  इस  प्रसंग  के  माध्यम  से   संसार  को  यही  समझाया  कि  अत्याचारी  अन्यायी  का  साथ  देना   या  अनीति  और  अन्याय   को   देखकर  मौन  रहना  ये  ऐसे  अपराध   हैं  कि  व्यक्ति  ऐसा  कर  के  अपने  जीवन  में  ईश्वर  से  मिली  जो  विभूतियाँ  हैं  उन्हें  धीरे -धीरे  खोता  जाता  है   और  जीवन  में  ऐसा  अभाव  आ  जाता  है  जिनकी  भरपाई    उस  धन -संपदा   से  नहीं  हो  सकती  l  अनीति  से  प्राप्त  सुख  में  व्यक्ति  इतना  डूब  जाता  है   कि  जब  होश  आता  है  तब  तक  बहुत  देर  हो  चुकी  होती  है  , वापस  लौटना  संभव  नहीं  होता  l  जैसे  कर्ण  को  अंत  में  मालूम  हुआ  कि  वह  तो  सूर्य पुत्र  है  , महारानी  कुंती  उसकी  माँ  है   लेकिन  अब  बहुत  देर  हो  गई  थी  , अनीति  और  अत्याचार  के  दलदल  से  उसका  निकलना  संभव  नहीं  था  l  लालच , स्वार्थ  ----ऐसे  दुर्गुण  हैं   जिनके  वश  में  होकर   व्यक्ति  क्षणिक  सुखों  के  लिए  स्वयं  को  ही  बेच  देता  है  ,  एक  प्रकार  की  गुलामी  स्वीकार  कर  लेता  है  l 

9 June 2025

WISDOM -----

  पुराणों  में  देवताओं  और  असुरों  के  बीच  संघर्ष   की  अनेक  कथाएं  हैं   l  युगों  से  अच्छाई  और  बुराई  में , देवता  और  असुरों  में  संघर्ष  चला  आ  रहा  है   जिनमें  अंत  में  विजय  देवताओं  की   होती  है  ,  सत्य  और  धर्म  ही  विजयी  होता  है  l  उस  युग  में   दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोग  बहुत  थे  ,  वे  संगठित  भी  थे  और  उनका  आत्मिक  बल  बहुत  अधिक  था   इसलिए  वे  असुरों  से  मुकाबला  कर  उन्हें  पराजित  कर  देते  थे  l  कलियुग  की  स्थिति  बिलकुल  भिन्न  है   l  अब  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  , दैवीय  गुणों  से  संपन्न  लोगों  की  संख्या  बहुत  कम  है  ,  वे  संगठित  भी  नहीं  हैं  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  उन्हें  चैन  से  जीने  नहीं  देते   फिर  अपने  परिवार  की  खातिर   उन्हें  सत्ता  से  भी  समझौता  करना  पड़ता  है  l  इसलिए  इस  युग  में  पहले  जैसा  देवासुर  संग्राम  संभव  ही  नहीं  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  साम्राज्य  सम्पूर्ण  धरती  पर  है  ,  मुट्ठी  भर  देवता  उनका  क्या  बिगाड़  लेंगे  ?   लेकिन  असुरता  का  अंत  तो  होना  ही  है  , अन्यथा  यह  धरती  घोर  अंधकार  में  डूब  जाएगी  l  आसुरी  प्रवृत्ति  का  अंत  कैसे  हो  ?  इसका  संकेत  भगवान  ने  द्वापर  युग  के  अंतिम  वर्षों  में  ही  दे  दिया  था  l  किसी  कुल  या  किसी  विशेष   खानदान    में  जन्म  लेने  से  कोई  भी  देवता  या  असुर  नहीं  है  l  ईश्वर  ने  बताया  कि  मनुष्य  अपने  कर्मों  से  देवता  या  दानव  कहलायेगा  l  व्यक्ति  का  श्रेष्ठ  चरित्र  ,  उसके  श्रेष्ठ  कर्म  उसके  देवत्व  का  प्रमाण  होंगे  l   अब  दैवीय  गुणों  से  संपन्न  किसी  को  भी  असुरता   से   संघर्ष  की  जरुरत  नहीं  है  l  अपने  श्रेष्ठ  कर्मों  से  मनुष्य  के  पास  नर  से  नारायण  बनने  की   संभावना  है  l  यह  मार्ग  सबके  लिए  खुला  है  l    जो  लोग  अपनी  दुष्प्रवृत्तियों  से  उबरना  ही  नहीं  चाहते ,  अति  के  भोग -विलास  के  कारण   उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  है  ,  वे  अपने  ही  दुर्गुणों  के  कारण  आपस  में  ही  लड़कर  नष्ट  हो  जाएंगे  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अपने  ही  कुल  के  उदाहरण  से  संसार  को  समझाया  कि  स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  के  वंशज  होने  के  बावजूद   अति  के  सुख -सम्पन्नता  के  कारण  पूरा  यादव  वंश  भोग  विलास  में  डूब  गया  था  ,  उनका  चारित्रिक  पतन  हो  गया  था   इसलिए  पूरा  यादव  वंश  आपस  में  ही  लड़ -भिड़कर  नष्ट  हो  गया   और  द्वारका  समुद्र  में  डूब  गई  l  देवता  या  असुर  बनना  अब  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  हमें  निर्णय  लेना  है  ,  चयन  का  अधिकार  प्रत्येक  को  है  l