28 April 2025

WISDOM -----

  विधाता  ने  स्रष्टि  की  रचना  की  l  स्रष्टि  में  जितने  भी  प्राणी  हैं  , उनमें  मनुष्य  ही  सबसे  बुद्धिमान  है   l   मनुष्य  के  पास  उसका  ' मन '  भी  है   जिस  पर  उसका  कोई  नियंत्रण  नहीं  है  l  l  मनुष्य  का  अनियंत्रित  मन  बुद्धि  को  दुर्बुद्धि  में  बदल  देता  है  l  दुर्बुद्धि  के  कारण  ही  आज  संसार  में  इतनी  अशांति  है  l   अपनी बुद्धि  के  बल  पर  पहले  मनुष्य  विकास  करता  है  फिर  दुर्बुद्धि  के  कारण    आपस  में  युद्ध , दंगे  आदि  कर  फिर  शून्य  पर  आ  जाता  है   l  इतिहास  से  शिक्षा  ही  नहीं  लेता  है  l   प्राचीन  काल   में  लोगों  में  नैतिकता  थी , संवेदना  थी    लेकिन  अब  मनुष्य  संवेदनहीन  है   l  युद्ध  , दंगे  जैसी  परिस्थिति  में  उसके  भीतर  का  राक्षस  बाहर  आ  जाता  है  l  वीरता  के  किस्सों  से  ज्यादा  कायरता  के  किस्से  होते  हैं  l  युद्ध  के  नाम  पर  सबसे  ज्यादा  दुर्गति  महिलाओं  और  बच्चों  की  होती  है  l  युद्ध  किसी  भी  समस्या  का  हल  नहीं  है  l  अपनी  ही  कमियों  को  देखो , समझो   और  उनमें  सुधार  करो    तो  समस्या  स्वत:  ही  समाप्त  हो  जाएगी      l                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                   









































































































































































































































































































































































\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\\
































































































        

27 April 2025

WISDOM ----

  प्रत्येक  युग  की  अपनी  कुछ  विशेषताएं  हैं  , कलियुग  की  विशेषता  कहें  या  सबसे  बड़ी  बुराई  कि  इस  युग  में  कायरता  अपने  चरम  पर  है  l   छोटे  से  लेकर  बड़े  स्तर  पर  जो  भी  अपराध  होते  हैं  , उनके  पीछे  मास्टर  माइंड  कौन  है  , यह  मालूम  करना  कठिन  है   क्योंकि  नकारात्मक  शक्तियां  बहुत  मजबूती  से  संगठित  होती  हैं   l  इन्हें  केवल  इनके  अपराध  करने  के  पैटर्न  से  समझा  जा  सकता  है  l  नकारात्मक  शक्तियां   बार -बार  उसी  पैटर्न  से  अपराध  को  अंजाम  देती  हैं  l  बुद्धिमान  लोग  इसे  समझ   भी  जाते  हैं   लेकिन  इसे  युग  का  प्रभाव  कहें  व्यक्ति  अपने  स्वार्थ , लालच , लोभ , कामना और  महत्वाकांक्षा  की  वजह  से   अपने  आँख , कान  बंद  किए  रहता  है  l   रावण  के  दस  सिर  को   लोगों  ने  अपना  आदर्श  बना  लिया  l  व्यक्ति  सामने  से  समाज  सेवा  करता  हुआ , धर्म  के  उपदेश  देता  हुआ  ,  परिवार  में  सबको  साथ  लेकर  चलने  वाला , समाज  के  प्रत्येक  प्राणी  का  हित  जानने  वाला  दिखाई  देगा   लेकिन  उसके  पीछे  कितनी  कालिख  है  l  इसे  बहुत  कम  लोग  जानते  हैं ,  जो  जान  जाते  हैं  वे  भी  अनजान   बनने  का  नाटक  करते  हैं  l  जागरूक  रहकर  और   अपने  भीतर  सकारात्मकता  को  बढ़ाकर   ही  नकारात्मक  शक्तियों  से  मुकाबला  किया  जा  सकता  है  l  जो  लोग  भी  तंत्र   आदि  किसी  भी  तरह  की  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  अपराध  करते  हैं  ,  वे  स्वयं  तो  संगठित  होते  हैं   और  जिसको  अपना  लक्ष्य  बनाते  हैं  उसे  अकेला  कर  देते  हैं , उसके  सुरक्षा -तंत्र  को  छीन  लेते  हैं  या  कमजोर  कर  देते  हैं  l  असुरता  पूरी  दुनिया  पर  अपना  राज  चाहती  है  l  

26 April 2025

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  कहते  हैं ----- ' व्यक्ति  के  श्रेष्ठ  कर्म  ढाल  के  समान   उसकी  रक्षा  करते  हैं   और  दुष्कर्म  असमय  ही  उसे  मौत  के  मुँह  में   ढकेल  देते  हैं  l   एक  दिन  सभी  को   मृत्यु  के  आँचल  में   पसरना  है  ,  तो  क्यों  न  जीवित  रहते   स्वयं  को   श्रेष्ठतम  कर्मों  में   लगाए  रखा  जाये   l  श्रेष्ठ  कर्मों  से  भगवान   भी  प्रसन्न  होते  हैं  और  उनकी  कृपा द्रष्टि   बनी  रहती  है  l  बड़ी -बड़ी  दुर्घटनाएं  एक  छोटा  सा  काँटा  चुभने   में   निकल  जाती  हैं  l  "  ------ ज्योर्तिमठ  के  शंकराचार्य   के  शिष्य   कृष्ण बोधाश्रम    120  वर्ष  जीवित  रहे  l  एक  बार  वे  प्रवास  पर  थे  l  उस  इलाके  में  लगातार  चार  वर्ष  से  पानी  नहीं  गिरा  था  l  कुएं -तालाबों  का  पानी  सूख  गया  था  l  सभी  आए  और  कहा --- " महाराज  जी  !   उपाय  बताएं  ! "  वे  बोले  ---- "  पुण्य  होंगे   तो  प्रसन्न  होगा  भगवान  l "  लोगों  ने  पूछा  --- 'क्या  पुण्य  करें  ? '  तब  महाराज जी  ने  कहा --- "  सामने  तालाब  है  , उसमें  थोडा  ही  पानी  है  l  इसमें  मछलियाँ  मर  रही  हैं  ,  पानी  डालो  l "  लोग  बोले  --- "  हमारे  लिए  ही  पानी  नहीं  है  , मछलियों   को  पानी  कहाँ  से  दें  ?  "   महाराज  ने  कहा ---- " कहीं  से  भी  लाओ  , कुओं  से  भर -भरकर  लाओ    और  तालाब  में  डालो  l "  सभी  ने  पानी  तालाब  में  डालना  शुरू  किया  l  तीसरे  दिन  बदल  आए  l  घटाएं  भरकर  महीने  भर  बरसीं  l  सारा  दुर्भिक्ष --पानी  का  अभाव  दूर  हो  गया  l  

23 April 2025

WISDOM ----

  हमारे  महाकाव्य  हमें  बहुत  कुछ  सिखाते  हैं   l   रामायण  का  एक  पात्र  है ---- विभीषण  l   राक्षस  कुल  में   जन्म  लेकर  भी  उसे  सही -गलत  की  पहचान  थी  l  जहाँ  रावण  के  आतंक  से  सब  भयभीत  थे  , वहीँ  विभीषण  निडर  था   क्योंकि  वह   नीति  और  न्याय  को  समझता  था  l   विभीषण  ने  रावण  की  अनीति  के  विरुद्ध  आवाज  उठाई,  यह  जानते  हुए  भी  कि  इससे  उसका  जीवन  संकट  में  पड़  सकता  है  l  भरी  सभा  में  उसने  कहा ----- तव  उर  कुमति  बसी  विपरीता  l हित  अनहित  मानहु  रिपु  प्रीता  l    हे  अग्रज  !  आपके  अन्दर  कुमति  का  निवास  हो  जाने  से   आपका  मन  उल्टा  चल  रहा  है  , उससे  आप  भलाई  को  बुराई   और  मित्र  को  शत्रु  समझ  रहे  हैं  l   झूठी   चापलूसी  करने  वाले  सभासदों  के  बीच   अपने  भाई  विभीषण  की   नेक  सलाह  भी   रावण  को  उलटी  लग  रही  थीं  l  क्रोध   में  रावण   कह  उठा  --- ' तू  मेरे  राज्य  में   रहते  हुए  भी   शत्रु  से  प्रेम  करता  है  l  अत:  उन्ही  के  पास  चला  जा   और  उन्ही  को   नीति  की  शिक्षा  दे  l "  ऐसा  कहकर   उसने  विभीषण  को  लात  मारी   और  सभा  से  उसको  निकाल  दिया   l  समझाने  पर  भी  जो  खोटा  मार्ग  न  छोड़े ,  उससे  संबंध  ही  त्याग  देना  चाहिए   l  यही  सोचकर  विभीषण  लंका  छोड़कर   भगवान  राम  की  शरण  में  चला  गया  l  रावण  अनीति  पर  था , अत्याचारी  था  इसलिए  एक  लाख  पूत  और  सवा  लाख  नाती  समेत  उसका  अंत  हो  गया  l   विभीषण  ने   रावण  जैसे  अत्याचारी  के  साथ  रिश्ते  निभाने  के  बजाय  मर्यादा  पुरुषोत्तम  श्रीराम  की  शरण  में   रहना  उचित  समझा   l  संसार  में  आज  इतना  अत्याचार  और  अन्याय  इसीलिए  है   क्योंकि  लोग  अपने  स्वार्थ  के  लिए  अत्याचारी , अन्यायी  को  त्यागने  के  बजाय  उसकी  छत्रछाया  में  रहना  पसंद  करते  हैं   l  यही  कारण  है  की  असुरता  फलती  -फूलती  है  l  

21 April 2025

WISDOM -----

 मनुष्य के  जीवन  में  सुख -दुःख  धूप -छाँव  की  तरह  आते -जाते  हैं  l  ईश्वर  ने  धरती  पर  अवतार  लेकर   अपनी  लीलाओं  के  माध्यम  से  मनुष्य  को  जीवन  जीना  सिखाया  l  भगवान  राम  के  राज्याभिषेक  की  तैयारी  थी  लेकिन  अगले  ही  पल  उन्हें  चौदह  वर्ष  का  वनवास  हो  गया  l  श्रीराम  के  चेहरे  पर  इससे  कोई  तनाव  नहीं , क्रोध  नहीं  , कोई  विवाद  नहीं  l  जो  भी  परिस्थिति  है  उसे  सहज  स्वीकार  किया  l  एक  बार  के  लिए  यह  मान  लें  कि  भगवान  श्रीराम  और  श्रीकृष्ण  स्वयं  भगवान  थे  ,  उनके  कष्ट  उनकी  लीला  का  हिस्सा  थे  लेकिन  जो  लोग   भगवान  श्रीकृष्ण  के  परिवार  के  थे  ,  उनके  जीवन  में  कितने  कष्ट  थे  l  जो  भगवान  श्रीकृष्ण  की  माता  थीं  -देवकी  उन्हें  कंस  के  अत्याचार  सहने  पड़े  ,  उनकी  सात  संतानों  को  कंस  ने  उनके  सामने  मार  डाला  l  पांडवों  को  भगवान  श्रीकृष्ण  का  प्रत्यक्ष  आश्रय  प्राप्त  था   लेकिन  फिर  भी  उनका  सारा  जीवन  कष्ट  में  बीता  l  कृष्ण  की  बहन  सुभद्रा  के  पुत्र  अभिमन्यु  को  महाभारत  के  युद्ध  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  छल  से  मार  डाला  l  सुभद्रा  कृष्ण  से  कहती  हैं  ---- तुम्हे  तो  लोग  भगवान  कहते  हैं  फिर  भी  तुम  मेरे  पुत्र  को  बचा  नहीं  पाए  l  भगवान  कहते  हैं  ---- मनुष्य  के  जीवन  में  जो  भी  सुख  या  दुःख  है  उसके  पीछे   उसके  जन्म -जन्मान्तरों  के  कर्म  की  कहानी  है  l  कर्मफल  से  कोई  भी  नहीं  बचा  है  l  महारानी  कुंती  भगवान  श्रीकृष्ण  की  बुआ  थीं  ,  उनका  सारा  जीवन  कष्टों  में  बीता  l  जब  महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ    और  श्रीकृष्ण  द्वारका  लौटने  लगे   तो  कुंती  ने  उनसे  प्रार्थना  की  ---- " हे  प्रभु  !  आप  आशीर्वाद  दें  कि हम  पर  विपत्तियाँ  सदैव  आती  रहें  l "  श्रीकृष्ण  ने  पूछा  --- " आप  लोगों  ने  जीवन  भर  विपत्तियों  का  सामना  किया  है  ,  फिर  ऐसी  विलक्षण  मांग  क्यों  ?  ' कुंती  बोलीं  ---" भगवान  !  विपत्तियाँ  आएँगी  तो   उनसे  रक्षा  के  लिए   आप  भी  आयेंगे  l  जिस  भी  कारण  से  आपका  दर्शन  हो  ,  हमारे  लिए  तो  सोभाग्यशाली  ही  होगा  l "  विपत्तियाँ  हर  एक  के  जीवन  में  आती  हैं  ,  पर  जिनकी  भगवान  पर  अटल  श्रद्धा  होती  है  ,  वे  इन  क्षणों  को  जीवन  का  सौभाग्य  मानकर  स्वीकार  करते  हैं  l   आचार्य श्री  कहते  हैं  ---"  जीवन  के  प्रत्येक  पल एवं  प्रत्येक  घटनाक्रम   सकारात्मक   एवं  सार्थक   उपयोग  करो  l  जीवन  की  हर  चोट ,  हर  पीड़ा  हमें   गढ़ती  है  , संवारती  है  l  

20 April 2025

WISDOM -----

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " पाप  पहले  तो   आकर्षक  लगता  है  l  फिर  आसान  हो  जाता  है  l  इसके  बाद  आनंद  का  आभास  देने  लगता  है  तथा  अनिवार्य  प्रतीत  होने  लगता  है  l  क्रमशः   वह  हठी    और  ढीठ  बन  जाता  है  l  अंततः  सर्वनाश  कर  के  हटता  है  l  "   महाभारत   में  यही  सत्य  सामने  आया  l  धृतराष्ट्र  के  अंधे  मोह  ने  दुर्योधन  को  हठी  बना  दिया  ,  बाल्यकाल  से  ही  वह  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  रचने  लगा  l   दुर्योधन   पितामह  भीष्म  और  गुरु  द्रोणाचार्य  की  भी  कोई  बात  नहीं  मानता  था  l    मामा  शकुनि  का  साथ  मिल  जाने  से  छल ' कपट  और  षड्यंत्र   करना  उसकी  आदत  बन  गए  l  पांडवों  को  सताने  में  उसे  आनंद  आने  लगा  l  हर  अति  का  अंत  होता  है   l  दुर्योधन  के  ऐसे  हठी  स्वभाव  के  कारण  ही  कौरव  वंश  का  सर्वनाश  हो  गया  l  

18 April 2025

WISDOM ------

   संसार  में  अच्छाई  और  बुराई  दोनों  हैं  l  सन्मार्ग  पर  चलने  वाले   हैं  तो  दूसरी  ओर   दुष्ट  प्रवृत्ति  के   लोगों  की  कमी  नहीं  l   एक  तरह  से  देखा  जाए  तो  दुष्ट  प्रवृत्ति  के  लोगों  की  संसार  में  उपस्थिति  बहुत  जरुरी  है   क्योंकि  जब  ये  लोग   सीधे -सच्चे  लोगों  को   सताते  हैं  , उन्हें  उत्पीड़ित  करते  हैं   तो  इसके  दो  फायदे  होते  हैं  --- एक  यह  कि  उत्पीड़न   लगातार  सहन  करते  रहने  से  उनकी  भीतर  की  सोयी  हुई  गुप्त  शक्तियां  जाग्रत  होने  लगती  हैं  ,  सत्य  की  ताकत  से  उनका  आत्मिक  बल  बढ़ने  लगता  है  l  जो  सन्मार्ग  पर  है  उसे  यह  विश्वास  होता  है  कि  उसके  साथ  ईश्वर  है   इसलिए  वे  निरंतर  संघर्ष  करते  हैं   , कभी  निराश  नहीं  होते  l  दुष्ट  व्यक्तियों  की  उपस्थिति  का  दूसरा  सबसे  बड़ा  फायदा  यह  होता  है  कि   ऐसी  सामूहिक  दुष्टता  के  निवारण  के  लिए  स्वयं  भगवान  को  धरती  पर  आना  पड़ता  है  l   अपने  भक्तों  को  उत्पीड़ित  करने  वाले   को  भगवान  कभी  क्षमा  नहीं  करते  l  यदि  दसों  दिशाओं  में  रावण  का  आतंक  नहीं  होता  ,  उसके  अत्याचार   की   अति  न  होती  तो  भगवन  श्रीराम   इस  धरती  पर  क्यों  आते  ?  रावण  था  ,  तभी  श्रीराम  आए  l    यदि  कंस  जैसा  पापी  न  होता   तो  भगवान  श्रीकृष्ण  क्यों  आते  ?   उस  युग  में  अधर्म , अत्याचार , अन्याय   इतना  अधिक  था  कि  ईश्वर  को  अपना  वैकुण्ठ  धाम  छोड़कर  धरती  पर  आना  पड़ा  l  हिरण्यकश्यप  ने  अपने  ही  पुत्र  प्रह्लाद  को  इतना  सताया  कि   नृसिंह  भगवान  खम्भे  से  प्रकट  हो  गए  l  इस  द्रष्टि  से  दुष्ट  व्यक्ति  भी  प्रशंसनीय  है  l    वे  बेचारे  पाप  कर्म  कर  के  अपना  पाप  का  घड़ा  भरते  जाते  हैं   और  जो  उनके  इन  दुष्कृत्यों   को  चुनौती  मानकर   उनका  सामना  करे   तो  वह  सफलता  के  पथ  पर  आगे  बढ़ता  जाता  है  l  दुष्ट  व्यक्तियों  ने  पत्थर  फेंके  और  समझदार  उनसे  सीढ़ी  बनाकर  ऊपर  चढ़  गया  l  यह  संसार  एक  रंगमंच  है  हमें  बड़ी  समझदारी  से  अपनी  भूमिका  निभानी  है  l  

17 April 2025

WISDOM -----

   एक  दिन  महाराज  सुदास  के  पुत्र  कल्याणपाद  आखेट  कर  के  राजमहल  लौट  रहे  थे l  मार्ग  में  एक  तंग  पुलिया  पड़ी  ,  जिस  पर  से  एक  समय  में  एक  ही  व्यक्ति  निकल  सकता  था  l  उस  मार्ग  पर  दूसरी  ओर  से   ऋषि  वसिष्ठ  के  पुत्र   शक्ति  मुनि  आ  रहे  थे  l  दोनों  ही  हठधर्मिता  के  कारण  पुलिया  के   दोनों  सिरों  पर  खड़े  रहे   और  दूसरे  को  निकलने  का  स्थान  नहीं  दिया  l  बहुत  देर  तक  ऐसा  होने  पर  शक्ति  मुनि  को  क्रोध  आ  गया   और  उन्होंने  कल्याणपाद  को   राक्षस  बन  जाने  का  शाप  दे  दिया  l  राक्षस  बनते  ही  कल्याणपाद  ने  शक्ति  मुनि  का  ही  भक्षण  कर  लिया  l  उस  समय  शक्ति  मुनि  की  पत्नी  गर्भवती  थी  ,  कुछ  समय  बाद  उसने  पराशर  मुनि  को  जन्म  दिया  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  कल्याणपाद  को  पुत्रहंता  होने  पर  भी   राक्षस  शरीर  के  शाप  से  मुक्त  कर  दिया  l  जब  पराशर  मुनि  बड़े  हुए  और  उन्हें  अपने  पिता  की  मृत्यु  के  कारण  का  पता  चला   तो  वे  क्रोधित  हो  उठे  और   पुन:  कल्याणपाद  से  प्रतिशोध  लेने  को  तैयार  हो  गए  l  महर्षि  वसिष्ठ  ने  जब   अपने  पौत्र  को  प्रतिशोध  की  आग  में  जलते  देखा   तो   उन्हें  बुलाकर  समझाया  ---- "  पुत्र  !  क्रोध  करना  शूरवीरता  का  नहीं , मानवीय  दुर्बलता  का  प्रतीक  है  l  ऐसा  नहीं  है  कि  पुत्र  की  मृत्यु  का  दरद  मुझे  न  हुआ  हो   और  मैं  कल्याणपाद  को  सजा  देने  की  सामर्थ्य  न  रखता  हूँ  ,  परन्तु  मैंने  यह  अनुभव  किया  कि  किसी  और  का  जीवन  हरण  करने  से  मेरे  पुत्र  को  लौटा  पाना  संभव  नहीं  है  l  क्षमा  करने  के  लिए  ज्यादा  बड़े  ह्रदय  की  आवश्यकता  है  l "  महर्षि  वसिष्ठ  की  बात  सुनकर   पराशर  मुनि  का  ह्रदय  बदल  गया  l  

14 April 2025

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  जीवन  गुण -दोष  का  मिश्रण  है  l  यह  देखने  वाले  के  द्रष्टिकोण  पर  निर्भर  है   कि  वह  किस  पक्ष  को  देखता , चुनता  है  l  जो  सकारात्मक  पक्ष  को  देखते  व  स्वीकार  करते  हैं   उनकी  मन:स्थिति  व  परिस्थिति  सदा  सकारात्मक  ही  बनी  रहती  है  l  आचार्य श्री  कहते  हैं  --- परिस्थिति  पर  हमारा  नियंत्रण   नहीं  होता   किन्तु  मन: स्थिति  एक  ऐसा  पक्ष  है  , जिसे  हम  नियंत्रित  कर  सकते  हैं   और  उसके  अनुरूप  परिस्थितियों  का  समुचित  लाभ  उठा  सकते  हैं  l   "  कुछ  लोग  ऐसे  होते  हैं   , जो  हर  परिस्थिति  में  प्रसन्न  रहते  हैं  l  जीवन  की  कोई  भी  प्रतिकूलता  उन्हें  विचलित  नहीं  कर  पाती  l  उनके  लिए  हर  स्थिति  एक  अवसर  बन  जाती  है  , वे  हर  स्थिति  का  लाभ  उठाते  हैं  l   जैसे  --पांडवों  को  जब  वनवास  हुआ  तो  उन्होंने  उसका  दुःख  नहीं  मनाया  ,  वनवास  की  अवधि  में  तपस्या  कर  के  अपनी  शक्ति  को  बढाया  l  वर्तमान  युग  में  हम  देखें  तो  कोरोना  काल  में  जिनकी  सोच  नकारात्मक  थी  , उन्होंने   उस  समय  को  अपनी  परेशानियों  का  रोना  रोने  में  ही  समय  गँवा  दिया   लेकिन  जिनकी  सोच  सकारात्मक  थी  उन्होंने  उस  समय  का  सदुपयोग  किया  --किसी  ने  संचार  साधनों  का  उपयोग  कर  अपने  हुनर  को  बढाया  , किसी  ने  मौन  रहकर  अपना  आत्मिक  बल  बढ़ाया  ,  जो  समझदार  थे  उन्होंने  किफ़ायत  से  घर - गृहस्थी  का  खर्च  चलाकर   अच्छी  बचत  की  l  कई  ऐसे  भी  थे  जिन्होंने  नियमित  ध्यान , मन्त्र जप  ,  हवन  , योग , प्राणायाम  कर  उस  कठिन  अवधि  में  अपनी  सेहत  में , स्वास्थ्य  में   पर्याप्त  सुधार  किया   और  अध्यात्म पथ  पर  आगे  बढ़े  l   आचार्य  श्री  ने  अपने  साहित्य  और   अपनी  अमृत वाणी  से  संसार  को  जीवन  जीने  की  कला  सिखाई  है  l  यदि  हमारी  सोच  सकारात्मक  है   तो  सारे  दुःख  सुख  में  बदल  जाते  हैं  l  बदलती  परिस्थिति  के  साथ  सकारात्मकता  बनाए  रखना  ही  जीवन  में  सफलता  का  एकमात्र  सूत्र  है  l  

12 April 2025

WISDOM ------

   माली  के  लड़के  ने   अपने  पिता  को  बाग़  में   मेहनत  करते  देख कर  पूछा  ---- " पिताजी  !  आप  गुलाब  के  पौधे  पर   इतनी  मेहनत  करते  हैं  ,  वर्ष  भर  देखभाल  करने  के  बाद  ही  पौधा  तैयार  होता  है  l इसकी  जगह  बेशरम  की  झाड़ियाँ   क्यों  नहीं  लगाते  ,  वो  तो  बिना  किसी  तैयारी  के  ही   उग  आती  हैं  l  "  माली  हँसा  और  बोला  ---- "  बेटा  !  श्रेष्ठ  सम्पदाएँ  और   विभूतियाँ  हमेशा  परिश्रम   के  बाद  ही  प्राप्त  होती  हैं  l  दुर्गुण  और  अवांछित  तत्व   तो  बिना  प्रयास  के  ही  मिल  जाते  हैं  l "      आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- "  यदि  आप  इन्द्रधनुष  चाहते  हैं  , तो  आपको  वर्षा  का  सामना  तो  करना  ही  होगा  l "  

10 April 2025

WISDOM ------

  ' प्रकृति  ही  ईश्वर  है  '  मनुष्य  ने  अपने  स्वार्थ   के  लिए  , अपनी  सुख -सुविधाओं  और  भोग -विलास  के  लिए   प्रकृति  को  ही  प्रदूषित  कर  दिया  l  समय -समय  पर  प्रकृति  संकेत  देती  है  , चेतावनी  देती  है  कि  अपनी  जीवन  शैली  को  सुधारो  l  लेकिन  मनुष्य  जिद्दी  और  अहंकारी  है  l  युद्ध ,दंगे , अक्षम्य  अपराध , नकारात्मक  और  अंधकार  की  शक्तियों  के  प्रयोग  से  मनुष्य  ने   धरती , आकाश , पाताल  और  दसों  दिशाओं  को  प्रदूषित  कर  दिया  l   सहन  शक्ति  की  भी  कोई  सीमा  होती  है  l  जब  प्रकृति  को  क्रोध  आ  जाता  है  तो  वर्षों  का  विकास  एक  पल  में  धराशायी  हो  जाता  है  l  कितनी  ही  सभ्यताएं  धरती  के  गर्भ  में  समा  गईं   लेकिन  मनुष्य  इतिहास  से   शिक्षा  ही  नहीं  लेता   और  अपनी  गलतियों  से  स्वयं  ही  आपदाओं  को  आमंत्रित  करता  है  l   जैसा  भी  नुकसान  हुआ   , उस  पर  कुछ  दिन  शोक   मना  लिया  ,  सबसे  सरल  उपाय  क्षमा  मांग  ली   और  फिर  से   अपनी  गलतियों  को  नए  सिरे  से  दोहराने  के  लिए  तैयार  हो  गए  l  यह  चक्र  चलता  ही  रहता  है  l  जब  मनुष्य  की  चेतना  जाग्रत  होगी   तभी  वह  इस  चक्र  से  बाहर  निकल  सकेगा  l  समस्या  यही  है  कि  यह  चेतना  कैसे  जाग्रत  हो  ?   विभिन्न  धर्मों  में  अनेक  मन्त्र  हैं   लेकिन  चेतना  को  परिष्कृत  करने  वाला  ,  इस  विषम  चक्र  से  मुक्त  करने  वाला  केवल  एक  ही  मन्त्र  है  ----' गायत्री  मन्त्र  '   l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  कहते  हैं  --- इस  महामंत्र  को  जपने  की  शुरुआत  तो  करो  , शेष  काम  माँ  स्वयं  करा  लेंगी  l  

8 April 2025

WISDOM -------

   अंधकार  की   शक्तियों  को  यह  अहंकार  होता  है  कि  वे  अमर  हैं  , उन्हें  कोई  नहीं  मिटा  सकता   लेकिन  गहन  अंधकार  को  मिटाने  के  लिए   सूर्य  की  एक  किरण  ही  पर्याप्त  है  l  मनुष्य  संसार  से  छिपकर  , नकाब  पहनकर  अनेक  अपराध  करता  है  ,  उसे  यह  विश्वास  होता  है  कि  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  l  स्वयं  को  भगवान  समझने  के  कारण  उसे  ऐसी  ग़लतफ़हमी  होती  है  l  यह  बात  उसकी  समझ  से  परे  है  कि  प्रकृति  के  कण -कण  में  भगवान  हैं  ,  वे  उसे  देख  रहे  हैं  l  डिवाइन  टाइम  होता  है  , तब  वह  सच  सबके  सामने  आता  है  l  ईश्वरीय  शक्ति  कब  और    कैसे  मनुष्य  के  अहंकार  को  चकनाचूर   करती  है  ,  देखने   और  समझने  वालों  के  लिए  वह  चमत्कार   होता  है  l  -----------------"  नन्ही  सी  चिनगारी!  तुम  भला  मेरा  क्या  बिगाड़  सकती  हो  !   देखती  नहीं  मेरा  आकार  ही  तुमसे  कई  गुना  बड़ा  है  ,  अभी  तुम्हारे  ऊपर  गिर  पडूँ   तो  तुम्हारे  अस्तित्व  का  पता   भी  न  लगे  l  "  तिनकों  का  ढेर  अहंकार  पूर्वक  बोला  l     चिनगारी  कुछ  बोली  नहीं  ,  चुपचाप  ढेर  के  समीप  जा  पहुंची  l  तिनके  उसकी  आंच  में  भस्मसात  होने  लगे  l  अग्नि  की  शक्ति  ज्यों -ज्यों    बढ़ी  ,  तिनके  जलकर  नष्ट  होते  गए  ,   देखते -देखते   भीषण  रूप  से  आग  लग  गई    और  सारा  ढेर  राख  में  परिवर्तित  हो  गया  l  यह  द्रश्य  देख  रहे   आचार्य  ने  अपने  शिष्यों   को  बताया  ---- "  बालकों  !  जैसे  आग  की  एक  चिनगारी  ने  अपनी  प्रखर  शक्ति  से   तिनकों  का  ढेर  खाक  कर  दिया  l  वैसे  ही   तेजस्वी  और  क्रियाशील  एक  व्यक्ति  ही   सैकड़ों  बुरे  लोगों  से  संघर्ष  में  विजयी  हो  जाता  है  l  "

4 April 2025

WISDOM -------

 ईश्वर  ने  इस  धरती  पर  अनेकों  बार  विभिन्न  रूपों  में  अवतार  लिए  l  अधर्म  का  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  के  लिए  ही  ईश्वर  को  आना  पड़ा  l  कुछ  समय  के  लिए  आसुरी  शक्तियों  का  अंत  हो  जाता  है  लेकिन  अति  शीघ्र   ये  असुर  फिर  से  प्रबल  होकर  आतंक  मचाने  लगते  हैं  l  असुरता   क्या  है  ?  यदि  बच्चों  को  आरम्भ  से  ही  नैतिक  शिक्षा  न  दी  जाए  ,  तो   बालक  समाज  में  व्याप्त  दोष  -दुर्गुणों  को   सीख  जाता  है  ,  उसका  आचरण  दूषित  हो  जाता  है  ,  यही  असुरता  है  l  व्यक्ति  शिक्षा  प्राप्त  कर  बुद्धिमान  तो  बन  जाता  है   लेकिन  नैतिकता  का  ज्ञान  न  होने  के  कारण  वह  अपने  ज्ञान  का  दुरूपयोग  करता  है  l  असुरता  का  सबसे  बड़ा  दोष  यह  है  कि  यह  जंगल  की  आग  की  तरह  भड़कती  है  l  ईश्वरीय  विधान  से  उन्हें  उनके  कर्मों  का  दंड  भी  समय -समय  पर  मिलता  है   लेकिन  इस  दंड  के  बाद  उनके  आसुरी   कृत्य  समाप्त  नहीं  होते    समाप्त  नहीं  होते   l  अपना   अंत    आया  देखकर  और  प्रबल   हो  जाते  हैं  l  श्री  हनुमान जी  ने  रावण  की  लंका  जला  दी ,  उसका  पुत्र  अक्षय  कुमार  और  अनेक  राक्षस  मारे  गए  , इससे  रावण  कमजोर  नहीं  हुआ   , उसने  देवी  की  पूजा -साधना  कर  के  और  अधिक   शक्ति   प्राप्त  कर  ली  l  कंस  ने  तो  आकाशवाणी  सुन  ली  थी  कि  उसको  मारने  वाला  पैदा  हो  चुका  है   लेकिन  अपनी  मृत्यु  को  निकट  जानकार  उसने  कोई  सत्कर्म  नहीं  किए   बल्कि  अबोध  बालकों  की  हत्या  कराना  शुरू  कर  दिया  ,   अत्याचार  और   अधिक  करने  लगा  l  यह  स्थिति  प्रत्येक  युग  में  है  l  आसुरी  प्रवृत्ति  के  लोग  बड़े -बड़े  अपराध  करते  हैं  ,  जीवन  का  अंत  आया  देखकर  भी  सुधरते  नहीं  l  अपनी  सफलता  के  लिए  किसी  को  भी  अपने  रास्ते  से  हटाने  में  परहेज  नहीं  करते  l  यह  तो  स्पष्ट  हो  चुका  है  कि  असुरों  को  मारने  से  असुरता  का  अंत  नहीं  होता  l  यदि  किसी  विधि  से   उनके  विचारों  में  सुधार  हो  जाये , विचार  परिष्कृत  हो  जाएँ  ,  उनमें  सद्बुद्धि  आ  जाए  तो  रूपांतरण  होने  में  कोई  देर  नहीं  लगती  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  सद्बुद्धि  के  लिए   ' गायत्री  मन्त्र  '  को  संसार  के  लिए  सुलभ  कर  दिया  l  इस  मन्त्र में  अद्भुत  शक्ति  है  जिससे  संसार  का  कल्याण  संभव  है  l  

1 April 2025

WISDOM -------

   यदि मनुष्य  ईश्वर  के  बनाए  इस  कर्मफल  विधान  को  समझ  जाए    और  होश  में  रहकर  कर्म  करे  तो  संसार  से  अत्याचार , अन्याय , अपराध  और  पापकर्मों  का  अंत  हो  जाए  l  संसार  में  इतना  अत्याचार , अधर्म , अन्याय  इसीलिए  है  क्योंकि  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  मनुष्य  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगा  है   और  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए  मनमानी  करता  है  l  जो  जितना  बड़ा  है  उसका  अहंकार  भी  उतना  ही  बड़ा  है   l  यही  कारण  है  कि  परिवार , समाज , राष्ट्र  और  अंतर्राष्ट्रीय  स्तर  पर  जितना  भी  अन्याय , युद्ध , षड्यंत्र  , शोषण  ----- यह  सब  अहंकारियों  के  कारण  ही  है  l  यदि  धन , वैभव , पद , प्रतिष्ठा , शक्ति  में  जो  उच्च  स्तर  पर  हैं  , वे  किसी  तरह  कर्मफल  विधान  को  समझ  जाएँ   तो  संसार  में  भी  शांति  आ  जाये  और  उनका   परलोक  और  आगे  आने  वाले  जन्म  भी  सुधर  जाएँ  l  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमें  बताया  गया  है  कि   स्वयं  भगवान   और    कर्मों  का  निर्धारण  करने   वाले  यमराज   को  भी  कर्मफल  भोगना  पड़ता  है   तो  मनुष्य  इस  विधान  से  कैसे  बच  सकता  है  l   ऋषि  कहते  हैं  ---कर्मों  के  परिणाम  से  बचने  के  लिए   आप  संसार  के  किसी  भी  कोने  में  छिप  जाओ  ,  कर्म  आपको  उसी  तरह  ढूंढ  लेते  हैं  जैसे  हजारों  गायों  के  बीच  बछड़ा  अपनी  माँ  को  ढूंढ  लेता  है  l  हमारे  कर्म  हमारी  पर्सनल  फ़ाइल  है   जो  हमेशा  हमारे  साथ  है  l  अच्छा -बुरा  जो  भी  किया  है   उसका  हिसाब   जन्म -जन्मांतर  की  इस  यात्रा  में  कभी  न  कभी  चुकाना  ही  पड़ेगा  l  एक  कथा  है  ---- एक  चरवाहे  की  शिकायत  पर  राजा  ने  दूसरे  पक्ष  को  सुने  बिना  ही  अनजाने  में    महर्षि  मांडाव्य  को  सूली  की  सजा  सुना  दी  l  सूली  का   भयंकर  कष्ट  सहन  करते  हुए  महर्षि  ने  प्राण  त्याग  दिए  और  उनकी  आत्मा  यमलोक  पहुंची  l  महर्षि  की  तपस्या  के  कारण  स्वयं  महर्षि  को  लेने  यमराज   यमलोक  के  द्वार  पर  पहुंचे  l  तब  महर्षि  ने  यमराज  से  पूछा  ---" यमराज  !  मेरे  द्वारा  वह  कौन  सा  कर्म  था  जिसके   परिणाम स्वरुप  मुझे  सूली  पर  चढ़ने  का  घातक  कष्ट  भुगतना  पड़ा  l  "    तब  यमराज  ने  चित्रगुप्त  के  पास  उनके  सभी  कर्मों  का  हिसाब  देखा  और  कहा  --- "  महर्षि  !  जब  आप  आठ  वर्ष  के  थे   तब  आपने  एक  कीड़े  की  गर्दन  पर  एक  धारदार  वस्तु  से  प्रहार  किया  था  l  वही  कर्म  आपको  सूली  पर  चढ़ने  के  रूप  में  चुकाना  पड़ा  l  "  महर्षि  ने  कहा  ---- "  यमराज  !  आठ  वर्ष  के  बालक  को  कर्मों  के  शुभ -अशुभ  होने  का  विवेक  नहीं  होता  ,  उस  बालक  में  इतनी  समझ  नहीं  होती   कि  वो  अपने  कर्मों  के  दूरगामी  परिणामों  को  महसूस  कर  सके  l  ऐसी  स्थिति  में  कर्म  के  निर्धारण  की  सम्यक  जिम्मेदारी   इस  पद  पर  आसीन  होने  के  कारण  तुम्हारी  थी  यमराज  l  इस  जिम्मेदारी  को  पूर्ण  करने  में  तुम  सफल  नहीं  रहे    इसलिए  तुम्हे  भी   अपने  कर्म  दोष  का  परिणाम  भुगतना  पड़ेगा   और  तुम  धरती  पर  एक  साथ  दो  व्यक्तियों  के  रूप  में  जन्म  लोगे  l  एक  रूप  में  तुम  शासक  बनोगे  ,  परन्तु  जीवन  भर  भटकते  रहोगे   और  दूसरे  रूप  में   तुम  ज्ञानी  तो  होगे  , परन्तु  अधिकार  से  शून्य  रहोगे  l  "   महर्षि  का  वचन  सत्य  हुआ  l  यमराज  को  धरती  पर   दो  रूपों  में  जन्म  लेना  पड़ा  l  पहले  रूप  में  वे  युधिष्ठिर  बने  , जिसमें  वे  शासक  तो  थे  , परन्तु  जीवन  भर  भटकते  रहे    और  दूसरे  रूप  में  वे   सूतपुत्र  विदुर  थे   l  विदुर  ज्ञानी  थे  लेकिन  उन्हें  कोई  महत्त्व  और  अधिकार  नहीं  मिला  , गरीबी  में  जीवन  व्यतीत  किया  l  कर्म  की  गति  गहन  है  l  

30 March 2025

WISDOM -----

  मनुष्य  यदि  सुधरना  चाहे   और  सुख  शांति  से  जीवन  जीना  चाहे  तो  प्रत्येक  धर्म  में  उनके पवित्र  ग्रन्थ  हैं , प्रेरक  कथाएं  हैं   लेकिन  यदि   उसमें  विवेक  नहीं  है   तो  वह  हर  अच्छाई  में  से  बुराई  ढूंढकर  ,   उस  बुराई  को  ही  अपने  व्यवहार  में  लाकर  उसे  सत्य  सिद्ध  करने  की  हर  संभव  कोशिश  करता  है  l  जैसे  रामायण  पढ़कर  , सीरियल  देखकर   भगवान  राम   की  मर्यादा , भरत  का  आदर्श  किसी  ने  नहीं  सीखा  l   रावण  के  भी  दुर्गुण  सबने   सीखे  लेकिन  उसके  जैसा  ज्ञानी  और  विद्वान  कोई  नहीं  बना  l   इसी तरह  महाभारत  से  अर्जुन  जैसी  वीरता , युधिष्ठिर  का  सत्य  और  धर्म  का  आचरण   को  अपने  जीवन व्यवहार  में  लाना  सबको  ही  कठिन  लगता  है   लेकिन  दुर्योधन  का  षड्यंत्र , शकुनि  की   कुटिल  चालें   और   सात  महारथियों  का  मिलकर  अभिमन्यु  को  मारना  सबको  सरल  लगता  है  l  ऐसी  विवेकहीनता  ने  ही   कलियुग  को  अत्याचार  और  पाप  के  चरम  शिखर  पर  पहुंचा  दिया  है  l  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  अधर्म  के  नाश  के  लिए  जो  नीति  अपनायी   उसका  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल   बहुत  बड़े  पैमाने  पर  होता   है  l   महाभारत  का  प्रसंग  है  कि --- शल्य  पांडवों  के  मामा  थे  , वे  पांडवों  के  पक्ष  में  ही  युद्ध  करने  के  लिए  आ  रहे  थे  l  जब  दुर्योधन  को  इस  बात  का  पता  चला  तो  उसने  मार्ग  में  उनका  स्वागत  सत्कार  कर   अपनी  कुटिलता  से  उनको  अपने  पक्ष  में  कर  लिया  l  महाराज  शल्य  पांडवों  के  पास  अफ़सोस  व्यक्त  करने  आए  कि  अब  वे  विवश  हैं  और  दुर्योधन  के  पक्ष  में  रहकर  ही  युद्ध  करेंगे  l  तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उनसे  कहा  --जब  आप  युद्ध  में  कर्ण  के  सारथी  बनो  तब  अपने  शब्दों  के  मायाजाल  से  हर पल  उसका  मनोबल  कम  करते  रहना  l  भगवान  श्रीकृष्ण  जानते  थे  कि  कर्ण   को  पराजित  करना  असंभव  है  ,  यदि  उसका  मनोबल  कम  हो  जायेगा  ,  उसका  आत्मविश्वास  कम  हो  जायेगा  तो  उसे  पराजित  किया  जा  सकता  है  l  शल्य  ने  यही  किया   l  भगवान  श्रीकृष्ण  की  यह  नीति  सफल  हुई  l  कर्ण  अधर्म  और  अन्याय  के  साथ  था  इसलिए  उसे  पराजित  करना  अनिवार्य  था   l  अब   इस  युग  में  यह  नीति  लोगों  को  बहुत  सरल  लगती  है  l  इसे  सीखकर  अब  लोग  अपनी  सफलता  के  लिए  कठिन  परिश्रम  नहीं  करते  ,  उनसे  जो  श्रेष्ठ  है   उसको  हल  पल  अपमानित  कर  के  ,  जो  बुराइयाँ  , जो  कमियां  उसमें  नहीं  हैं , उन्हें  भी  उस  पर  थोपकर  ,  चारों  तरफ  उनका  डंका  पीटकर   उसे  बदनाम  करने  की  हर  संभव  कोशिश  करते  हैं   ताकि  उसका  मनोबल  कम  हो  जाए , वो  परिस्थितियों  से  हार  जाए    और  वे  हा -हा  कर  के  हँसते  हुए  स्वयं  को  सफल  और  श्रेष्ठ   बताकर  सम्मान  खींच  लें  l  हिटलर  ने  भी  कहा  है  --एक  झूठ  को  सौ  बार  बोला  जाए  तो  वह  सत्य  लगने  लगता  है  l  कलियुग  में  ऐसे  ही  झूठ  बोलने  वालों  की  श्रंखला  है  l  इस  युग  की  सारी  समस्याएं   दुर्बुद्धि  और  विवेकहीनता  के  कारण  हैं  l  आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  सद्बुद्धि  की  है  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  कहा  है  --- 'गायत्री  मन्त्र '  सद्बुद्धि  प्रदान  करता  है  , जैसे  भी  संभव  को   इस  मन्त्र  का    वैश्विक  स्तर  पर  जप  होना  चाहिए  l  तभी  संसार  में  सुख -शांति  होगी  l  

28 March 2025

WISDOM ----

  हर  युग  की  कहानी    अलग  है  l  उनकी  तुलना  संभव  नहीं  है  l  श्री राम  और  रावण  का  युद्ध   धर्म  और  अधर्म  का  युद्ध  था  , रावण  के  अन्याय  और  अत्याचार   का  अंत  करने  के  लिए  था  l  लेकिन  इसमें  एक  खास  बात  थी   कि  भगवान  राम  के  पक्ष  में  कहीं  से  भी  कोई  राजा  युद्ध  करने  नहीं  आया  l  उन्होंने  रीछ , वानर , भालुओं , बंदरों  की  मदद  से  यह  युद्ध  लड़ा  और  रावण  का  अंत  किया  l  भगवान  श्रीराम  ने   इन  प्राणियों  की  मदद  से  युद्ध  कर  संसार  को  यह  सन्देश  दिया  कि   स्रष्टि  का  प्रत्येक  प्राणी  महत्वपूर्ण  है  ,  प्रकृति  का  प्रत्येक  कण  उपयोगी  है   और  मानव  की  मदद  के  लिए  है   इसलिए  हमें  स्रष्टि  के  प्रत्येक  कण  के  साथ  संतुलन  बनाकर  चलना  चाहिए   तभी  हम  जीवन  में  सफल  हो  सकते  हैं  l  महाभारत  का  महायुद्ध   भी  अधर्म  , अन्याय , अत्याचार  का  अंत  कर  धर्म  और  न्याय  की  स्थापना  के  लिए    हुआ  था  l  इस  युद्ध  के  माध्यम  से  भगवान  ने संसार  को   कर्मफल  विधान  को  समझाया  l   इस  युद्ध  से  यह    स्पष्ट  हुआ  कि  छल , कपट , षड्यंत्र , धोखा  करने  वालों  का  कैसा  अंत  होता  है  l  व्यक्ति  सबसे  छिपकर  छल , षड्यंत्र , धोखा  करता  है   और  सोचता  है  कि  उसे  किसी  ने  नहीं  देखा  , किसी  ने  नहीं  जाना  l  लेकिन  ईश्वर  हजार  आँखों  से  देख  रहा  है   और  ऐसे  छिपकर  अपराध  करने  वालों  को  कभी  क्षमा  नहीं  करते  l  कलियुग  की  तो  बात  ही  अलग  है  l  यहाँ  सत्य  और  धर्म  पर  चलने  वाले  बहुत  कम  है  ,  उन्हें  भी   नकारात्मक  शक्तियां  चैन  से  जीने  नहीं  दे  रहीं  l  इसलिए  जब  अधिकांश  आसुरी  प्रवृत्ति  के  हों  तो  धर्म  और  अधर्म  की  लड़ाई  संभव  ही  नहीं  है  l  कौन  किस को  मारे  , सब  एक  नाव  में  सवार  हैं  l  इसलिए  कलियुग  में  प्राकृतिक  आपदाएं , बाढ़ , भूकंप , सुनामी , महामारी    आदि  सामूहिक  दंड  के  रूप  में  आती  हैं  किसी  न  किसी  रूप  में  सभी  पापकर्म  में  लिप्त  हैं  इसलिए  सामूहिक  दंड  तो  भोगना  ही  पड़ेगा   जैसे  एक  मांसाहारी   मांस  खाकर  पाप  करता  है  तो   उस  मांस  के  लिए  प्राणी  का  वध  करने  वाला , उसे  बेचने  वाला , उसे  बेचने  की  अनुमति  देने  वाला ,  फिर  उसे  खरीदने  वाला ,  यह  सब  देखने  वाला  , और  देखकर  चुप  रहने  वाला   और  ऐसे  ही  विभिन्न  पापकर्मों  में  बहती  दरिया  में  हाथ  धोने  वाला  सभी   पाप  के  भागीदार  हैं  l  इसलिए  उचित  यही  है  कि  सामूहिक  दंड  के  लिए  तैयार  रहें  l  और  ईश्वर  से  प्रार्थना  करें  , उनका  नाम  स्मरण  करें   ताकि  मुक्ति  तो  मिले   अन्यथा   इस  युग  में  ऐसे   विभिन्न  प्रकार  के  पाप  करके    भूत , -प्रेत , पिशाच  और  न  जाने  किन -किन  योनियों  में  भटकना  पड़े  ,  ईश्वर  का  विधान  कौन  जान  सकता  है  l  कहते  हैं   जब  जागो  , तभी  सवेरा  l  अब  भी  मनुष्य  सुधर  जाए  ,  धर्म  का  नाटक  करने  के  बजाय  सन्मार्ग  पर  चले  ,  अपनी  गलतियों  को  सुधारे   l  फिर  ईश्वर  तो  सब  पर  कृपा  करते  हैं  l  

25 March 2025

WISDOM -----

  विधाता  ने  इस  स्रष्टि  में  अनेक  प्राणियों  की  रचना  की  l   इन  सब  में  मानव  सर्वश्रेष्ठ  है   क्योंकि  मनुष्य  के  पास  बुद्धि  है  ,  उसके  पास  अपनी  चेतना  को  परिष्कृत  करने  के  पर्याप्त  अवसर  हैं   लेकिन  अन्य  प्राणियों  को  यह  सुविधा  नहीं  है  l  मनुष्य  शरीर  में  हम  विभिन्न  रिश्तों  में  बंधे  हैं  l  ये  सब  रिश्ते  हमारे  विभिन्न  जन्मों  में किए  गए  कर्म  हैं   जिनका  हिसाब  हमें  चुकाना  पड़ता  है  l  यदि  हमारे  पूर्व  के  कर्म  अच्छे  हैं  तो  उन  रिश्तों  से  हमें  सुख  मिलेगा  l  जब  विभिन्न  सांसारिक  रिश्तों  को  लेकर  जीवन  में   दुःख  मिलता  है  l  अपमान , तिरस्कार , धोखा , षड्यंत्र  , धन , संपदा  और  हक़  छीन  लेना  जैसे   दुःख  जब  इन  रिश्तों  में  मिलते  हैं  , तब  हमें    इस  कष्टपूर्ण  समय  का  सकारात्मक  ढंग  से  सामना  करना  चाहिए  l  इन  दुःखों  के  लिए   हम  ईश्वर  को  दोष  देते  हैं  कि हमारे  जीवन  में  ही  ऐसा  क्यों  हुआ  ?  यदि  ईश्वर  को  दोष  देने  के   बजाय   हम  इस  सत्य  को  समझें   कि  यह  हमारे  पूर्व  जन्मों  में  किए  गए  विभिन्न  कर्मों  का  हिसाब  होगा  ,  जो  इस  जन्म  में   हमें  इन  विभिन्न  तरीकों  से  चुकाना  पड़  रहा  है   तो  हमारे  मन  को  शांति  मिलेगी   l  सुख  का  समय  तो  बड़ी  आसानी  से  बीत  जाता  है   लेकिन  जब  दुःख  आता  है   तो  सामान्य  मनुष्य  यही  कहता  है  कि  यदि  ईश्वर  हैं  तो  वे  आकर   संसार  के  कष्ट  क्यों  नहीं  दूर  कर  देते  l  यह  संसार  कर्मफल  के  आधीन  है  l  ईश्वर  सर्वगुण  संपन्न   और  श्रेष्ठता  का  सम्मुचय  हैं  ,  यदि  हमारी  पीठ  पर  पाप  कर्मों  की  गठरी   लदी  है   तो  ईश्वर  कैसे  आयेंगे   ?  ईश्वर  को  पाने  के  लिए  हमें  अपने  मन  और  आत्मा  को  परिष्कृत  करना  होगा  l  यदि  हम  अपनी  चेतना  को  परिष्कृत  करने  का  संकल्प  लेते  हैं  और  उस दिशा  में   आगे  बढ़ने  का  निरंतर  प्रयास  करते  हैं   तो  समय -समय  पर   इस  मार्ग  पर  आने  वाली  कठिनाइयों  से  हमारी  रक्षा  करने  के  लिए  ईश्वर  अवश्य  आते  हैं  l  ईश्वर  की  सत्ता  को  केवल  अनुभव  किया  जा  सकता  है  l  

24 March 2025

WISDOM ------

    नारद जी  ईश्वर  के  परम  भक्त  हैं  l  तीनों  लोकों  में  वे  भ्रमण  करते  हैं   l  इसी  क्रम  वे  जब  वे  धरती  पर  भ्रमण  कर  रहे  थे  तो  उन्होंने  देखा  कि  पापी  तो  बहुत  सुख  से  जीवन  व्यतीत  कर  रहे  हैं  और  जो  सज्जन  हैं , पुण्यात्मा  हैं  , वे  बड़ा  कष्ट  पा  रहे  हैं  l  उन्होंने  भगवान  विष्णु जी  से   कहा  कि  भगवान !  धरती  पर  तो  अंधेरगर्दी  चल  रही  है  ,  पाप  का  साम्राज्य  बढ़ता  ही  जा  रहा  है  l  ईश्वर  भी  क्या  उत्तर  दें  ?  यह  तो  कलियुग  का  प्रभाव  है l   द्वापर  युग  का  अंत  होने  वाला  था  , तभी  से  कलियुग  ने  अपना  प्रभाव  दिखाना  शुरू  कर  दिया  था  l   युधिष्ठिर  सत्यवादी  थे  , पांचों  पांडव  धर्म  की  राह  पर  चलते  थे  , स्वयं  भगवान  श्रीकृष्ण  उनके  साथ  थे   फिर  भी  सारा  जीवन  उन्हें  कष्ट  उठाना  पड़ा  , वन  में  भटकना  पड़ा , राजा  विराट  के   यहाँ    वेश  बदलकर  नौकर  बनकर  रहना  पड़ा  l  दूसरी  ओर  दुर्योधन  अत्याचारी , अन्यायी  था  l  सारा  जीवन  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  करता  रहा  ,  फिर  भी  हस्तिनापुर  का  युवराज  था ,  सारा  जीवन  राजसुख  भोगता  रहा  l  युद्ध  भूमि  में  मारा  गया  तो  मरकर  भी  स्वर्ग  गया  l  पांडवों  ने  जीवन  भर  कष्ट   भोगा  l  महाभारत  के  महायुद्ध  के  बाद  राज्य  भी  मिला  तो  वह  लाशों  पर  राज्य  था  ,  असंख्य  विधवाओं  और  अनाथों  के  आँसू  थे  l  धृतराष्ट्र  और  गांधारी   के  पुत्र  शोक  से  दुःखी  चेहरे  का  सामना  करना  मुश्किल  था  l  पांडवों  ने  मात्र  36 वर्ष  ही  राज्य  किया   फिर  वे  अभिमन्यु  के  पुत्र  परीक्षित  को  राजगद्दी  सौंपकर  हिमालय  पर  चले  गए   l  यह  सब  ईश्वर  का  विधान  है  , इसका  सही  उत्तर  किसी  के  पास  नहीं  है  l  कलियुग  में  भी   भगवान  पापियों  और  अत्याचारियों  का  अंत  करने  , उन्हें  सबक  सिखाने  किसी  न  किसी  रूप  में  अवश्य  आते  हैं   लेकिन  भगवान  बहुत  देर  से  आते  हैं  l   एक  बार  महर्षि  अरविन्द  ने  भी  कहा  था  --भगवान  को  सबसे  अंत  में  आने  की  आदत  है  l  जब  व्यक्ति  का  धैर्य  चुक  जाये  , संघर्ष  करते -करते  हिम्मत  टूट  जाये  , तब  भगवान  आते  हैं  l  किसी  कवि  ने  बहुत  अच्छा  लिखा  है  ---- " बड़ी  देर  भई , बड़ी  देर  भई , कब  लोगे  खबर  मोरे  राम  l  चलते -चलते   मेरे  पग  हारे  , आई  जीवन  की  शाम   l  कब  लोगे  खबर  मोरे  राम  ?  "  कलियुग  में  पाप  का  साम्राज्य  बढ़ने  का  सबसे  बड़ा  कारण  यही  है  कि  ईश्वर  के  न्याय  का  इंतजार  करते -करते  व्यक्ति  का  धैर्य  समाप्त  हो  जाता  है  l  ईश्वर   मनुष्य  के  धैर्य  की  ही  परीक्षा  लेते  हैं  l  इसलिए  हमारे  ऋषियों  ने  , आचार्य  ने   ईश्वर  को  पाने  के  लिए    भक्ति  मार्ग  का  सरल  रास्ता  बताया  है  l  ईश्वर  स्वयं  अपने  भक्तों  की  रक्षा  करते  हैं  ,  भक्त  के  जीवन  में  कठिनाइयाँ  तो  बहुत  आती  हैं  लेकिन  ईश्वर  स्वयं  आकर  उन्हें   उन  कठिनाइयों  से  उबार  लेते  हैं  l  सत्य  के  मार्ग  पर  कठिनाइयाँ  तो  बहुत  हैं  ,  लेकिन  ईश्वर  हमारे  साथ  है  , वे  हमारी  नैया  पार  लगा  देंगे  ,  यह  अनुभूति  मन  को  असीम  शांति  प्रदान  करती  है  ,  जो  अनमोल  है  l  

22 March 2025

WISDOM -----

  देवता  और  असुरों  में  तो  आदिकाल  से  ही संघर्ष  चला  आ  रहा  है  l  देवता  विजयी  होते  हैं   लेकिन  कलियुग  का  यह  दुर्भाग्य  है  कि  इसमें  असुरता  पराजित  नहीं  होती  , असुरता  बढ़ती  ही  जाती  है  l  असुरता  को  पराजित  करने  के  लिए  आध्यात्मिक  बल  की  और  सत्कर्मों  की  पूंजी  की  आवश्यकता  होती  है  l  इसी  के  आधार  पर  दैवी  शक्तियां  मदद  करती  हैं  l  हिरण्यकश्यप  से  डरकर  सबने  उसे  भगवान  मान  लिया   लेकिन  उसी  के  पुत्र  प्रह्लाद  ने  उसे  भगवान  नहीं   माना  l  प्रह्लाद  के  पास  भक्ति  का  बल  था  l   वर्तमान  समय  में  धन -वैभव  के  आधार  पर  मनुष्य  की  परख  है  l  इसलिए  हर  व्यक्ति  धन  कमाने   और  धन  के  बल  पर  समाज  में  अपनी  साख  बनाने  का  हर  संभव  प्रयास  करता  है   l  मात्र  धन  कमाना  है  , उसमें  नैतिकता  मायने  नहीं  रखती   इसलिए  धन  कमाने  और   विलासिता  से  उसका  उपभोग  करने  के  कारण  व्यक्ति  से  अपने  जीवन  में  अनेक  गलतियाँ  हो  जाती  हैं  , जिन्हें  वह  समाज  से  छुपाना  चाहता  है  l  यही  वजह  है  कि  व्यक्ति  में  यह  कहने  का  कि  "  गलत  का  समर्थन  नहीं  करूँगा  "   का  साहस  नहीं  होता  l  अपराधी  और  शक्तिशाली  के  समर्थन  में  अनेकों  खड़े  हो  जाते  हैं  l  जब  स्वयं  में  कमियां  हों  तो   उसका  विरोध  कौन  करे  l  इसलिए  असुरता   दिन  दूनी  रात  चौगुनी  ' गति  से  बढ़ती  जाती  है  l  आसुरी  कर्म  करते  रहने  से  व्यक्ति  की  आत्मा  मर  जाती  है  ,  उनका  मन  रूपी  दर्पण  इतना  मैला  हो  जाता  है  कि  उन्हें  उसे  देखने  की  जरुरत  ही  नहीं  होती  l   उन्हें  समय -समय  पर  प्रकृति  की  मार  भी  पड़ती  है  लेकिन  ऐसे  लोगों  को  पाप कर्म  करने  की  लत  पड़  जाती  है  ,  उन्हें  इसी  में  आनंद  आता  है  l  इसी  का  नाम  संसार  है  l  

21 March 2025

WISDOM -----

संसार  में  जितने  भी  अहंकारी  हैं  , वे  स्वयं  को  भगवान  समझते हैं   इसलिए  वे  कर्म विधान  को  नहीं  मानते  l  अहंकार  के  मद  में   नित्य  नए  पाप  कर्म  करते  जाते  हैं  l  वर्तमान  युग  का  यह  कटु  सत्य  है  कि  शक्ति  और  वैभव  से  संपन्न  व्यक्ति  कितने  भी  बड़े  अपराध  कर  ले  , वह   दंड  से  बच जाता  है  l  कोई  भी  उससे  बुराई  मोल  लेना  नहीं  चाहता   और  लोगों  के  स्वार्थ  भी  उसी  की  मदद  से  पूरे  होते  हैं  l  ईश्वर  की  अदालत  में  भी  बड़ी  देर  से  न्याय  होता  है  l  सीता जी  को  भी  14  वर्ष  तक  रावण  की  अशोक  वाटिका  में  रहना  पड़ा  l  इतने  दीर्घकाल  तक  इंतजार  के  बाद  रावण  का  अंत  हुआ  l  यही  स्थिति  महारानी  द्रोपदी  की  थी  l  दु :शासन  द्रोपदी  के  केश  पकड़  कर  उन्हें  घसीटते  हुए   भरी  सभा  में  लाया  था  l   भगवान  श्रीकृष्ण  ने  द्रोपदी  की  लाज  रखी  l  उस  समय  अपमानित  द्रोपदी  ने  प्रतिज्ञा  की  कि    दु:शासन  के  खून  से  अपने  केश   धोने  के  बाद  ही  वे  इन  केशों  को  बांधेंगी  l  इसके  बाद  जब  भी  श्रीकृष्ण  से  उनकी  मुलाकात  होती  तो  वे  भगवान  को  अपने  खुले  केश  दिखातीं   और  कहतीं  --भगवान  !  वह  दिन  कब  आएगा  जब  ये  केश  बंधेंगे  ?  भगवान  श्रीकृष्ण  उन्हें  समझाते    और  कहते  कि   द्रोपदी  ,  मैंने  केवल  तुम्हारे  केशों  की खातिर  धरती  पर  अवतार  नहीं  लिया  है  l  अवतार  का  उदेश्य  बहुत  बड़ा  है  ,  अधर्म  का  नाश  और  धर्म  की  स्थापना  l  महाभारत  का  महायुद्ध  कोई  अचानक  होने  वाली  घटना  नहीं  है  ,  इसकी  भूमिका  बहुत  पहले  से बन  रही  थी  l  अधर्मी , अत्याचारी  और  बदले  की  भावना  से  ग्रस्त  सब  कुरुक्षेत्र  के  मैदान  में  एकत्र  हुए  ,  तब  एक -एक  कर  के  सबका  अंत  हुआ  l  यही  स्थिति  वर्तमान  की  है  l   पाप  और  अत्याचार  से  सम्पूर्ण  धरती , प्रकृति  सब  त्रस्त  है  l  ईश्वर  के  यहाँ  अवश्य  ही  कोई  योजना  बन  रही  है  कि  कैसे  इस  धरती  को  पाप  के  बोझ  से  मुक्त  किया  जाए  l  अहंकारी  इस  सत्य  को  समझते  और  स्वीकारते  नहीं  हैं  , वे  स्वयं  ही  अपना  पाप  का  घड़ा  भरते  जाते  हैं   और  ईश्वर  का  काम  सरल  कर  देते  हैं  l  घड़ा  तो  फुल  भरने  के  बाद  ही  फूटता  है  ,  उससे  पहले  उसे  फोड़ने  की   इजाजत  भगवान  को  भी  नहीं  है  l   

20 March 2025

WISDOM -----

 इस संसार  में  अँधेरे  और  उजाले  का  निरंतर  संघर्ष  है  l  अंधकार  की  शक्तियां  निरंतर  सामूहिक  रूप  से   उजाले  को  रोकने  का  भरसक  प्रयास  करती  हैं   l  ये  प्रयास  हर  युग  में   हुए  हैं  , बस !  उनका  तरीका  अलग -अलग  है  l  रावण  अपने  राक्षसों  को   आदेश  देता  था  कि  जाओ ,  कहीं  भी  यज्ञ ,  हवन  आदि  पुण्य  कार्य  हो  रहे  हों  तो  उन्हें  नष्ट  करो , उनमें  विध्न , बाधाएं  उपस्थित  करो  ,  ऋषि -मुनियों  को  मार  डालो , कोई  संकोच  नहीं  l  हिरण्यकश्यप  स्वयं  को  भगवान  कहता  था  ,  जो  उसे  न  पूजे  ,  उसे  फिर  अपनी  जिन्दगी  जीने  का  कोई  हक  नहीं  l  महाभारत  काल  में  अत्याचार , अन्याय  और  षड्यंत्रों  की  विस्तृत  श्रंखला   के  रूप  में  अंधकार  की  शक्तियां  प्रबल  रहीं   l  महारानी  द्रोपदी  को  अपमानजनक  शब्दों  का  सामना  करना  पड़ा  l  कलियुग  आते -आते  लोगों  की  मानसिकता  विकृत  होने  लगी  l  वीरता  का  स्थान  कायरता  ने  ले  लिया  l  जो  आसुरी  प्रवृत्ति  के  हैं ,  उनमें  निहित  दुर्गुण  इतने  प्रबल  हो  गए  कि   उन  दुर्गुणों  के  भार  ने  असुरों  के  मनोबल  को  बिलकुल  समाप्त  कर  दिया  ,  उन्हें  कायर  बना  दिया  इसलिए  अब  ऐसे  असुर   उजाले  को  मिटाने  के  लिए  अनेक  कायराना  तरीके  अपनाते  हैं   l  चाहे  भगवान  बुद्ध  हों , स्वामी  विवेकानंद  हों   या  अध्यात्म  पथ  को  कोई  भी  पथिक  हो  ,  उसके  चरित्र  पर  प्रहार  करते  हैं  ताकि  उसका  मनोबल  टूट  जाए  ,  वह  अपने  पथ  से  भटक  जाए  l  उनके  जीवन  में  आँधी -तूफ़ान  लाने  का  भरपूर  प्रयास  करते  हैं  लेकिन  अंत  में  जीत  सत्य  की  होती  है  l  ऐसे  कायर  असुरों   के  प्रहार  से  अपने  आत्म  बल  को  मजबूत  बनाए  रखने  का  एक  ही  तरीका  है   कि  ईश्वर   के  विधान  पर  अटूट  आस्था  और  विश्वास  हो  , वार  चाहे  कितना  ही  गहरा  हो  अपने  मन  को  न  गिरने  दें  l  दुनिया  क्या  कहती  है  , इस  पर  ध्यान  न  दें   l  उस  परम  सत्ता  की  निगाह  में  श्रेष्ठ  बनने  का  प्रयास  करें  l  

19 March 2025

WISDOM ------

  आतंकवाद  एक  दूषित  मानसिकता  है  l  आतंकवादी  केवल  वे  नहीं  हैं  जो  दूसरे  देशों  से  आकर  मासूम , निर्दोष  और  निरीह  लोगों  को  मारकर  अपनी  कायरता  का  प्रमाण  देते  हैं  l  आतंकवादी  एक  राक्षस  के  समान  होते  हैं  , इनके  ह्रदय  में  संवेदना  नहीं  होती  l  इनका  दिल  पत्थर  की  तरह  होता  है   जिसमें  क्रूरता  होती  है  l  ये  निर्दयी  और  क्रूर  होते  हैं  मानवता  इनमें  नहीं  होती  l  ऐसे  दुर्गुणों  से  युक्त  व्यक्ति  परिवार , समाज  राष्ट्र  और  संसार   में  हैं   जो   अक्सर  मुखौटा  लगाकर  , कभी  प्रत्यक्ष  रूप  से  , कभी  तंत्र  आदि  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से   और  कभी  षड्यंत्र  रचकर , धोखा  देकर  अपनी  निर्दयता  और  क्रूरता  का  परिचय  देते  हैं  l  ऐसे  आतंकवादियों  से  स्वयं  की  सुरक्षा  बड़ा  कठिन  है  l  कहीं  तो  जन्म  से  ही  आतंकी  बनने  की  ट्रेंनिंग  दी  जाती  है  लेकिन  अनेक  ऐसे  उदाहरण  हैं  जहाँ  व्यक्ति  के  पूर्व  जन्मों  के  संस्कार  के  जाग्रत  हो  जाने  के  कारण  उसमें  निर्दयता  , क्रूरता , अहंकार  जैसे  दुर्गुण  आ  जाते  हैं   और  इन्हीं  के  पोषण  के  लिए   वो  जघन्य  कार्य  करता  है  l  त्रेतायुग  और  द्वापरयुग  में  जब  पाप  का  प्रतिशत  इतना  अधिक  नहीं  था   तब  अत्याचार , अन्याय  अधिकांशत:  प्रत्यक्ष  था  लेकिन  कलियुग  में  कायरता  बढ़  जाने  के  कारण   पीठ  में  छुरा  भौंकने  के  उदाहरण  बहुत  अधिक  हैं  l   आतंकवादी  मानसिकता  का   महाभारत  का  प्रसंग  है -----  गुरु  द्रोणाचार्य  का  पुत्र  अश्वत्थामा  बहुत  वीर  था  l  उसे  भी  शस्त्र -शास्त्र  का  अच्छा  ज्ञान  था   लेकिन  बुद्धि  भ्रष्ट  हो  गई  ,  उसने  शिविर  में  रात्रि  में  प्रवेश  कर    सोए  हुए  द्रोपदी  के  पांच  पुत्रों  को  मार  डाला  l  इससे  भी  उसको  शांति  न  मिली   तो  अपने  ब्रह्मास्त्र   का  प्रयोग   अभिमन्यु  की  पत्नी   उत्तरा  के  गर्भस्थ  पुत्र  को  मारने  के  लिए  किया  l  इस  अमानवीय  कृत्य  से  सभी  चीत्कार  उठे  l  द्रोपदी  ने  भीम  से  कहा  कि  तुम्हारा  इतना  बल  किस  काम  का  ,  जो  निर्दयी  अश्वत्थामा  को   दण्डित  न  कर  सके  l  जब  भीम  अश्वत्थामा  के  पास  जाने  लगे  तो  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  भीम  को  रोका  और  कहा  कि  इस  समय  अश्वत्थामा   राक्षस  बन  चुका  है  ,  अपनी  सभी  मर्यादा  और  नीतियों  को  भूलकर  दानव  बन  गया  है  l  उसकी  मन:स्थिति  में  दया  नहीं , क्रूरता  है  , वह  भीम  को  भी  मार  सकता  है  l   ---यही  मानसिकता  आतंकवादियों  की  होती  है  l  निर्दयता , क्रूरता , चालाकी  जैसे  दुर्गुणों  से  युक्त  व्यक्ति  अब  समाज  में  ही  घुल-मिलकर  रहते  हैं  l  इनका  सच  तो  वही  समझ  पाता  है  जिसका  उनसे  पाला  पड़ता  है  l  

14 March 2025

WISDOM ------

 जीवन  में  आने  वाली  कठिनाइयों  को  चुनौती  मानकर  सकारात्मक  तरीके  से   उनका  मुकाबला  किया  जाए  तो  जीवन  में  सफलता  अवश्य  मिलती  है  l  हमारे  महाकाव्य  हमें  इस  बात  की  शिक्षा  देते  हैं  कि   अंधकार  कितना  ही  घना  क्यों  न  हो  ,  सूर्योदय  अवश्य  होता  है  l  इसी  विश्वास  को  अपने  ह्रदय  में   रखकर  निरंतर  अपने  व्यक्तित्व  को  परिष्कृत  करने  का  प्रयत्न  किया  जाए  तो  सफलता  अवश्य  मिलती  है  l  महाभारत  में  पांडवों की  माता  कुंती  का  चरित्र  अनूठा  है  l   उनकी  महानता  की  कहीं  कोई  तुलना  नहीं  है  l  धृतराष्ट्र  के  भाई   पांडु   से  उनका  विवाह  हुआ  था  l  महाराज   पांडु  को  शिकार  का  शौक  था   ,  एक  दिन   उन्होंने  जंगल  में   अपने  तीर  से  हिरन  को  मारा  ,  वह   एक  ऋषि  थे  जो  हिरन  के  वेश  में   थे  और   उस  समय  अपनी  पत्नी  के  साथ  थे   l  मरते  हुए  ऋषि  ने  पांडु  को  श्राप  दिया  कि  ----अपनी  पत्नी  के  साथ  जब  तुम  इसी  तरह  प्रेम  में  होगे  तो  तुम्हारी  मृत्यु  हो  जाएगी  l  '  इस श्राप  के  कारण  महाराज  पांडु  अपनी  दोनों  पत्नियों  कुंती  और  माद्री  के  साथ   ब्रह्मचारी   का  जीवन  व्यतीत  करने  लगे  l  महारानी  कुंती  ने  अपने  जीवन  में  सादगी  को  अपना  लिया  ,   उन्होंने  अपना  व्यवहार  संतुलित  रखा  ताकि  महाराज  के  जीवन  पर  कोई  आंच  न  आए  l  होनी  को  कौन  टाल  सकता  है  l  एक  दिन  जब  वह  अपनी  दूसरी  पत्नी  माद्री  के  साथ  एकांत  के  पल  में  थे  तब  ऋषि  के  श्राप  का  असर  हुआ  और  उनकी  तत्काल  मृत्यु  हो  गई  l  माद्री  ने  स्वयं  को  उनकी  मृत्यु  का  कारण  मानकर  उसी  समय  अपने  प्राण  त्याग  दिए  l  युवावस्था  में  ही  पति  की  मृत्यु  हो  जाने  से   पांचों  पुत्रों  के  पालन -पोषण  की  जिम्मेदारी  कुंती  पर  आ  गई  l    पिता  का  साया  सिर  पर  से   हटते  ही  दुर्योधन  आदि  कौरवों  के  अत्याचार  और  षड्यंत्र  शुरू  हो  गए  l  कुंती  ने  कभी  हिम्मत  नहीं  हारी  ,  अनेक  कष्टों  को  सहते  हुए  उन्होंने  अपने  बच्चों  की  सही  परवरिश  की  l  यह  कुंती  का  ही  त्याग  और  बलिदान  था  जिसने  पांचों  पांडवों  को  शस्त्र  और  शास्त्र  में  निपुण , धर्म  , सत्य  और  नीति  की  राह  पर  चलने  वाला  बना  दिया  l  दूसरी  ओर  धृतराष्ट्र  की  पत्नी  पतिव्रता  थीं  ,  लेकिन  उन्होंने  अपनी  आँख  पर  पट्टी  बाँध  ली   ताकि  अपने  पति  की  तरह  वे  भी  दुनिया  को  न  देख  सकें  l   इसका    परिणाम  यह  हुआ  कि  वे  अपने  बच्चों  की  गतिविधियों  पर  भी  नजर  नहीं  रख  सकीं  और  सब  साधन  होते  हुए  भी   उनके  जीवन  को  सही  दिशा  न  दे  सकीं  परिणाम स्वरुप  कौरव  अधर्म  और  अन्याय  की  राह  पर  चलने  लगे   और  कौरव  वंश  का  सर्वनाश  हुआ  l  

13 March 2025

WISDOM ------

  नकारात्मक  सोच  वाला  व्यक्ति  न  केवल  स्वयं  परेशान  रहता  है  बल्कि  अपने  आसपास  के  लोगों  को  भी  वैसी  ही  नकारात्मक  सोच  का  बना  देता है  l   ऐसे  व्यक्ति  कभी  भी  किसी  भी  कार्य  में  अच्छाई  को  नहीं  देखते  ,  वे  हमेशा  उसमें  से  बुराई  को  ढूंढ  निकालते  हैं  l  इसका  परिणाम  यह  होता  है  कि  वे  स्वयं  उन  बुराइयों  से , नकारात्मकता  से  घिरे रहते  हैं  l  इसका  परिणाम  कभी  भी  शुभ  नहीं  होता  l  ------ महाभारत  का  प्रसंग  है   कि  भीष्म  पितामह  ने  गांधार  नरेश  से  बात  कर  के  उनकी  पुत्री  गांधारी  का  विवाह  धृतराष्ट्र  से   संपन्न  कराया  l  भीष्म  पितामह  कोई  प्रस्ताव  प्रस्तुत  करें  तो  उसे  कोई  अस्वीकार  करने  का  साहस  नहीं  कर  सकता  l  गांधारी  के  भाई  शकुनि  ने  जब  देखा  कि  उसकी  बहन  का  विवाह  एक  अंधे  व्यक्ति  के  साथ  हुआ  है   , भीष्म  पितामह  के  सामने  उनके  पिता  गांधार  नरेश  कुछ  बोल  न  सके   तो  शकुनि   को  बहुत  क्रोध  आया   और  उसके  मन  में  बदले  की  भावना  जाग्रत  हो  गई  कि  वह  किसी  न  किसी  तरह  इसका  बदला  अवश्य  लेगा  l  यहाँ  शकुनि  को  सोच  नकारात्मक  थी  , उसने  यह  नहीं  देखा  कि  उसकी  बहन  एक  विशाल  साम्राज्य  की  कुलवधु  ,  सबके  सम्मान  की  अधिकारिणी  बन  गई   l  एक  ऐसा  साम्राज्य  जिसके  संरक्षक  गंगापुत्र  भीष्म  थे  , एक  से  बढ़कर  एक  शक्तिशाली  राजा -महाराजा  उनके  आगे  सिर  झुकाते  थे  , शस्त्र - शास्त्र  के  ज्ञाता  द्रोणाचार्य  उसमें  आश्रय  पाते  थे  l  विशाल  , एकछत्र  साम्राज्य  का  वैभव  गांधारी  के  चरणों  में  था  l  संसार  का  सब  सुख  और  सम्मान  उसे  मिला  l  यह  सब   अच्छाई ,  सकारात्मकता   शकुनि  को  दिखाई  नहीं  थी  l  उसे  तो  केवल  यही  दिखाई  दे  रहा  था  कि  धृतराष्ट्र  अंधे  हैं  l  उसने  अपना  बदला  लेने  के  लिए  ,  भीष्म  पितामह  द्वारा  संरक्षित  साम्राज्य  की  शांति  भंग  करने  के  लिए  दुर्योधन  को  अपना  हथियार  बनाया  l  वह  निरंतर  दुर्योधन  के  मन  में  पांडवों  के  प्रति  द्वेष  की  भावना  भरता  रहता ,  दुर्योधन  की  मदद  से  अपनी  कुत्सित  चालों  को  अंजाम  देता  l  हस्तिनापुर  का  साम्राज्य  कौरव- पांडवों   के  आपसी  बैर  का    षड्यंत्रों  का  केंद्र  बन  गया  l  इसका  परिणाम  हुआ  --महाभारत  का  महायुद्ध  l  जिस  बहन  के  अंधे  पति  को  देखकर  उसे  दुःख  हुआ , बदले  की  भावना  जाग्रत  हुई ,  उसी  बहन  के  सौ  पुत्र  इस युद्ध  में   मृत्यु  को  प्राप्त  हुए  l  बहन  के  प्रति  ऐसा  कैसा  प्रेम  !  उसे  ऐसा  दुःख  दे  दिया  जिसकी  भरपाई  कभी  नहीं  हो  सकती  ,  पूरा  कौरव  वंश  नष्ट  हो  गया  l   यदि  शकुनि  अपना  गांधार  देश  छोड़कर   अपनी  बहन  के  साथ  हस्तिनापुर  में  नहीं  रहता   तो  इतना  अनर्थ  न  होता  l  यह  प्रसंग  हमें  यही  शिक्षा  देता  है  कि  मनुष्य   का   अपने  जीवन  में  विभिन्न  मानसिकता  के  लोगों  से  सामना  होता  है , व्यवहार  होता  है  l  किसी  की  कोई  बात  बुरी  लगती  है  तो  बदला  लेने  का  सकारात्मक  तरीका  अपनाओ  ,  स्वयं  को  उससे  श्रेष्ठ  साबित  करो  , अपने  व्यक्तित्व  को  ऊँचा  उठाओ  ,  प्रतिपक्षी  स्वयं  ही  हार  जायेगा  l  

11 March 2025

WISDOM ---

   एक  गुरु  के  दो  शिष्य  थे  l  दोनों  किसान  थे  l  भगवान का  भजन  भी  दोनों  करते  थे  l  किन्तु  एक  बड़ा  सुखी  था  ,  दूसरा  बड़ा  दुःखी  था  l  गुरु  की  मृत्यु  पहले  हुई  ,  उनके  बाद  दोनों  शिष्यों  की  भी  मृत्यु  हो  गई  l  संयोग  से  स्वर्गलोक  में  भी  तीनों  एक  ही  स्थान  पर   आ  मिले  l  पर  यहाँ  भी  स्थिति  पहले  जैसी  थी  l  जो  पृथ्वी  पर  सुखी  था  , वह  यहाँ  भी  प्रसन्नता  का  अनुभव  कर  रहा  था   और  जो  पृथ्वी  पर  अशांत  रहता  था  ,  वह  यहाँ  भी  अशांत  दिखाई  दिया  l   दुःखी  शिष्य  ने  गुरुदेव  से  पूछा  --- "  भगवन  !  लोग  कहते  हैं   कि  ईश्वर भक्ति  से   स्वर्ग  में  सुख  मिलता  है  ,  पर  हम  तो  यहाँ  भी  दुःखी  के  दुःखी   रहे  l "  गुरु  ने  गंभीर  होकर  उत्तर  दिया  ---- " वत्स  !  भक्ति  से  स्वर्ग  तो  मिल  सकता  है  ,  पर  सुख  और  दुःख  मन  की  देन  है  l  मन  शुद्ध  है   तो  नरक  में  भी  सुख  है   और  मन  शुद्ध  नहीं  है   तो  स्वर्ग  में  भी  कोई  सुख  नहीं  है  l 

10 March 2025

WISDOM ------

 इस  संसार  में  मनुष्य  कर्म  करने  के  लिए  स्वतंत्र  है  ,  ईश्वर  इसमें  हस्तक्षेप  नहीं  करते  l  व्यक्ति  अच्छा  या  बुरा  जो  भी  कर्म  करता  है  , उसके  अनुरूप  ही  उसका  फल  उसे  मिलता  है  l  ईश्वर  स्वयं  इस  कर्मफल  से  नहीं  बचे  हैं  l  जब  महाभारत  के  महायुद्ध  में  सात  महारथियों  ने  मिलकर  अभिमन्यु  को  मारा  था  , तब  अभिमन्यु  की  माँ  सुभद्रा  जो  श्रीकृष्ण  की  सगी  बहन  थीं  ,  उन्होंने  श्रीकृष्ण  से  कहा  --- तुम्हे  तो  लोग  भगवान  कहते  हैं  ,  तुम  मेरे  ही  पुत्र , अपने  भानजे  अभिमन्यु  की  रक्षा  न  कर  सके  ! "  तब  श्रीकृष्ण  ने  कहा --- 'यह  संसार  कर्मफल  के  आधीन  है  l  हमारा  वर्तमान  जीवन  कई  जन्मों  की  यात्रा  है  l  मनुष्य  जो  भी  कर्म  करता  है  उसका  फल  उसे  कब  , कैसे  और  किस जन्म  में  किस  प्रकार  मिलेगा   , यह  काल  निश्चित  करेगा  l  त्रेतायुग  में  मैंने  बाली  को  छुपकर  मारा  था  ,  वह  बाण  मेरे  लिए   भी  रखा  है  l  '   जब  भगवान  श्रीकृष्ण  पेड़  के  नीचे  विश्राम  कर  रहे  थे  तब  व्याध  का  बाण  लगने  से  उनकी  मृत्यु  हुई  l  कभी  -कभी  ऐसा  भी  होता  है  कि  वर्तमान  जन्म  में  हम  जो  कर्म  करते  हैं  , उनका  फल  भी  इसी  जन्म  में  मिल  जाता  है  l  किसी  की  मदद  करने  से  पहले  भगवान  भी  देखते  हैं  कि  उसके  खाते  में  ऐसा  कोई  पुण्य  है  भी  या  नहीं  , तभी   प्रार्थना  सुनते  हैं  l   जब  दु:शासन  द्रोपदी  का  चीरहरण  करने  को  तैयार  था   और  द्रोपदी  'हे !कृष्ण  !  कहकर  भगवान  को  पुकार  रही  थी   तब  भगवान  ने  अपने  अनुचरों  से  कहा  --- द्रोपदी  हमें  पुकार  रही  है ,  देखो  उसके  खाते  में  ऐसा  कोई  पुण्य  है  कि  उसकी  मदद  की  जाए  ?  अनुचरों  ने  सब  बहीखाते  देखे  और  कहा  --- हां  भगवान  !  जब  आपने  शिशुपाल  को  सुदर्शन  चक्र  से  मारा  था  , तब  आपकी  अंगुली  थोड़ी  सी  कट  गई  थी  , उसमें  खून  बहने  लगा  था  l  तब  आपकी  महारानियाँ  देखती  रहीं  , उन्हें  समझ  नहीं  आया  की  क्या  करें  ?  तब  द्रोपदी  ने  अपनी  कीमती   साड़ी  फाड़कर  आपकी  अंगुली  में  बाँधी  थी  l  यह  सुनते  ही  भगवान  ने  वस्त्रवातर  धारण  कर  लिया  l  दु:शासन  का  दस  हजार  हाथियों  का  बल  हार  गया  ,  सारी सभा  साड़ियों  के  ढेर  से  भर  गई  ,  द्रोपदी  का  बाल  बांका  भी  नहीं  हुआ  ,  ईश्वर  ने  उसकी  लाज  रखी  l  l    इसी  तरह  पाप  कर्मों  का  फल  भी   कभी  इसी  जन्म  में  मिल  सकता  है  ,कभी  किसी  दूसरे  जन्म  में  l  कर्म  की  गति  बड़ी  न्यारी  है  ,   सामान्य   व्यक्ति  की  समझ  से  परे  है  l  इसलिए  कहते  हैं  सत्कर्मों  की  पूंजी  जोड़ते  रहो  l  कौनसा  पुण्य   हमें  कब  किसी  मुसीबत  से  बचा  ले  ,  ईश्वर  की  कृपा  मिल  जाए  l