रामकृष्ण परमहंस कहते हैं ---- भक्त तीन तरह के होते हैं l एक तमोगुणी भक्त , जो आज बहुतायत में पाए जाते हैं , जोर -जोर से चिल्लाते हैं भगवान का नाम , लेकिन जीवन में भगवान कहीं भी नहीं l 2 . दूसरे रजोगुणी भक्त --जो बहुत सारे पूजा उपचार करता है , दिखाता भी है , खरच भी करता है , पर जीवन में अध्यात्म कम है l 3. तीसरे हैं ---सतोगुणी भक्त --वे जो भी कर रहे हैं वह पूजा है l वे ढेरों अच्छे काम करते हैं , परमार्थ के कार्यों में उनकी भागीदारी है लेकिन दंभ जरा भी नहीं करते हैं l वे अहंकार करना ही नहीं चाहते l वे मात्र प्रभु के विनम्र भक्त बने रहना चाहते हैं l भक्ति के लिए जाति का कोई महत्व नहीं है l निषादराज , शबरी सदन कसाई , रसखान , रैदास --- इनकी जाति भगवान ने नहीं देखी l भगवान कहते हैं --भक्त का कल्याण तो मेरी भक्ति से हो जाता है l भक्त के लिए रूपवान होना , न होना महत्वहीन है l विभीषण बदसूरत थे , राक्षस थे l श्री हनुमानजी , सुग्रीव वानर थे , पर सभी ईश्वर के भक्त थे l
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