पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' अच्छे -बुरे वातावरण से अच्छी -बुरी परिस्थितियां जन्म लेती हैं और वातावरण का निर्माण पूरी तरह मनुष्य के हाथ में है , वह चाहे तो उसे स्वच्छ , सुन्दर और स्वस्थ बनाकर स्वर्गीय परिस्थितियों का आनंद ले सकता है अथवा उसे विषाक्त बनाकर स्वयं अपना दम तोड़े l " आज संसार में जितनी अशांति , युद्ध , अस्थिरता और तनाव है उसके लिए स्वयं मनुष्य ही दोषी है l मनुष्य ने अपनी अनंत इच्छाओं , कामना और सुख -भोग की लालसा के लिए भूमि , जल , वायु सम्पूर्ण प्रकृति को प्रदूषित कर दिया है l इच्छाएं , महत्वाकांक्षा एक ऐसा नशा है जो कभी समाप्त नहीं होता l उम्र चाहे ढल जाए लेकिन मन ललचाता ही रहता है l और जब प्रत्यक्ष उपलब्ध साधनों से संतुष्टि नहीं मिलती तब मनुष्य अपनी दमित इच्छा , महत्वाकांक्षा , कामना ----- आदि की पूर्ति के लिए नकारात्मक शक्तियों की मदद लेता है l तंत्र -मन्त्र , भूत -प्रेत , पिशाच आदि को सिद्ध कर अपने मनोरथ पूरे करना , प्राणियों की ऊर्जा का गलत इस्तेमाल करना ----- इन सबसे अद्रश्य वातावरण प्रदूषित हो जाता है l नकारात्मक शक्तियों को भी अपनी खुराक चाहिए l और यही कारण है कि हत्याएं , दुर्घटनाएं , युद्ध , ह्रदयविदारक घटनाएँ , प्राकृतिक आपदाओं की तीव्रता बढ़ जाती है l इन नकारात्मक शक्तियों की मदद से व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा कर लेता , बहुत सुख -भोग और धन लाभ भी हो जाता है लेकिन यह कभी भी स्थायी नहीं होता l एक निश्चित समय तक ही इनसे लाभ उठाया जा सकता है , ईश्वर से बड़ा कोई नहीं है l किसी का अहित करने के लिए जब इन शक्तियों का इस्तेमाल किया जाता है , तब निश्चित समयानुसार इनका स्वत: ही पलटवार भी होता है l आचार्य श्री कहते हैं ---- ' गलत रास्ते से प्राप्त की गई सफलता कभी स्थायी नहीं होती , यह अंत में कलंकित हो जाती है l ' सच्ची सफलता जिसके साथ व्यक्ति में उदारता , करुणा , भाईचारा हो , अहंकार न हो , तब व्यक्ति को जो सम्मान मिलता है , वह बड़ी कठिन तपस्या से संभव है l
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