14 November 2025

WISDOM ------

पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- ' अच्छे -बुरे वातावरण  से  अच्छी -बुरी  परिस्थितियां  जन्म  लेती  हैं   और  वातावरण  का  निर्माण   पूरी  तरह  मनुष्य  के  हाथ  में  है  ,  वह  चाहे  तो   उसे  स्वच्छ , सुन्दर  और  स्वस्थ  बनाकर   स्वर्गीय  परिस्थितियों  का  आनंद  ले  सकता  है   अथवा  उसे  विषाक्त  बनाकर   स्वयं  अपना  दम  तोड़े  l  "   आज  संसार  में  जितनी  अशांति , युद्ध  , अस्थिरता  और  तनाव    है   उसके  लिए   स्वयं  मनुष्य  ही  दोषी  है  l  मनुष्य  ने  अपनी   अनंत  इच्छाओं  , कामना  और  सुख -भोग  की  लालसा  के  लिए   भूमि , जल , वायु  सम्पूर्ण  प्रकृति  को  प्रदूषित  कर  दिया  है  l  इच्छाएं , महत्वाकांक्षा  एक  ऐसा  नशा  है   जो  कभी  समाप्त  नहीं  होता   l  उम्र  चाहे  ढल  जाए   लेकिन  मन  ललचाता  ही  रहता  है  l  और जब  प्रत्यक्ष  उपलब्ध  साधनों  से    संतुष्टि  नहीं  मिलती  तब  मनुष्य  अपनी   दमित  इच्छा  , महत्वाकांक्षा , कामना ----- आदि  की  पूर्ति  के  लिए  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  लेता  है  l  तंत्र -मन्त्र ,  भूत  -प्रेत , पिशाच  आदि  को  सिद्ध  कर  अपने  मनोरथ  पूरे  करना   ,  प्राणियों  की  ऊर्जा  का  गलत  इस्तेमाल  करना  ----- इन  सबसे  अद्रश्य  वातावरण  प्रदूषित  हो  जाता  है  l  नकारात्मक  शक्तियों  को  भी  अपनी  खुराक  चाहिए  l  और  यही  कारण  है  कि  हत्याएं , दुर्घटनाएं  , युद्ध , ह्रदयविदारक  घटनाएँ   , प्राकृतिक  आपदाओं   की  तीव्रता बढ़  जाती है  l  इन  नकारात्मक  शक्तियों  की  मदद  से  व्यक्ति   अपनी  इच्छाओं  को  पूरा  कर  लेता  , बहुत  सुख -भोग  और  धन  लाभ  भी    हो  जाता  है   लेकिन  यह  कभी  भी  स्थायी  नहीं  होता  l  एक  निश्चित  समय  तक  ही  इनसे  लाभ  उठाया  जा  सकता  है   ,  ईश्वर  से  बड़ा  कोई  नहीं  है   l  किसी     का  अहित  करने  के  लिए   जब  इन  शक्तियों  का  इस्तेमाल  किया  जाता  है  ,  तब  निश्चित  समयानुसार   इनका   स्वत:  ही   पलटवार  भी  होता  है  l    आचार्य श्री  कहते  हैं  ---- ' गलत  रास्ते  से  प्राप्त  की  गई  सफलता  कभी  स्थायी  नहीं  होती  ,  यह  अंत  में  कलंकित  हो  जाती  है  l '  सच्ची  सफलता   जिसके  साथ  व्यक्ति में  उदारता , करुणा ,  भाईचारा  हो  ,  अहंकार  न  हो  ,  तब  व्यक्ति   को  जो  सम्मान  मिलता है  , वह  बड़ी  कठिन  तपस्या  से  संभव  है  l   

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