पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' आज सबसे बड़ी आवश्यकता आस्था और विचारों को बदलने की है l इन दिनों आस्था संकट सघन है l लोग नीति और मर्यादा को तोड़ने पर बुरी तरह उतारू हैं l अनाचार की वृद्धि से अनेकों संकटों का माहौल बन गया है l न व्यक्ति सुखी है न समाज में स्थिरता है l समस्याएं , विपत्तियाँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं l स्थिर समाधान के लिए जनमानस के द्रष्टिकोण में परिवर्तन , चिन्तन का परिष्कार और सत्प्रवृत्ति संवर्द्धन ,प्रमुख उपाय है l " संसार में विभिन्न देशों की सरकारें सामाजिक सुधार और कल्याण के लिए अनेकों नियम , कानून बनाती हैं लेकिन यदि जनमानस के विचार श्रेष्ठ नहीं हैं , चिन्तन परिष्कृत नहीं है तो उन नियमों से कोई विशेष समाज में परिवर्तन नहीं होता l मानसिकता नहीं बदलने से मनुष्य ऐसे कार्य जो कानून द्वारा प्रतिबंधित हैं , वह उन्हें छिपकर करने लगता है l अच्छाई में बढ़ा आकर्षण होता है इसलिए बड़े से बड़ा पापी भी स्वयं को समाज में बहुत सभ्य और प्रतिष्ठित दिखाना चाहता है l वह अपनी मानसिक विकृतियों और पापकर्मों को समाज और परिवार से छिपकर अंजाम देता है l संचार के साधनों ने पाप और अपराध का भी वैश्वीकरण कर दिया l आचार्य श्री कहते हैं --- ' यदि समस्याओं का समाधान निकालना है तो अपने जीवन का लक्ष्य ' जीवन ' को बनाना चाहिए l व्यक्ति के जीवनक्रम और चरित्र को बनाने के लिए आस्तिकता और ईश्वर भक्ति की आवश्यकता है ताकि मनुष्य जाति का व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन श्रेष्ठ व समुन्नत बना रहे l "
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