पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- " मनुष्य को भगवान ने बहुत कुछ दिया है l बुद्धि तो इतनी दी है कि वह संसार के सम्पूर्ण प्राणियों का शिरोमणि हो गया l बुद्धि पाकर भी मनुष्य एक गलती सदैव दोहराता रहता है और वह यह है कि उसे जिस पथ पर चलने का अभ्यास हो गया है , वह उसी पर चलते रहना चाहता है l रास्ते न बदलने से जीवन के अनेक पहलू उपेक्षित पड़े रहते हैं l " आचार्य श्री कहते हैं ---- " धनी धन का मोह छोड़कर दो मिनट त्याग और निर्धनता का जीवन बिताने के लिए तैयार नहीं , नेता भीड़ पसंद करता है वह दो क्षण भी एकांत चिन्तन के लिए नहीं देता l डॉक्टर व्यवसाय करता है , ऐसा नहीं कि कभी पैसे को माध्यम न बनाए और सेवा का सुख भी देखे l व्यापारी बेईमानी करते हैं , कोई ऐसा प्रयोग नहीं करते कि देखें ईमानदारी से भी क्या मनुष्य संपन्न और सुखी हो सकता है l जीवन में विपरीत और कष्टकर परिस्थितियों से गुजरने का अभ्यास मनुष्य जीवन में बना रहा होता तो अध्यात्म और भौतिकता में संतुलन बना रहता l " ------- जार्ज बर्नार्डशा को अपने जीवन में नव -पथ पर चलने की आदत थी l उनका जन्म एक व्यापारी के घर में हुआ लेकिन उन्होंने साहित्यिक जगत में उच्च सम्मान पाया l पाश्चात्य जीवन में भी उन्होंने अपने आपको शराब , सुंदरी और मांसाहार से बचाकर रखा l उन्होंने यह सिद्ध कर दिखाया कि मनुष्य बुरी से बुरी स्थिति में भी अपने आपको शुद्ध और निष्कलुष बनाए रख सकता है , शर्त यह है कि वह अपने सिद्धांत के प्रति पूर्ण निष्ठावान हो l
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