6 December 2025

WISDOM ------

 पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  , जिनमें  प्रत्येक  युग  और  प्रत्येक  परिस्थिति  के  लिए  मार्गदर्शन  है  l  ---- दुष्ट  और  जहरीले  व्यक्तियों   से  मित्रता   या  ऐसे  लोगों  को  आश्रय  देना  या  किसी  भी  तरह  का  संबंध   स्वयं  उसके  लिए  ही  कितना  घातक  होता  है  , यह  इस  कथा  से  स्पष्ट  है ----- राजा  जनमेजय  को   जब  यह  ज्ञात  हुआ  कि  उनके  पिता  महाराज  परीक्षित  की  तक्षक नाग  के  डसने  से  मृत्यु  हुई  , तो   उन्होंने  संकल्प  लिया  कि  वे  ' सर्प यज्ञ ' कर  के  इस  सम्पूर्ण  जाति  को  ही  नाश  कर  देंगे  l  सर्प यज्ञ  आरम्भ  हुआ  , प्रत्येक  आहुति  के  साथ   दूर -दूर  से  नाग -सर्प  आकर  उस  यज्ञ  अग्नि  में  भस्म  होने  लगे  l  तक्षक  नाग  को  जब  यह  पता  चला  तो  वह   स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  के  सिंहासन  से  लिपट  गया   , कहने  लगा -रक्षा  करो  l  इंद्र  ने  बिना  सोचे -समझे  उसे  शरण  दी  और  उसकी  रक्षा  का  वचन  दिया  l  उधर  जब  यज्ञ  में  तक्षक  नाग  के  नाम  की  आहुति  दी  जाने  लगी   तो  मन्त्र  शक्ति  के  प्रभाव  से    सिंहासन  पर  विराजमान  इंद्र  के  साथ  ही   वह   तक्षक  नाग  उस  यज्ञ   की  ओर  खिंचा  जाने  लगा  l  सम्पूर्ण  स्रष्टि  में  हाहाकार  मच  गया  कि  क्या   तक्षक  नाग  के  साथ  देवराज  इंद्र  की  भी  आहुति  हो  जाएगी   l  सभी देवी -देवता  वहां  एकत्र  हो  गए   और  जनमेजय  से  निवेदन  किया  कि  वह  इस  यज्ञ  को  अब  समाप्त  कर  दे  l  देवताओं  के  दखल  से  इंद्र  और  तक्षक  दोनों,  की  ही  रक्षा  हुई  l    कथा  कहती  है  कि   कलियुग  में  जब  असुरता  अपने  चरम  पर  है   तब  परिवार  हो , समाज  हो  या  कोई  भी   सरकार या  संगठन  हो   यदि  असुरता  को   शरण  दी  है , उससे  मित्रता  की  है  तो  परिणाम  घातक  होगा  l  इस  युग  की  मानसिकता  ऐसी  है  कि  सत्संग  का  असर  चाहे  न   हो  दुष्टता   अपना  रंग  दिखा  ही  देती  है  l  

No comments:

Post a Comment