2 December 2025

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  की  अंतरात्मा  उसे  ऊँचा  उठने  के  लिए  कहती  है   लेकिन  सिर  पर  लदी   दोष  दुर्गुणों  की   भारी  चट्टानें   और  दुष्प्रवृत्तियों   उसे  नीचे  गिरने  को  बाधित  करती  हैं  l  स्वार्थ  सिद्धि  की  ललक  उसकी  बुद्धि  को  भ्रमित  कर   देती  है l  वह  लाभ  को  हानि  और  हानि  को  लाभ  समझता  है   l  आचार्य श्री  कहते  हैं ----- ' भूल  समझ  आने  पर   उलटे  पैरों  लौट  आने  में  कोई  बुराई  नहीं  है  l  मकड़ी  अपने  लिए  अपना  जाल  स्वयं  बुनती  है  l  उसे  कभी -कभी  बंधन  समझती  है   तो  रोती - कलपती  भी  है  ,  किन्तु  जब  भी  वस्तुस्थिति   की  अनुभूति  होती  है   तो  वह  समूचे  मकड़जाल  को  समेटकर  उसे  गोली  बना  लेती  है   और  पेट  में  निगल  जाती  है   और  अनुभव  करती  है  कि  सारे  बंधन  कट  गए  और  वेदनाएं सदा -सदा  के  लिए   समाप्त  हो  गईं  l  इसी  तरह  मनुष्य  भी  अपने  स्तर  की  दुनिया   अपने  हाथों  रचता  है  , वही अपने  हाथों  गिरने  के  लिए  खाई  खोदता  है  l  वह  चाहे  तो  उठने  के  लिए    समतल  सीढ़ियों  वाली  मीनार  भी  चुन  सकता  है  l " 

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