पं , श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----" अंदर से अच्छा बनना ही वास्तव में कुछ बनना है l मनुष्य जीवन की बाह्य बनावट उसे कब तक साथ देगी ? जो कपड़े अथवा प्रसाधन यौवन में सुन्दर लगते हैं , यौवन ढलने पर वे ही उपहास्यपद दीखने लगते हैं l मनुष्य के जीवन का श्रंगार ऐसे उपादानों से करना चाहिए ताकि आदि से अंत तक सुन्दर और आकर्षक बने रहें l मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है --- आंतरिक विकास l ह्रदय की पवित्रता एक ऐसा प्रसाधन है , जो मनुष्य को बाहर -भीतर से एक ऐसी सुन्दरता से ओत -प्रोत कर देता है , जिसका आकर्षण न केवल जीवन पर्यन्त अपितु जन्म -जन्मान्तरों तक सदा एक सा बना रहता है l "
30 August 2025
29 August 2025
WISDOM -----
संसार में जितने भी लोकसेवा के कार्य होते हैं , उनकी सार्थकता वह कार्य करने वाले की भावनाओं में निहित है l लोक कल्याण के पीछे निहित भावना व्यक्ति के अंतर्मन में होती है लेकिन वह परिवार और समाज को बड़ी गहराई से प्रभावित करती है l कलियुग में समाज सेवा , दया , करुणा का रूप कैसा है ? ---एक कथा है ----- एक सेठ धार्मिक प्रवृत्ति का और समाज सेवी था , उसने शिक्षा के साथ संस्कार देने के लिए एक स्कूल खोला l उसमें बच्चों को शिक्षा के साथ नियमित सद्गुणों की शिक्षा भी दी जाती थी , बच्चों को सिखाया जाता था कि सत्य बोलो , नियमित दया का कोई कार्य अवश्य करो -------, सेठ जी कभी -कभी स्कूल का निरीक्षण और बच्चों से वार्तालाप भी करते थे l इस क्रम में एक दिन उन्होंने बच्चों से पूछा कि इस महीने कुछ दया के काम किए हों तो हाथ उठायें l तीन लड़कों ने हाथ उठाए l सेठ जी बड़े प्रसन्न हुए , उन्होंने पूछा --अच्छा बताओ तुमने क्या -क्या दयालुता के कार्य किए ? पहले लड़के ने कहा --- " एक जर्जर बुढ़िया को मैंने हाथ पकड़ के सड़क पार कराई l " सेठ ने उसकी प्रशंसा की l दूसरे लड़के से पूछा , तो उसने भी कहा ---- " एक बुढ़िया को सड़क पार कराई l " उसको भी शाबाशी दी l अब तीसरे से पूछा तो उसने भी बुढ़िया को सड़क पार कराने की बात कही l अब तो सेठ को और साथ में जो शिक्षक थे उन्हें बड़ा आश्चर्य और संदेह हुआ l उन्होंने पूछा -बच्चों कहीं तुमने एक ही बुढ़िया का हाथ पकड़कर सड़क पार कराई थी l बच्चे मन के सच्चे होते हैं l उन्होंने कहा--- हाँ , ऐसा ही है l सेठ ने फिर पूछा --- एक ही बुढ़िया को सड़क पार कराने तुम तीन को क्यों जाना पड़ा l उन लड़कों ने कहा ---" हमने उस बुढ़िया से कहा , हमें दया -धर्म का पालन करना है चलो हम हाथ पकड़कर तुम्हे सड़क पार कराएँगे l बुढ़िया इसके लिए राजी नहीं हुई , उसने कहा मुझे तो पटरी के इसी किनारे पर जाना है , सड़क पार करने की आवश्यकता नहीं है l l इस पर हम तीनो ने उस जर्जर बुढ़िया को कसकर पकड़ लिया और उसका हाथ पकड़कर घसीटते ले गए और सड़क पार करा के ही माने l " सेठ ने अपना सिर पकड़ लिया , वो क्या कहता बच्चों को ! लोकसेवा की सच्चाई तो उसे बहुत अच्छे से मालूम थी l
27 August 2025
WISDOM -----
लघु -कथा ----1 - एक राजा नास्तिक था l अहंकारी था , ईश्वर को नहीं मानता था l एक साधु की प्रशंसा सुनकर वह उससे मिलने गया l साधु ने उसकी ओर ध्यान नहीं दिया और अपने कुत्ते पर हाथ फेरता रहा l राजा ने क्रोध में आकर कहा -- " तू बड़ा या तेरा कुत्ता ? " साधू ने उत्तर दिया ---- " यह हम और तुम दोनों से बड़ा है , जो अपने एक टुकड़ा देने वाले मालिक के दरवाजे पर पड़ा रहता है और एक तुम और हम हैं जो भगवान द्वारा सभी प्रकार का आनंद मिलने पर भी उसका नाम तक नहीं लेते l "
2 . राहगीर ने एक पत्थर मारा , आम के वृक्ष से कई पके आम गिरे l राहगीर ने उठाए और खाता हुआ वहां से चल दिया l यह द्रश्य देख रहे आसमान ने पूछा ---- " वृक्ष ! मनुष्य प्रतिदिन आते हैं और तुम्हे पत्थर मारते हैं , फिर भी तुम इन्हें फल क्यों देते हो ? " वृक्ष हँसा और बोला ---- " भाई ! मनुष्य अपने लक्ष्य से भ्रष्ट हो जाए , तो क्या हमें भी वैसा ही पागलपन करना चाहिए l "
26 August 2025
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " प्रत्येक मनुष्य , यहाँ तक कि प्रत्येक जीवधारी अपनी प्रकृति के अनुसार आचरण करता है l जैसे सर्प की प्रकृति क्रोध है l इस क्रोध के कारण ही वह फुफकारते हुए डसता है और अपने अन्दर का जहर उड़ेल देता है l कोई उसे कितना ही दूध पिलाए , उसकी प्रकृति को परिवर्तित नहीं किया जा सकता l इसी तरह नागफनी और बबूल को काँटों से विहीन नहीं किया जा सकता है l जो भी इनसे उलझेगा उसे ये काँटे चुभेंगे ही l " इसी तरह यदि कोई व्यक्ति अहंकारी , षड्यंत्रकारी , छल , कपट , धोखा करने वाला , अपनों से ही विश्वासघात करने वाला , अपनों की ही पीठ में छुरा भोंकने वाला है तो उसे आप सुधार नहीं सकते l उसका परिवार , समाज यहाँ तक कि स्वयं ईश्वर भी उसे समझाने आएं , तब भी वह सुधर नहीं सकता l उसकी गलतियों के लिए ईश्वर उसे दंड भी देते हैं जैसे कोई नुकसान हुआ , कोई बीमारी हो गई लेकिन वह जैसे ही कुछ ठीक हुआ फिर से पापकर्म में उलझ जाता है l इसलिए ऐसे लोगों से कभी उलझना नहीं चाहिए l वे जो कर रहे हैं , उन्हें करने दो l उनका जन्म ही ऐसे कार्यों के लिए हुआ है l बुद्धिमानी इसी में है कि ऐसे लोगों से दूर रहे l समस्या सबसे बड़ी यह है कि आप उनसे दूरी बना लें लेकिन ऐसे जिद्दी और अहंकारी लोग आपका पीछा नहीं छोड़ते क्योंकि उनके पास दूसरों को सताने के अतिरिक्त और कोई विकल्प ही नहीं है l वे पत्थर फेंकते ही रहेंगे l जो विवेकवान हैं वे उन पत्थरों से सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ जाएंगे , अपनी जीवन यात्रा में निरंतर सकारात्मक ढंग से आगे बढ़ते जाएंगे l आचार्य श्री कहते हैं ---- " जो विवेकवान हैं , जिनका द्रष्टिकोण परिष्कृत है वे प्रत्येक घटनाक्रम का जीवन के लिए सार्थक उपयोग कर लेते हैं l उदाहरण के लिए अमृत की मधुरता तो उपयोगी है ही , परन्तु यदि विष को औषधि में परिवर्तित कर लिया जाए तो वह भी अमृत की भांति जीवनदाता हो जाता है l "
25 August 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " असीम सत्ता पर गहरी आस्था से हमें ऊर्जा मिलती है l यदि आस्था गहरी हो तो सफलता में उन्माद नहीं होता और असफलता में अवसाद नहीं होता l " जो भी व्यक्ति इस सत्य को जानते हैं कि इस संसार में एक पत्ता भी हिलता है तो वह ईश्वर की मरजी से ही है , ऐसे व्यक्ति सुख को ईश्वर की देन मानकर उस समय का सदुपयोग करते हैं , अहंकार नहीं करते और दुःख के समय को भी ईश्वर की इच्छा मानकर उसे तप बना लेते हैं l वे इस सत्य को जानते हैं कि विपत्ति का प्रत्येक धक्का उन्हें अधिक साहसी , बुद्धिमान और अनुभवी बना देगा l सुख -दुःख , मान -अपमान और हानि -लाभ में अपने मानसिक संतुलन को बिगड़ने नहीं देते l महाभारत में पांडव भगवान श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित थे l अनेक वर्ष उन्हें जंगलों में गुजारने पड़े , निरंतर दुर्योधन के षड्यंत्रों और कौरवों से मिले अपमान को सहना पड़ा l लेकिन वे कभी विचलित नहीं हुए और कठोर तपस्या कर के दैवी अस्त्र -शस्त्र प्राप्त किए और अंत में विजयी हुए l
23 August 2025
WISDOM ------
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- " गरीब व गरीबी परिस्थितियों वश होती है , लेकिन दरिद्रता मन:स्थिति है l दरिद्रता इच्छाओं की कोख से पैदा होती है l जिसकी इच्छाएं जितनी अधिक हैं , उसे उतना ही अधिक दरिद्र होना पड़ेगा , उसे उतना ही याचना और दासता के चक्रव्यूह में फँसना पड़ेगा l " आचार्य श्री कहते हैं ये इच्छाएं ही दुःख का कारण हैं l जो जितना अपनी इच्छाओं को छोड़ पता है , वह उतना ही सुखी , स्वतंत्र और समृद्ध होता है l जिसकी चाहत कुछ भी नहीं है , उसकी निश्चिंतता और स्वतंत्रता अनंत हो जाती है l " ददरिद्र वह नहीं जिसके पास धन का अभाव है , दरिद्र वह है जिसके पास सब कुछ है , फिर भी वह दूसरों को लूटने , उनका हक छीनने , उनका हर तरह से शोषण करने के लिए तत्पर रहता है l एक सूफी कथा है -----फकीर बालशेम ने एक बार अपने एक शिष्य को कुछ धन देते हुए कहा ---- " इसे किसी दरिद्र व्यक्ति को दान कर देना l ' शिष्य को गुरु के साथ सत्संग से यह ज्ञात था कि दरिद्रता मन:स्थितिजन्य है , उसने दरिद्र व्यक्ति की तलाश करनी शुरू कर दी l इस तलाश में जब वह एक राजमहल के पास से होकर गुजरा , तो वहां लोग चर्चा कर रहे थे कि राजा ने अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रजा पर कितने अधिक कर लगायें हैं और कितनों को लूटा है , अब और अधिक धन के लिए दूसरे देश पर आक्रमण करने को तैयार है l शिष्य की तलाश पूरी हुई , उसने राजदरबार में उपस्थित होकर सारा धन राजा को सौंप दिया l एक फ़क़ीर द्वारा इस तरह धन दिए जाने से राजा हैरान हो गया और उसने इसका कारण पूछा तो उस शिष्य ने कहा ----' राजन ! इस धरती पर सबसे दरिद्र आप ही हो जो इतना वैभव होते हुए भी प्रजा को लूट रहे हो , दूसरे देश पर आक्रमण कर रहे हो l मेरे गुरु का आदेश था कि ऐसे ही किसी दरिद्र को यह धन सौंप देना l " राजा को सत्य समझ में आ गया , कितना भी वैभव आ जाए लेकिन इच्छाओं और चाहतों से छुटकारा पाना कठिन है l
21 August 2025
WISDOM -----
मनुष्य और पशु -पक्षियों में एक बड़ा अंतर यह है कि मनुष्य के पास बुद्धि है , चेतना के उच्च स्तर तक पहुँचने की पूर्ण संभावनाएं उसके पास हैं l यह दौलत जानवरों के पास नहीं है l लेकिन दुःख की बात यह है कि कि मनुष्य बुद्धि का सदुपयोग नहीं करता , चेतना के स्तर को ऊँचा उठाने का कोई प्रयास नहीं करता l बुद्धि का दुरूपयोग इस सीमा तक करता है कि वह दुर्बुद्धि और एक मानसिक विकृति हो जाती है l ----- एक कथा है ---- एक बिल्ली ने अंगूर की बेल पर बहुत से अंगूर देखे l उसका मन ललचा गया l उसने सोचा कि मैं इसे खाकर ही रहूंगी l बहुत उछल -कूद मचाई लेकिन एक भी अंगूर उसे न मिल सका l यह कहते हुए वह चली गई कि ' अंगूर खट्टे हैं l ' उसने उन्हें पाने के लिए कोई साजिश नहीं रची , कोई षड्यंत्र नहीं रचा क्योंकि उसके पास यह सब करने के लिए बुद्धि नहीं है l मनुष्य के पास बुद्धि है , शक्ति और सामर्थ्य है लेकिन नैतिकता की कमी है तो वह इन सबका दुरूपयोग करता है l किसी का धन हड़पना , परिवारों में फूट डालकर उनका सुख छीनना , अपने किसी स्वार्थ के लिए पति -पत्नी को अलग करा देना , लोगों का हक छीनना , यहाँ तक कि तंत्र आदि नकारात्मक क्रियाओं से किसी के जीवन को कष्टमय बनाना ---ये सब बुद्धि के दुरूपयोग और मानसिक विकृति के लक्षण हैं l समाज में विशेष रूप से महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध ऐसी ही मानसिक विकृति के उदाहरण हैं l ऐसे लोग समाज में घुल-मिलकर रहते हैं , उन पर कोई शक नहीं कर सकता l भूल- चूक से फंस भी गए तो धन के बल पर कानून के दंड से बच जाते हैं l यदि कोई वास्तव में पागल हो तो उसे ईश्वर अलग से और क्या दंड देंगे ? लेकिन जो लोग अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर , योजनाबद्ध तरीके से अपने अहंकार की पूर्ति के लिए साजिश करते हैं उन्हें ईश्वर कभी क्षमा नहीं करते l वे चाहे समुद्र में छिप जाएँ या किसी पहाड़ पर , किसी अन्य देश में चले जाएँ , उनके कर्म उन्हें ढूँढ लेते हैं l ऐसी विकृति का इलाज केवल ईश्वरीय दंड है l यह दंड कब और कैसे मिलेगा यह काल निश्चित करता है l यदि हम एक सुन्दर और स्वस्थ मानव -समाज का निर्माण करना चाहते हैं तो बाल्यावस्था से ही नैतिक शिक्षा और मानवीय मूल्यों का ज्ञान अनिवार्य होना चाहिए l बचपन से ही बच्चों को निष्काम कर्म और ध्यान के प्रति जागरूक किया जाए तभी हम एक स्वस्थ समाज की उम्मीद कर सकते हैं l
19 August 2025
WISDOM -----
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आचार्य ज्योतिपाद संध्या के बाद उठे ही थे कि एक ब्राह्मण , जिसका नाम आत्मदेव था , उसने उनके चरण पकड़ लिए l वह बोला --- " आप सर्वसमर्थ हैं , एक संतान दे दीजिए l आपका जीवन भर ऋणी रहूँगा l " आचार्य बोले ---" संतान से सुख पाने की कामना व्यर्थ है l तुम्हारे भाग्य में संतान नहीं है l जिसने पूर्व जन्म में अपनी संपत्ति को लोकहित में नहीं लगाया , वह अगले जन्म में संतानहीन होता है l संतान दैवयोग से मिल भी गई तो उसका कोई औचित्य नहीं है l " लेकिन आत्मदेव ने उनके चरण नहीं छोड़े और बोला ---- " या तो पुत्र लेकर लौटूंगा या आत्मदाह कर लूँगा l " आचार्य ने कहा --- " श्रेष्ठ आत्माएं ऐसे ही नहीं आतीं l यदि विधाता की ऐसी ही इच्छा है तो यह फल तुम अपनी पत्नी को खिलाना और धर्मपत्नी से कहना कि वह एक वर्ष तक नितांत पवित्र रहकर दान -पुण्य करे l " आत्मदेव प्रसन्न भाव से लौटा और फल अपनी पत्नी धुंधली को दे दिया और जैसा आचार्य ने कहा था उसे पवित्र आचरण करने को कहा l पत्नी धुंधली ने सोचा --पवित्रता का आचरण और दान , और वह भी वर्षभर , मैं न कर सकुंगी l उसने वह फल गाय को खिला दिया l समय पर बहन का पुत्र गोद ले लिया , घोषणा कर दी कि पुत्र हुआ , उसका नाम धुंधकारी रखा l बाल्यावस्था से ही वह दुराचारी , जुआ खेलने वाला , भोगी , दुराचारी निकला l माता -पिता कुढ़कर , दुःख में मर गए , वह भी अकालमृत्यु को प्राप्त हुआ l जीवन में किए गए पापों के कारण वह प्रेत योनि को प्राप्त हुआ l धुंधली ने जिस गाय को वह फल खिलाया था उस गोमाता ने गोकर्ण नामक पुत्र को जन्म दिया l वह परम विद्वान और धर्मात्मा था , उसने प्रेत योनि में पड़े धुंधकारी को भागवत कथा सुनाकर मुक्त कराया l
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17 August 2025
WISDOM ------
अपनी शक्ति के बल पर किसी भूभाग को जीतना , लोगों को अपना गुलाम बनाना बहुत सरल है लेकिन अपने ही मन को काबू में रखना , उसकी लगाम अपने हाथ में रखना सबसे कठिन कार्य है l कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो यदि उसका अपनी कामना , वासना , तृष्णा , महत्वाकांक्षा, अहंकार जैसे विकारों पर नियंत्रण नहीं है तो वह इन विकारों के वशीभूत होकर किसी न किसी की गुलामी अवश्य करेगा l जैसे रावण कितना शक्तिशाली और ज्ञानी था लेकिन उसका अपने मन पर नियंत्रण नहीं था l सीताजी को पाने के लिए अपनी लंका छोड़कर , भिखारी बनकर , सबसे छुपते -छिपाते कटोरा लेकर पर्णकुटीर आ गया l अपनी धूर्तता के बल पर वह उन्हें लंका ले भी गया , बहुत प्रलोभन दिए --तुम मेरी पटरानी बनो , मंदोदरी तुम्हारी सेवा करेगी l सीताजी के आगे वह कितना झुका ! सीताजी ने उसे देखा तक नहीं l लंकापति रावण उनकी एक नजर के लिए भी तरस गया l ऐसी शक्ति किस काम की ! हमारे ऋषियों का आचार्य का कहना है कि मन को जबरन और डंडे के बल पर नियंत्रण में नहीं रखा जा सकता l जबरन नियंत्रित किए गए मन में विस्फोट की संभावना बनी रहती है l स्वयं के अनुभव से अर्थात अब तक जो अनुपयुक्त किया उसके दुष्परिणामों को समझकर और दूसरों की दुर्गति से शिक्षा लेकर भी अपने मन को साधा जा सकता है l भगवान श्रीकृष्ण ने मन की चंचलता पर नियंत्रण रखने का सबसे सरल उपाय बताया , उन्होंने कहा कि निष्काम कर्म से , नि: स्वार्थ सेवा से मन पर जमी मैल की परतें हटती जाती हैं और मन निर्मल हो जाता है l हमारे मन पर जन्म -जन्मान्तर का मैल चढ़ा हुआ है , इसकी धुलाई -सफाई इतनी सरल नहीं है l जब भी कोई इस दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करता है तो मन की गहराई में छुपी हुई गंदगी , नकारात्मकता उछलकर और बाहर आती है , मन को विचलित करने का हर संभव प्रयास होता है , इसे ईश्वर द्वारा ली जाने वाली परीक्षाएं भी कह सकते हैं l ईश्वर के प्रति समर्पण और उनके शब्दों पर श्रद्धा और विश्वास से ही इस बेलगाम मन को नियंत्रित किया जा सकता है l
9 August 2025
WISDOM -----
मानव जीवन में आज जितनी भी समस्याएं हैं , वे कोई नई समस्या नहीं है , ये सब युगों से चली आ रहीं हैं l मानसिक विकृतियां जन्म -जन्मान्तर के संस्कार हैं जो पीछा नहीं छोड़ते l समाज में , परिवार में जो भी अपराध होते हैं , यदि निष्पक्ष भाव से सर्वे किया जाए तो यह सत्य सामने आएगा कि उनकी पूर्व की 6 -7 पीढ़ियों में भी लोग इसी तरह के अपराधों में संलग्न रहे हैं l बुरी आदतें संस्कार बनकर पीढ़ी -दर -पीढ़ी आ जाती हैं l जब तक मनुष्य संकल्प लेकर स्वयं को सुधारने का प्रयत्न न करे सुधार संभव नहीं है ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , स्वार्थ , लालच , महत्वाकांक्षा जैसे विकारों के कारण ही अशांति है l सबसे बड़ी समस्या यह है कि आज मनुष्य किसी को खुश नहीं देख सकता l त्रेतायुग में भी यही था , मंथरा को ईर्ष्या थी वह श्रीराम को राजगद्दी पर और सीताजी को महारानी के रूप में नहीं देख सकती थी इसलिए उसने कैकयी के कान भरे कि राम के लिए राजा दशरथ से वनवास मांगो और भारत के लिए राजगद्दी l अपनी बातों से किसी के माइंड को वाश कर देना यह तकनीक युगों से चली आ रही है l महाभारत में शकुनि ने भी इसी तरह दुर्योधन के मन में पांडवों के लिए ईर्ष्या , द्वेष भर दिया था l इसी तकनीक का प्रयोग कर के ईर्ष्यालु लोग किसी का घर तोड़ते हैं , पति -पत्नी में झगड़े और परिवारों में क्लेश कराते हैं l हर किसी का मन इतना मजबूत नहीं होता , अधिकांश लोग कान के कच्चे होते हैं और बड़ी जल्दी दूसरों की बातों में आकर अपना ही नुकसान करा लेते हैं l जब तक मनुष्य को ईश्वर का और अपने कर्मों के परिणाम का भय नहीं होगा स्थिति में सुधार संभव नहीं है , मनुष्य इतिहास से शिक्षा नहीं लेता , गलतियों को बार -बार दोहराता है l
8 August 2025
WISDOM -----
पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने ' प्रेरणाप्रद द्रष्टान्त ' में छोटी -छोटी कथाओं और प्रसंगों के माध्यम से हम सभी को जीवन जीने की कला सिखाई है l उनके विचार हमें पलायन करना नहीं सिखाते l उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से यही सिखाया कि कैसे संसार में रहते हुए , गृहस्थ जीवन जीते हुए एक योगी की भांति जीवन जिया जा सकता है l यदि मनुष्य का मन संसार में है , ऐसे में उसका एकांत में रहना , हिमालय पर जाना व्यर्थ है l मन पर नियंत्रण जरुरी है और वह भी स्वेच्छा से , जबरन नहीं l ----------- सम्राट पुष्यमित्र का अश्वमेध यज्ञ संपन्न हुआ l दूसरी रात अतिथियों की विदाई के उपलक्ष्य में नृत्य -उत्सव रखा गया l महर्षि पतंजलि भी उस उत्सव में सम्मिलित हुए l महर्षि के शिष्य चैत्र को उस आयोजन में महर्षि की उपस्थिति अखर रही थी l उसके मन में लगातार यह विचार आ रहे थे कि महर्षि तो संयम , यम नियम ----- योग की शिक्षा देते हैं और स्वयं नृत्य -संगीत देख रहे हैं l उस समय तो चैत्र ने कुछ नहीं कहा , पर एक दिन जब महर्षि ' योग दर्शन ' पढ़ा रहे थे तब चैत्र ने उनसे कहा ---- " गुरुवर ! क्या नृत्य -गीत के रास -रंग चितवृत्तियों के निरोध में सहायक होते हैं ? " महर्षि ने शिष्य का अभिप्राय समझा और कहा --- " सौम्य ! आत्मा का स्वरुप रसमय है l उसमें उसे आनंद मिलता है और तृप्ति भी l वह रस विकृत न होने पाए और अपने शुद्ध स्वरूप में बना रहे , इसी सावधानी का नाम संयम है l विकार की आशंका से रस का परित्याग कर देना उचित नहीं l क्या कोई किसान पशुओं द्वारा खेत चर लिए जाने के भय से कृषि करना छोड़ देता है ? रस को नहीं उसकी विकृति को हेय माना जाता है l "
5 August 2025
WISDOM -----
भगवान बुद्ध अपने ज्ञान का प्रकाश संसार को दे रहे थे l एक सेठ भी उनका प्रवचन नियमित सुनता था l उसने तथागत से कहा --- भगवन ! मैं नियमित प्रवचन सुनता हूँ लेकिन मेरे मन में शांति नहीं है l ईश्वर की कृपा कैसे मिले ? महात्मा बुद्ध ने उस समय तो कुछ नहीं कहा l दूसरे दिन वे उस सेठ के घर पहुंचे , उनके आने की सूचना मिलने पर उसने बड़े प्रेम से उनके लिए खीर बनवाई और उनके कमंडल में देने लगा l उसने आश्चर्य से देखा कि कमंडल में तो गोबर भरा हुआ है l उसने कमंडल उठाया , उसे अच्छी तरह साफ़ किया , फिर उसमें खीर रखी l खीर रखने के बाद वह तथागत से बोला ---- " भगवन ! कहीं भिक्षा हेतु पधारा करें तो अपना कमंडल साफ़ करके ही लाया करें l गंदे पात्र में खीर रखने से आहार की पवित्रता नष्ट हो जाएगी l " भगवान बुद्ध शांत भाव से बोले --- " वत्स ! भविष्य में कभी आऊंगा तो कमंडल साफ कर के ही लाऊंगा l तुम भी अपना कमंडल साफ रखा करो l " सेठ ने आश्चर्य से कहा --- " कौन सा कमंडल ? " तथागत बोले ---- " यह तन रूपी कमंडल ! मन में मलिनता भरी रहने से जीवन भी कलुषित हो जाता है l मन को शांति नहीं मिलती और भगवान की कृपा भी उसमें ठीक से कार्य नहीं करती l " सेठ को बात समझ में आ गई और अब वह भी अपने दोष -दुर्गुणों को मिटाने में जुट गया l
4 August 2025
WISDOM -----
संसार के लगभग सभी देशों में धर्म , जाति , रंग , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब आदि के आधार पर भेदभाव प्राचीन काल से ही रहा है और इस वैज्ञानिक युग में भी इस प्रकार के भेदभाव समाप्त नहीं हुए l ऐसी बेवजह की बातों पर विवाद , युद्ध , दंगे आदि कर के मनुष्य ने बहुत कुछ खोया है l भौतिक प्रगति तो हो गई लेकिन चेतना के स्तर पर आज मनुष्य कहाँ पर है इसे संसार में होने वाले युद्ध , हत्याकांड , आत्महत्या , और धन कमाने की अंधी दौड़ को देखकर समझा जा सकता है l यदि मनुष्य की चेतना विकसित हो , उसमें अहंकार न हो तो वह जीवन में घटने वाली अनेक घटनाओं के पीछे की वजह समझ जाता है और उनसे लाभान्वित होता है l ---------- महाभारत में जब चौसर के खेल में पराजित होने पर पांडवों को वनवास हुआ l उस समय दिव्य अस्त्रों को प्राप्त करने के लिए अर्जुन ने महादेव को प्रसन्न करने के लिए तप किया l ईश्वर से कुछ प्राप्त करना हो तो बड़ी परीक्षाएं देनी पड़ती हैं l अर्जुन जिस वन में तप कर रहा था वहीँ महादेव जी व्याध के रूप में शिकार करने उसी वन में पहुंचे l वे एक जंगली सुअर का पीछा कर रहे थे l सामने अर्जुन को देख सुअर उस पर झपटा l अर्जुन चौंक गया और तुरंत अपने गांडीव से बाण चला दिया l उसी समप व्याध रूप धारी महादेव ने भी सूअर पर तीर चला दिया l दोनों के तीर एक साथ लगे l अपने शिकार पर एक शिकारी को हमला करते देख अर्जुन को क्रोध आया उसने शिकारी से कहा --- ' तुमने मेरे शिकार पर अपना तीर चलाने की हिम्मत कैसे की ? ' दोनों में बहुत विवाद हुआ कि किसका तीर पहले लगा ? विवाद इतना बड़ा कि यह निश्चय हुआ कि आपस में लड़कर निश्चय हो कि किसके तीर से शिकार मरा है l अर्जुन ने व्याध पर बाणों की वर्षा की l जितने भी उसके पास बाण थे , सब चला दिए लेकिन व्याध पर कोई असर नहीं , वह हँसता रहा और उसने हँसते हुए अर्जुन के हाथ से उसका धनुष छीन लिया l अर्जुन ने तलवार से मारा तो तलवार टूट गई , अब अर्जुन ने घूंसे मारना शुरू किया लेकिन व्याध पर कोई असर नहीं , वह मुस्कराता रहा l अर्जुन का दर्प चूर -चूर हो गया , अपना घमंड छोड़कर उसने देवाधिदेव महादेव का ध्यान किया , ईश्वर की शरण ली तो उसके मन में ज्ञान का प्रकाश फ़ैल गया , वह समझ गया कि ये व्याध नहीं साक्षात् महादेव हैं , अर्जुन उनके चरणों में गिर गया , उनसे क्षमा मांगी l महादेव ने प्रसन्न होकर अर्जुन को पाशुपत अस्त्र और अनेक दिव्य अस्त्र तथा अनेक वरदान दिए l यहाँ अर्जुन ने अपने अहंकार को छोड़ा और ईश्वर के प्रति शरणागत हुआ तब उसे ईश्वर की कृपा मिली l ------------- एक दूसरी कथा है ------ उत्तंक मुनि मरुभूमि के आसपास घूमने वाले तपस्वी थे l जब जब भगवान श्रीकृष्ण पांडवों से विदा लेकर द्वारका लौट रहे थे तब मार्ग में उनकी भेंट उत्तंक मुनि से हुई l उनसे प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण ने उनसे कहा --- 'मुनिवर ! मैं आपको कुछ वरदान देना चाहता हूँ , जो चाहें मांग लो l ' उत्तंक मुनि ने कहा --- " भगवन आपके दर्शन हो गए , अब किसी वरदान की चाह नहीं है l ' भगवान ने उनसे आग्रह किया कि कोई वरदान मांग लो ! ' उत्तंक मुनि मरुभूमि में घूमते थे इसलिए उन्होंने कहा ---" प्रभो ! आप इतना वरदान दें कि मुझे जब भी और जहाँ कहीं भी जल की आवश्यकता हो , मुझे वहीँ जल मिल जाए l ' भगवान वरदान देकर द्वारका चले गए l बहुत दिन बाद उत्तंक मुनि वन में फिर रहे थे , उन्हें बड़ी प्यास लगी , उन्होंने श्रीकृष्ण का ध्यान किया , तुरंत ही उन्हें सामने एक चाण्डाल खड़ा दिखाई दिया , उसने फटे -पुराने चीथड़े पहन रखे थे , साथ में चार -पांच जंगली कुत्ते थे और कंधे पर मशक में पानी था l चांडाल बोला --- " मालूम होता है आप प्यास से परेशान हैं l यह लीजिए पानी l ' चांडाल की गन्दी सूरत , उसकी चमड़े की मशक और कुत्तों को देखकर उन्होंने नाक -भौं सिकोड़ ली और उसका पानी लेने से इनकार कर दिया उत्तंक मुनि को बहुत क्रोध आया कि श्रीकृष्ण ने मुझे झूठा वरदान कैसे दिया , मैं ब्राह्मण , उस चांडाल के हाथ का , मशक का गन्दा पानी कैसे पी सकता हूँ ? ' उसी समय चांडाल अचानक कुत्तों समेत आँखों से ओझल हो गया l अब उत्तंक मुनि समझे कि यह तो उनकी परीक्षा थी , उनसे भारी भूल हो गई , मेरे ज्ञान ने समय पर मेरा साथ नहीं दिया l थोड़ी देर में भगवान श्रीकृष्ण शंख , चक्र लिए उनके सामने प्रकट हुए l श्रीकृष्ण ने कहा --- " मुनिवर ! आपने पानी की इच्छा की थी तो मैंने देवराज से आग्रह किया कि मुनि को अमृत ले जाकर पिलाओ l तब देवराज ने कहा कि मैं चांडाल के रूप में जाऊँगा , यदि मुनि ने इनकार कर दिया तो नहीं पिलाऊंगा l ' कृष्णजी ने कहा मैंने सोचा था कि आप ज्ञानी और महात्मा हैं , आपके लिए तो चांडाल और ब्राह्मण समान होंगे और चांडाल के हाथ का पानी पीने में आप संकोच नहीं करेंगे लेकिन स्वयं को श्रेष्ठ समझने के कारण आप अमृत से वंचित रह गए l " उत्तंक मुनि अपनी गलती पर बहुत लज्जित हुए लेकिन अब क्या हो सकता है ? देवराज अमृत लेकर वापस जा चुके थे l
2 August 2025
WISDOM ------
वृक्ष ने पथिक से कहा --- " तुम जितनी बार पत्थर मारोगे , उतनी ही बार मैं उपहार में फल दूंगा l यह तो मेरा व्रत है l पत्थर का उत्तर पत्थर से देना मुझे नहीं आता , भले ही मुझे कितना ही कष्ट क्यों न हो l " पथिक ने कुढ़कर कहा --- " तुम यों फलो -फूलो और मैं भूखा फिरु, क्या यह तुम्हारा और तुम्हारे भगवान का अन्याय नहीं l " वृक्ष ने हँसकर कहा --- " ईर्ष्या क्यों करते हो पथिक ! मेरे पतझड़ के कष्टों को देखते तो पता चलता कि यह फल मैंने कितनी तपस्या कर प्राप्त किए हैं ? तू भी वैसा ही पुरुषार्थ कर देखो l " सत्य है किसी को सफल होते देख उससे ईर्ष्या करने वालों की कमी नहीं है l लोग सफल व्यक्ति को देखकर जलते भी हैं और उसे नीचे गिराने का हर संभव प्रयत्न भी करते हैं l सफलता प्राप्त करने के लिए उसने जो त्याग और तपस्या की , कठिन संघर्ष किया , उससे प्रेरणा लेकर वे स्वयं सफल होने के लिए कोई प्रयत्न नहीं करते l अब लोग शार्ट कट से सफल होना चाहते हैं लेकिन गलत तरीके से प्राप्त सफलता में कोई सुकून व आनंद नहीं होता , हमेशा गिरने का भय सताता रहता है l