19 March 2013

इतिहास साक्षी है कि सफलता उन्ही को मिलती है जिन्होंने निजी जीवन में कठोरता अपनायी ,स्वयं पर कड़ा अंकुश लगाकर आत्मानुशासन का अभ्यास किया एवं अपनी बची हुई ऊर्जा को सुनियोजित किया | यदि अनुकरणीय और प्रखर प्रतिभा का धनी बनना है तो एक ही राजमार्ग है -तपश्चर्या से स्वयं को अनुशासित करना ,व्यवहार में सज्जनता शालीनता ,श्रमशीलता ,मितव्ययता ,स्वच्छता ,उदारता आदि श्रेष्ठ गुणों को अपनाते हुए जीनियस बनना ,व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाना | चीनी यात्री हुवेन्सांग ने भारत के आरण्यक ,आश्रम और मठों में प्रतिभाओं को गढ़ने के लिये अपनायी जाने वाली कठिन तपश्चर्या प्रणाली की बहुत प्रशंसा की है | मिस्र निवासी सेंट एंथनी ने जिन्हें 'डेज़र्ट फादर 'कहा जाता है ,उन्होंने तीसरी शताब्दी के आरंभिक दिनों में लाल समुद्र के पास प्रतिभाएं निखारने के लिये एक कठोर तपश्चर्यारत जीवन को आधार बनाया | मठ में निवास करने वालों के लिये इटली के संत 'बेनिडिक्ट ऑफ नरसिया 'ने सादगी ,ब्रह्मचर्य और कठोर अनुशासन का विधान किया था |
प्राचीन काल से ही भारतीय ऋषि -मनीषियों का यह निष्कर्ष था कि प्रतिभा -प्रखरता के लिये कठोर तपस्वी जैसा जीवन आवश्यक है अन्यथा तृष्णा और वासना की लिप्सा इतनी सघनता के साथ छायी रहेगी कि अपनी सामर्थ्य की तुलना में औसत पुरुषार्थ भी करते न बन सकेगा |

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