11 April 2013

अनीति का उपार्जन ऐसा है मानो कच्चे घड़े में पानी भरना | वह घड़ी आने में देर नहीं लगती जब घड़ा फूटता है और पानी बिखरता है |

               
                'पाप पहले आकर्षक लगता है फिर आसान हो जाता है ,इसके बाद आनंद का आभास देने लगता है तथा अनिवार्य प्रतीत होता है | क्रमश:वह हठी और ढीठ बन जाता है | अंतत:सर्वनाश करके हटता है |  

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