3 July 2013

DISEASE

'दरिद्रता ,रोग ,दुःख ,बंधन और विपतियाँ ये सब मनुष्य के अपने ही दुष्कर्म रूपी वृक्ष के फल हैं | '

एक बार अग्निवेश ने आचार्य चरक से पूछा -"संसार में जो अगणित रोग पाये जाते हैं ,उनका कारण क्या है ?"आचार्य ने उत्तर दिया -"व्यक्ति के पास जिस स्तर के पाप (दुष्कर्म )जमा हो जाते हैं ,उसी के अनुरूप शारीरिक एवं मानसिक व्याधियां उत्पन्न होती हैं ॥"
जिस तरह आहार -विहार के असंयम से शारीरिक रोग पनपते हैं ,उसी तरह विचारणा ,चिंतन -मनन एवं कर्म के लिये निर्धारित नीति -मर्यादा का उल्लंघन करने के कारण मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं |
शरीर और मन परस्पर गुँथे हुए हैं | शारीरिक रोग कालांतर में मानसिक और मानसिक रोग ,शारीरिक रोग बन जाते हैं |
               उच्च स्तरीय आस्थाओं की अवहेलना ,विलासी ,बनावटी और अहंकारी गतिविधियाँ अपनाने ,चिंतन में दुष्टता और आचरण में भ्रष्टता के कारण आंतरिक तनावों में वृद्धि होती है | यही कारण है कि आज अधिसंख्यक व्यक्ति किसी न किसी प्रकार के मानसिक रोग से ग्रस्त पाये जाते हैं | 

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