स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि सारी शिक्षा एवं समस्त प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य मनुष्य का निर्माण होना चाहिये, परंतु हम यह न करके केवल बहिरंग पर पानी चढ़ाने का सदा प्रयत्न किया करते हैं | जहाँ व्यक्तित्व का ही अभाव है, वहां सिर्फ बहिरंग पर पानी चढ़ाने का प्रयत्न करने से क्या लाभ ?
श्री अरविंद ने एक ऐसे नये संसार का स्वपन देखा था, जो आज नहीं है, पर भविष्य में उत्पन्न होने वाला है | भावी जगत का आधार अध्यात्म होगा और उसमे बहुत से कार्य आत्मिक शक्ति से कर लिये जायेंगे | मनुष्य एक ऐसे धरातल पर पहुँच जायेगा, जिसकी आज कल्पना भी नहीं की जा सकती |
' अध्यात्म ' चेतना जगत का उच्चस्तरीय विज्ञान है जो हमें अपूर्णता से पूर्णता की ओर ले जाता है | प्रभु की सच्ची साधना--आराधना है---अपने अंतर्जगत की सफाई | अपने अंदर की वृत्तियों का परिशोधन हो | हम ऐसे बने कि ईश्वर हमारे माध्यम से झरने लगे |
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