एक राजा अपने मंत्री के साथ शिकार पर निकला l आखेट के दौरान राजा की ऊँगली कट गई और रक्त बहने लगा l यह देख मंत्री ने राजा से कहा ----- " चिंता न करें राजन ! भगवान जो करता है अच्छे के लिए करता है l " राजा पीड़ा से व्याकुल थे , ऐसे में मंत्री का कथन सुन क्रोध से तमतमा उठे l आज्ञा दी कि मंत्री उसी समय उनका साथ छोड़कर अन्य राह पकड़ लें l मंत्री ने सर झुकाकर राजाज्ञा स्वीकार की और भिन्न दिशा में निकल पड़े l
राजा कुछ दूर चले ही थे कि नर भक्षियों के एक दल ने उन्हें पकड़ लिया और उनकी बलि देने की तैयारी होने लगी l तभी उनकी कटी उंगली देख नर भक्षियों का पुजारी बोला --- " अरे ! इसका तो अंग भंग है , इसकी बलि स्वीकार नहीं की जा सकती l " राजा को जीवनदान मिला तो उसे अपने ईश्वर भक्त मंत्री की याद आई l वे तुरंत मंत्री की तलाश में निकल पड़े l मंत्री नदी के किनारे भजन में तल्लीन थे l राजा ने मंत्री को गले लगाया और सारी घटना सुनाई और पूछा कि मेरी उंगली कटी तो इससे भगवान ने मेरी जान बचाई , पर मैंने तुम्हे इतना अपमानित किया तो उसमे तुम्हारा क्या भला हुआ ? " मंत्री बोले --- ' राजन ! यदि मैं भी आपके साथ होता तो अभी आपके स्थान पर मेरी बलि चढ़ चुकी होती , इसलिए भगवान जो भी करते हैं , मनुष्य के भले के लिए ही करते हैं l "
राजा कुछ दूर चले ही थे कि नर भक्षियों के एक दल ने उन्हें पकड़ लिया और उनकी बलि देने की तैयारी होने लगी l तभी उनकी कटी उंगली देख नर भक्षियों का पुजारी बोला --- " अरे ! इसका तो अंग भंग है , इसकी बलि स्वीकार नहीं की जा सकती l " राजा को जीवनदान मिला तो उसे अपने ईश्वर भक्त मंत्री की याद आई l वे तुरंत मंत्री की तलाश में निकल पड़े l मंत्री नदी के किनारे भजन में तल्लीन थे l राजा ने मंत्री को गले लगाया और सारी घटना सुनाई और पूछा कि मेरी उंगली कटी तो इससे भगवान ने मेरी जान बचाई , पर मैंने तुम्हे इतना अपमानित किया तो उसमे तुम्हारा क्या भला हुआ ? " मंत्री बोले --- ' राजन ! यदि मैं भी आपके साथ होता तो अभी आपके स्थान पर मेरी बलि चढ़ चुकी होती , इसलिए भगवान जो भी करते हैं , मनुष्य के भले के लिए ही करते हैं l "
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