7 January 2021

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' दंभ   और  अहंकार  से  किसी  का  भला  नहीं  हुआ  है  l   ये  तो  पतन  की  राह  दिखाते   हैं   l  इनसे  विकास  नहीं ,  विनाश  होता  है  l   अहंकार नकारात्मक  भाव  की  चरम  सीमा  है   l   ' मैं    ही   मैं    हूँ  '    में  इसकी  अभिव्यक्ति  होती  है   l   यह  अपने  अलावा   किसी  और  को  बरदाश्त   नहीं  कर  सकता   l  अहंकार  विवेक  का  प्रतीक   नहीं  है  ,  यह  मूढ़ता  का  पर्याय  है   l   वह  दूसरों  जैसा  श्रेष्ठ   बनना  नहीं  चाहता  ,  उससे  कई   गुना  श्रेष्ठ  दिखना  चाहता  है   l '

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