21 February 2013

सेवा और सज्जनता ईश्वर भक्ति का ही श्रेष्ठतम रुप है |
राजा भोज ने सभासदों से सवाल किया -"सज्जनता बड़ी है या ईश्वर भक्ति | "अनेको दिन विचार मंथन के बाद भी निर्णय नहीं हो सका | कई दिन बीतने पर एक दिन राजा भोज वन भ्रमण के लिये निकले | दुर्भाग्य से मार्ग में वन्य जातियों ने उनपर आक्रमण कर दिया | आक्रमण के कारण उनका शेष सहयोगियों से संबंध टूट गया | वे वन में भटक गये | जंगल में प्यास के कारण उनका दम घुटने लगा | लेकिन दूर -दूर तक कहीं पानी दिखाई नहीं दे रहा था किसी तरह वे साधु की पर्णकुटी तक पहुंचे | साधु ध्यानस्थ थे | पहुंचते ही महाराज बेहोश होकर गिर पड़े | गिरते -गिरते उन्होंने पानी के लिये पुकार लगाई | कुछ समय बाद जब राजा को होश आया तो उन्होंने देखा वही संत उनका मुंह धो रहे हैं ,पंखा झल रहे हैं और पानी पिला रहे हैं | आश्चर्य चकित होकर राजा ने पूछा -आपने मेरे लिये ध्यान क्यों भंग किया ?उपासना क्यों बंद की ?संत मधुर स्वर में बोले ,वत्स !परमात्मा की इच्छा है कि उनके संसार में कोई दुखी न हो | उनकी इच्छा पूर्ति का महत्व अधिक है | निस्वार्थ भाव से की गई सेवा से ईश्वर प्रसन्न होते हैं | सेवा और परोपकार ही सच्ची ईश्वर भक्ति है | राजा भोज को अपने सवाल का जवाब मिल गया |

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