15 March 2013

वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समर्थता भी कम पड़ती है |
बढ़त -बढ़त संपति सलिल मन सरोज बढ़ जाय | घटत -घटत फिर न घटे बस समूल कुम्हलाय | भाव यह है कि कमल का फूल पानी में डूबता नहीं है | पानी बढ़ने से कमलनाल बढ़ती जाती है ,पर पानी घटने से घटती नहीं है ,समूल कुम्हला जाती है | सम्पतिवानों की इच्छाएं असीम बढ़ती जाती हैं ,पर जैसे ही संपति गई ,इच्छाएं घटती नहीं आदत बनी रहती हैं |
महाराज ययाति ने सब सुख भोगे ,तृष्णा बढ़ती चली गई | देह जवाब दे गई ,मृत्यु आने को थी | औरों से पुण्य लेकर समय बढ़ा लिया ,वह काल भी समाप्त हो गया | काल आ गया | बोला -"जवानी किसी और से मांग लो | "ययाति ने अपने बेटों से भोगने के लिये जवानी मांगी सबसे छोटा बेटा पुरु बोला -"आप जवानी मुझसे ले लें | जिन इंद्रियों से आपकी तृष्णा शांत नहीं हुई ,हमारी क्या होगी -आप भोग लें | "तृष्णा कभी जीर्ण -कमजोर नहीं होती ,हम ही जीर्ण होते चले जाते हैं |

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