12 April 2013

'निष्ठुरता से बढ़कर कुरूपता और कहीं कोई नहीं | सुन्दरता चेहरे की बनावट एवं साज -सज्जा पर टिकी हुई नहीं है | वह तो अच्छे स्वभाव और सद्व्यवहार से उभरती है |

                   'यदि अंत:करण मलिन और अपवित्र बना रहे तो परमात्मा की उपासना भी फलवती न होगी | अत:ईश्वर की उपासना निष्पाप ह्रदय से करें | '
प्रभु कृपा की एक ही शर्त है -पवित्रता | यदि हम परमपिता परमेश्वर से भी निष्पाप -पवित्र -उदार बनकर दिल से नहीं मिलते तो उनकी अमृत वर्षा हम पर क्यों होगी ?

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