6 April 2013

SELF SATISFACTION

टालस्टाय केवल एक प्रसिद्ध साहित्यकार ही नहीं ,वरन एक उच्च कोटि के संत भी थे | एक बार वे एक सूखाग्रस्त इलाके से निकल रहे थे | भूखे ,पीड़ित व बेसहारों को देखकर उनके ह्रदय में करुणा उमड़ आई और उनके पास जो कुछ भी था ,वो उन्होंने जरुरतमंदों में बाँटना प्रारंभ कर दिया | किसी को उन्होंने पैसे दिये तो किसी को खाना और अंत में एक व्यक्ति को उन्होंने अपना कोट और स्वेटर भी उतार कर दे दिया | सब देने के पश्चात जब वे आगे बढ़े तो एक विकलांग व्यक्ति उनके पास आया | उसे देखकर टालस्टाय की आँखों में आँसू आ गये और वे बोले -"भाई !तुम्हे देने को अब मेरे पास कुछ भी नहीं है | "यह सुनकर विकलांग व्यक्ति ने उन्हें गले लगा लिया और बोला -"आप ऐसा न बोलें | आज आपने जो प्रेम दिया है ,वो बहुतों के पास देने को नहीं है | "टालस्टाय ने अपनी आत्म कथा में लिखा है कि उस दिन जो संतोष उन्हें मिला ,वैसा उन्हें कभी अनुभव नहीं हुआ | पीड़ित को सहारा देना ही पुण्य और श्रेष्ठ कर्म है |  

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