20 May 2013

NEETI KI SHIKSHA

राम -रावण का घोर युद्ध समाप्त हुआ | रावण मृत्यु शय्या पर पड़ा था | श्री राम ने उसका अंतिम समय जान लक्ष्मण से कहा -"जाओ !अपने समय का सर्वश्रेष्ठ पंडित मर रहा है | जाकर उससे कुछ शिक्षा लो | "
लक्ष्मण जी गये | तीन बार प्रार्थना की कि नीति की शिक्षा दो रावण !रावण ने कुछ भी नहीं कहा | देखता रहा | लक्ष्मण वापस आये तो श्री राम ने पूछा -"क्या सीखा ?"लक्ष्मण ने वस्तुस्थिति बता दी |
श्रीराम ने कहा -"तुम शत्रु के पास गये थे | अब शिष्य बनकर जाओ ,उसका पूजन करो ,शीश नवाओ ,प्रदक्षिणा करो और तब अपनी बात कहो | "अब लक्ष्मण के आचरण से संतुष्ट रावण ने उन्हें नीति की शिक्षा दी | काफी देर तक नीति उपदेश के बाद उसने कहा -"लक्ष्मण !मैं अपने जीवन में चार काम करना चाहता था --
1 लंका के आस -पास का सौ (1 0 0 )योजन समुद्र मीठा कर दूँ ,
2. सोने की लंका को सुगंधित कर दूँ ,
3. स्वर्ग के लिये सीढ़ियाँ बनवा दूँ ,
4. मृत्यु को वश में कर लूँ |
                                        मेरा बल -वैभव अपार था | चारों काम कर सकता था ,पर मैं इन्हें छोटा समझ कर टालता रहा | मैं आज मन के अरमान मन में रखकर जा रहा हूँ |
उपेक्षा ,टालना ,किसी भी काम को छोटा मान लेना ,जिसे आज कर सकते हैं ,उसे कल के लिये छोड़ना सबसे बड़ी भूल है | मैं जो करना चाहता था ,वह नहीं किया | मुझे अपनी इस भूल पर दुःख है | तुम यह गलती कभी मत करना | "इसी के साथ रावण के नेत्र बंद हो गये | लक्ष्मण ने उपदेश ग्रहण कर मृत शरीर को नमन किया और सीख के साथ वापस लौट आये | 

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