5 June 2013

HONESTY

'आत्म कल्याण के इच्छुक को सदैव अपने परिश्रम और ईमानदारी से कमाया हुआ अन्न ही ग्रहण करना चाहिये '|
             "एक ही रात में इतने ढेर सारे रुपयों की थैली !अरे !यह तो बता -"माँ ने कड़क कर बेटे से पूछा -"यह धन तू कहाँ से लाया ?"
         "  सेंध लगाकर | माँ तू ही तो कहती थी कि मनुष्य को सदैव परिश्रम की कमाई ही खानी चाहिये | |महाजन की सेंध काटने में मुझे कितना परिश्रम करना पड़ा ,तू इस बात को समझ भी नहीं सकती | "
           चपत लगाते हुए माँ ने कहा -"मूर्ख !मैंने इतना ही नहीं कहा कि मनुष्य को परिश्रम का खाना चाहिये ,वरन यह भी कहा था कि वह ईमानदारी से कमाया हुआ भी हो | उठा यह धन ,जिसका है ,उसे लौटा कर आ और अपने गाढ़े पसीने की कमाई का भरोसा कर | "
   माता की इस शिक्षा को शिरोधार्य करने वाला युवक अंतत: महासंत श्रमनक के नाम से विख्यात हुआ |  

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