अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध संगीतकार सिग्रफिड जोनसन जन्म से अन्धे थे l किसी ने उन्हें संगीत साधना की प्रेरणा दी l उन्होंने दिन - रात परिश्रम किया , उनकी गणना अमेरिका के प्रसिद्ध संगीतकारों में होने लगी l देश - विदेश में उन्हें कार्यक्रम मिलने लगे और अपनी कला के प्रदर्शन के लिए वे विभिन्न देशों की यात्राएँ संपन्न करने लगे l इन्ही यात्राओं के अंतर्गत वे एक बार भारत आये l उनकी कार जिस स्थान पर आकर रुकी वहां एक अँधा भिखारी बैठा भीख मांग रहा था , वह बड़े कारुणिक स्वर में गा रहा था और बीच - बीच में ' अंधे को रोटी दे ' की टेर भी लगा देता l उन्होंने अपने ड्राइवर से पूछा कि --- " क्या इस देश में सभी अंधे व्यक्ति भीख मांग कर आजीविका चलाते हैं ? " ड्राइवर ने कहा --- " जी हाँ , लगभग ऐसा ही है l "
उन्हें बहुत दुःख हुआ l वे विचार करने लगे कि अंधे , अपंग किसी की दया पर नहीं रहें , उनमे आत्मविश्वास पैदा हो l उनके ह्रदय में करुणा जाग गई , उन्होंने निश्चय किया कि वे भारत में एक ऐसा आश्रम स्थापित करेंगे जिसमे अंधे व्यक्ति रहकर सम्मान पूर्वक आजीविका कमा सकें l उन्होंने छह वर्ष तक भारत में विभिन्न स्थानों पर संगीत कार्यक्रम दिए l उनके टिकट से होने वाली आय को अंधाश्रम की व्यवस्था के लिए सुरक्षित रखा l वे दक्षिण भारत के ऐलम जिले के तिरुपत्तर गाँव में विशाल आश्रम की योजना को मूर्त रूप देने में लगे रहे l जिस समय वे अपने देश रवाना हुए तब उन्होंने लगभग दो लाख रुपया आश्रम को दिया l उनका यह प्रयास आज भी अंधों के सम्मानित जीविका उपार्जन के रूप में देखा जा सकता है l
उन्हें बहुत दुःख हुआ l वे विचार करने लगे कि अंधे , अपंग किसी की दया पर नहीं रहें , उनमे आत्मविश्वास पैदा हो l उनके ह्रदय में करुणा जाग गई , उन्होंने निश्चय किया कि वे भारत में एक ऐसा आश्रम स्थापित करेंगे जिसमे अंधे व्यक्ति रहकर सम्मान पूर्वक आजीविका कमा सकें l उन्होंने छह वर्ष तक भारत में विभिन्न स्थानों पर संगीत कार्यक्रम दिए l उनके टिकट से होने वाली आय को अंधाश्रम की व्यवस्था के लिए सुरक्षित रखा l वे दक्षिण भारत के ऐलम जिले के तिरुपत्तर गाँव में विशाल आश्रम की योजना को मूर्त रूप देने में लगे रहे l जिस समय वे अपने देश रवाना हुए तब उन्होंने लगभग दो लाख रुपया आश्रम को दिया l उनका यह प्रयास आज भी अंधों के सम्मानित जीविका उपार्जन के रूप में देखा जा सकता है l
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