11 June 2018

WISDOM ------ कर्तव्य ही धर्म है

  महाभारत  समाप्त  हुआ  l  पुत्रों  के  वियोग  में  दुःखी  धृतराष्ट्र   ने  महात्मा  विदुर  को  बुलाया  l  चर्चा  के  बीच  उनसे  पूछा --- " विदुर जी  ! हमारे  पक्ष  का  एक - एक  योद्धा  इतना  सक्षम  था  कि  सेनापति  बनने  पर  उसने  पांडवों  के  छक्के  छुड़ा  दिए  l  यह  जीवन - मरण  का  युद्ध  है  , यह  सबको  पता  है  l  यह  सोचकर   सेनापति   बनने   पर   एक - एक  कर के  अपना  पराक्रम  प्रकट   करने  की  अपेक्षा  कर्तव्य बुद्धि  से  एक  साथ  पराक्रम  प्रकट  करते  तो  क्या  युद्ध  जीत  न  पाते  l "
   विदुर  जी  बोले ---- " राजन  ! आप  ठीक  कहते  हैं   l  वे  जीत  सकते   थे  यदि  अपने  कर्तव्य  को   ठीक  प्रकार  समझते  और  अपना  पाते,    परन्तु  अधिक  यश   अकेले  बटोर  लेने   की  तृष्णा  तथा  अपने  को  सर्वश्रेष्ठ   प्रदर्शित  करने  की   अहंता  ने   वह  कर्तव्य   सोचने  ,  उसे  निभाने  की  उमंग  पैदा  करने  का  अवसर  ही  नहीं  दिया   l  " 
   थोड़ा  रूककर   विदुर  जी  बोले  -----  राजन  !  उनके  इतना  न  सोच  पाने   और  न  जीत  पाने  का  दुःख  न  करें  l   उन्हें  तो  हारना  ही  था  l   कर्तव्य  समझे  बिना  जीत   का  लक्ष्य   नहीं  मिल  सकता   l   यदि  वे   कर्तव्य  को  महत्व  दे  पाते  तो  युद्ध  का  प्रश्न  ही   न  उठता  l   कर्तव्य  के  नाते    भाइयों   का    हक   देने  से उन्हें  किसने  रोका  था   l  स्वयं  युगपुरुष  श्री  कृष्ण  समझाने  आये  थे  ,  पर  तृष्णा  ऐसी  कि   पांच  गाँव  भी  न  छोड़े   l   अहंता  ने   न  पितामह  की  सुनी  ,  न  युगपुरुष  की   l  जिन  वृतियों  ने  युद्ध     पैदा  किया  ,  उन्होंने   हरा  भी  दिया   l  

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