17 July 2022

WISDOM ------

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं --- '  पिछले   दो    हजार  वर्ष  ऐसे  बीते  हैं     जिनमे  अनीति  ने , अनाचार  ने  अपनी  सभी  मर्यादाओं  का  उल्लंघन  किया  है   l  समर्थों  ने   असमर्थों  को   त्रास  देने  में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ी  l    संसार  में  अनाचार , अत्याचार  का  अस्तित्व  तो  है  ,  पर  उसके  साथ  ही  यह   विधान  भी  है   कि  सताए   जाने  वाले   बिना  हार -जीत   का  विचार  किए  प्रतिकार  के  लिए  तो  तैयार  रहें   l  दया , क्षमा  अदि  के  नाम  पर   अनीति  को  बढ़ावा  देना   सदा  से  अवांछनीय  माना  जाता  है   l '  आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- " जब  अनाचारी  अपनी  दुष्टता  से  बाज  नहीं  आते  हैं    और  पीड़ित  व्यक्ति  कायरता , भीरुता  अपनाकर   टकराने  की   नीति  नहीं  अपनाते  तो    अपनी  व्यवस्था  को  लड़खड़ाते  देख   ईश्वर  को  भी  क्रोध  आता  है   l  फिर  जो  मनुष्य  नहीं  कर  पाता   ,  उसे  ईश्वर  स्वयं  करने  के  लिए  तैयार  होता  है   l  "  आचार्य श्री  अपनी  पुस्तक  ' महाकाल  और  युग  प्रत्यावर्तन  -प्रक्रिया '  में  लिखते  हैं ----- " ' दक्ष '  को  देवाधिदेव  महादेव  ने  उसकी  कुमार्गगामिता   का  दंड  ,  उसका  मानवीय  सिर  काटकर  ,  बकरे  का  सिर  लगाकर  दिया  था   l  दक्ष  की  चतुरता  का  वास्तविक  रूप  यही  था   l  आज  भी  ' दक्षों  '  ने  --चतुरों  ने   यही  कर  रखा  है   l ----------- आज   का  मानवीय  चातुर्य  ,  जो  सुविधा - साधनों   के  अहंकार  में  अपनी  वास्तविक  राह  छोड़  बैठा  है  ,  वैसी  ही  दुर्गति  का  अधिकारी   बनेगा  ,  जैसा    दक्ष  का    सारा  परिवार  बना  था   l   "  आचार्य  श्री  लिखते  हैं --जब  भी  ऐसा  समय  आता  है    ईश्वर  संसार  की  बागडोर   अपने  हाथ  में  ले  लेते  हैं    और  न्याय  करते  हैं    l  "       मनुष्य  ही  अपनी  गलतियों  से  ईश्वर  को   सुदर्शन  चक्र  चलाने  और  तृतीय  नेत्र  खोलने  के  लिए  मजबूर  कर  देता  है   l   घोर  कलियुग  में  मनुष्य  अपने  एक  चेहरे  पर  कई  चेहरे  लगा  कर  रखता  है  ,  उसका  ' सत्य '  केवल   ईश्वर  ही  जानते  हैं  ,  इसलिए  ईश्वर  ही  न्याय  करते  हैं   l  

No comments:

Post a Comment