कहते हैं एक बार गोस्वामी तुलसीदास जी रात्रि को कहीं से लौट रहे थे कि सामने से कुछ चोर आते दिखाई दिए l चोरों ने तुलसीदास जी से पूछा --- " कौन हो तुम ? " तुलसीदास जी तो ईश्वर के परम भक्त थे और हर जीव को ईश्वर का अंश मानते थे , इस द्रष्टि से उन्होंने कहा ---" भाई ! जो तुम सो मैं l ' चोरों ने अपनी द्रष्टि से इसका अर्थ लगाया कि जैसे वे सब चोर हैं वैसे ही ये भी चोर हैं l इसलिए चोरों ने तुलसीदास जी को चोर मानते हुए कहा -- मालूम होता है तुम अभी नए निकले हो , चलो तुम भी हमारे साथ चोरी में साथ दो l तुलसीदास जी उनके साथ चल पड़े l चोरों ने उनसे कहा --- तुम घर के बाहर खड़े रहना , कोई आता -जाता दिखे तो हमें सावधान कर देना , जब तक हम कीमती सामान उठाते हैं l अभी चोरों ने अन्दर जाकर सामान खंगालना शुरू ही किया था तभी तुलसीदास जी ने अपनी झोली से शंख निकाला और बजाना शुरू कर दिया l चोरों ने शंख की आवाज सुनी तो डरकर बाहर निकल आए l बाहर तो और कोई नहीं था , चोरों ने तुलसीदास जी से कहा ---- " जब आसपास कोई नहीं है , फिर तुमने शंख क्यों बजाया ? " तुलसीदास जी ने कहा --- मुझे तो सर्वत्र [प्रभु श्रीराम दिखाई दिए , उन्होंने तुम लोगों को भी देख लिया होगा , चोरी करना पाप है प्रभु अवश्य दंड देंगे , इसलिए मैंने आप लोगों को सावधान करना उचित समझा l " चोर समझ गए कि ये तुलसीदास कोई चोर नहीं हैं , ये तो महात्मा हैं l उनकी बातों का चोरों पर ऐसा असर हुआ कि वे सब तुलसीदास जी के चरणों पर गिर पड़े और कहने लगे ---आपने हमारी आँखें खोल दीं l प्रभु ने न जाने कितनी बार हमें पापकर्म करते हुए देखा होगा l अब हम कभी कोई बुरा कर्म नहीं करेंगे l वे सब तुलसीदास जी के शिष्य बन गए और ईश्वर की भक्ति करने लगे l
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