11 May 2024

WISDIM --------

  कहते हैं  एक  बार  गोस्वामी  तुलसीदास जी   रात्रि  को  कहीं  से  लौट  रहे  थे   कि   सामने  से  कुछ  चोर  आते  दिखाई  दिए  l  चोरों  ने  तुलसीदास जी  से  पूछा  --- " कौन  हो  तुम  ? "  तुलसीदास जी  तो  ईश्वर  के  परम  भक्त  थे   और  हर  जीव  को   ईश्वर  का  अंश  मानते  थे  , इस  द्रष्टि  से  उन्होंने  कहा ---" भाई  !  जो  तुम  सो  मैं  l '  चोरों  ने  अपनी  द्रष्टि  से  इसका  अर्थ  लगाया  कि  जैसे  वे  सब  चोर  हैं  वैसे  ही  ये  भी  चोर  हैं  l  इसलिए  चोरों  ने  तुलसीदास जी  को  चोर  मानते  हुए   कहा  -- मालूम  होता  है   तुम  अभी  नए  निकले  हो  , चलो  तुम  भी  हमारे  साथ  चोरी  में  साथ  दो  l  तुलसीदास जी  उनके  साथ  चल  पड़े  l  चोरों  ने  उनसे  कहा  --- तुम  घर  के  बाहर  खड़े  रहना  ,  कोई  आता -जाता  दिखे  तो  हमें  सावधान  कर  देना  , जब  तक  हम  कीमती  सामान   उठाते  हैं  l  अभी  चोरों  ने  अन्दर  जाकर  सामान  खंगालना   शुरू  ही  किया  था   तभी  तुलसीदास जी  ने  अपनी  झोली  से  शंख  निकाला  और  बजाना  शुरू  कर  दिया  l  चोरों  ने  शंख  की  आवाज  सुनी  तो  डरकर  बाहर  निकल  आए  l  बाहर  तो  और  कोई  नहीं  था  , चोरों  ने  तुलसीदास जी  से  कहा ---- " जब  आसपास  कोई  नहीं  है  , फिर  तुमने   शंख   क्यों  बजाया  ? "   तुलसीदास जी  ने  कहा --- मुझे  तो  सर्वत्र  [प्रभु  श्रीराम  दिखाई  दिए  , उन्होंने  तुम  लोगों  को  भी  देख  लिया  होगा  ,  चोरी  करना  पाप  है  प्रभु  अवश्य  दंड  देंगे  ,  इसलिए  मैंने  आप  लोगों  को  सावधान  करना  उचित  समझा  l "    चोर  समझ  गए  कि  ये  तुलसीदास  कोई  चोर  नहीं  हैं  , ये  तो  महात्मा   हैं  l   उनकी  बातों  का  चोरों  पर  ऐसा  असर  हुआ   कि  वे  सब  तुलसीदास जी  के  चरणों  पर  गिर  पड़े   और  कहने  लगे   ---आपने  हमारी  आँखें  खोल   दीं  l  प्रभु  ने  न  जाने  कितनी  बार  हमें  पापकर्म  करते  हुए  देखा  होगा   l  अब  हम  कभी  कोई  बुरा  कर्म  नहीं  करेंगे  l  वे  सब  तुलसीदास जी  के  शिष्य  बन  गए   और  ईश्वर  की  भक्ति  करने  लगे  l  

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