एक बार महात्मा आनंद स्वामी के पास एक धनपति आए l उनके कई कारखाने थे , सभी पुत्र काम पर लगे थे l पत्नी का स्वर्गवास हो चुका था l वैभव का साम्राज्य था उनके पास , लेकिन उनके अंतर में शांति नहीं थी l भूख , नींद सब चली गई थी l सेठ जी ने अपनी यह व्यथा महात्मा जी को सुनाई l महात्मा आनंद स्वामी जी ने कहा ---- " आपने जीवन में कर्म और श्रम को तो महत्त्व दिया , पर भावना को नहीं l सत्संग , कथा श्रवण से तो विचारों को पोषण मिलता है l अन्दर की शुष्कता दूर करने के लिए अब प्रेम , धन और श्रम लुटाना शुरू कीजिए l सबको स्नेह दीजिए , अनाथों , निर्धनों के बीच जाइए , उन्हें स्वावलंबी बन सकने योग्य सहायता दीजिए , अपना शरीर श्रम भी जितना इस पुण्य कार्य में लगा सकें लगाइए l फिर देखिए आपकी भूख लौट आएगी तथा नित्य चैन की नींद सोएंगे l " सेठ जी ने ऐसा ही किया , फिर चमत्कारी परिवर्तन ने उन्हें जो शांति और प्रसन्नता दी , वह पहले कभी नहीं मिली थी l
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