श्री रामकृष्ण परमहंस कहते हैं ---- भक्त तीन तरह के होते हैं l एक तमोगुणी भक्त , जो आज बहुतायत में पाए जाते हैं l चिल्लाकर भगवन का नाम लिया , जप भी किया लेकिन फिर सस्ते मजाक किए , ठहाके लगाए , मनोरंजन और खान -पान में दिन गुजार दिया l एक रजोगुणी भक्त ---- बहुत सारे पूजा - उपचार , कर्मकांड करता है , दिखाता भी है , खरच भी करता है पर जीवन में अध्यात्म कम ही है l सतोगुणी भक्त सबसे ऊँचा है l वे ढेरों अच्छे काम करते हैं , पर उनका दंभ जरा भी नहीं करते l ढेरों पारमार्थिक कार्यों में उनकी भागीदारी है , पर उनका उन्हें अहं नहीं है , वे उसके बदले में कुछ चाहते नहीं हैं l वे तो मात्र प्रभु के विनम्र भक्त बने रहना चाहते हैं l ' ऐसे सात्विक भक्त ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित होते हैं l अपने किसी भी सुख के लिए वे संसार पर आश्रित नहीं होते , उनके लिए ' परमात्मा पर्याप्त है l ' ईश्वर के प्रति यह विश्वास हर प्रकार के तनाव को समाप्त कर देता है , व्यक्ति अंदर से संतुष्ट और आनंद में रहता है l ------- एक कथा है --- किसी चारण ने सम्राट की बहुत तारीफ की l उसकी प्रशंसाओं से सम्राट बहुत प्रसन्न हुए और उस चारण को सोने की बहुत सी मुहरें भेंट की l उस चारण ने उन मुहरों पर निगाह डाली तो अचानक से उसकी चेतना जाग गई , उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया , वे मुहरें फेंक दीं और नाचने लगा l अब वह चारण न रहा , संत हो गया l अब उसकी चेतना में कोई कामना न थी l कामना , प्रार्थना में परिवर्तित हो गई l बहुत वर्षों बाद किसी ने उससे पूछा --- ऐसा क्या था उन मुहरों में , क्या वे जादुई थीं ? संत ने कहा ---- वे मुहरें जादुई नहीं थी , उन पर लिखे वाक्य ने मेरी चेतना को झकझोर दिया , वह वाक्य था ---- ' जीवन की सभी आवश्यकताओं के लिए परमात्मा पर्याप्त है l ' जो इस सत्य को समझ जाते हैं उनके पास सब कुछ है , सारा ऐश्वर्य है l
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