21 May 2024

WISDOM ------

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " ईश्वर  ने  मनुष्य  को  अतुलनीय  संपदाओं  से  भरा-पूरा  जीवन  दिया  है   और  वह  सफल  तभी  हो  पाता  है  , जब  वह  संपदाओं  का  सदुपयोग  करना   जानता  है  l  यह  तभी  संभव  है  जब  मनुष्य  के  पास  विवेक  होगा , सद्बुद्धि  होगी  l  विवेक  असंभव  को  संभव   बनाता  है  l    एक  प्राचीन  कहानी  है ----- यूनान  में  एक  हमला  हुआ   और  एथेंस  के  सारे  प्रतिष्ठित  लोग  पकड़  लिए  गए  l  सौ  प्रतिष्ठित  लोगों  को   जंजीरों  में  बांधकर   बेड़ियाँ   पहनाकर  जंगलों  में  फेंकने  की  तैयारी  की  जाने  लगी  l  यह  सोचा  गया  कि  जंगली  जानवर  उन्हें  खा  लेंगे  l    उन  बेड़ियों  में  वहां  के  प्रतिष्ठित  लोहार  का  जोड़  था  l  वह  जोड़  आसानी  से   टूटता  नहीं  था  l  सैनिक  सभी  को  जंगल  की  ओर  ले  जा  रहे  थे  l  सभी  दुःखी   थे , रो  रहे  थे   l  उनमें  एक  लोहार  था  जो  गीत  गुनगुना  रहा  था  l  उनमें  से  एक  ने  पूछा ---- " तू  हँस  रहा  है  , पागल  हो  गया  है  ?  हम  मरने  की  तरफ  जा  रहे  हैं  , तू  होश  में  तो  है  ? "  लोहार  ने  कहा ---- " मैं  लोहार  हूँ  l  जीवन  भर  मैंने  जंजीरें  ही  बनाई  हैं  l  जो  बना  सकता  है  वह  मिटा  भी  सकता  है  l  घबराओ  मत  !  मैं  अपनी  जंजीरें  तोड़  लूँगा  , साथ  ही  तुम्हारी  भी  तोड़  दूंगा  l  तुम  चिंता  न  करो  l  एक  बार  इनको  हमें  फेंक  कर  जाने  दो  l  बस !  फिर  मैं  जंजीरें  तोड़  दूंगा  और  हम  सब   इन  जंजीरों  से  आजाद  हो  जाएंगे  l  l "  सब  में  हिम्मत  आ  गई  l  दुश्मन  उन्हें  जंगल  में  छोड़कर  भाग  गए  l  रात  होने  को  थी , जंगली  जानवरों  की  आवाज  आ  रही  थी  l  सब  लोग  घिसट   कर  लोहार  के  पास  इकट्ठे  होने  लगे  ,  सभी  को  उन जंजीरों  से  मुक्त  होने  की  चाह  थी  l  लेकिन  यह  क्या  ?  उन्होंने  देखा  कि  लोहार  तो  रो  रहा  है  l  उन्होंने  पूछा  --- "  क्या  हुआ  ?  अभी  तो  तुम  गीत  गा रहे  थे  ,  अब  तुम  रो  रहे  हो  l "  लोहार  ने  कहा --- "  ये  जंजीरें  नहीं  टूटेंगी  l   ये   तो   मेरी  ही  बनाई  हुई  हैं  , इन  पर  मेरे  हस्ताक्षर  हैं  l  इन्हें  कोई  भी  नहीं  तोड़  सकता  , मैं  भी   नहीं  l  इन्हें   तोड़ना    असंभव  है  l  "  अपनी  ही  बनाई  हुई  जंजीरों  में  वह  लोहार  भी  फँसा  रहा  ,  और  वे  सब  भी ,  कोई  भी  मुक्त  नहीं  हो  पाया  l    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं ---- ' लोहार  का  काम  अच्छा  था  , पर  असली  कुशलता  इसमें  है   कि  हम  यह  भी  जान  लें  कि  जो  जंजीरें  बनाई  हैं  , उन्हें  तोड़ना  कैसे  है  ?  हम  सब  लोभ , मोह , कामना , वासना , लालच  की  जंजीरों  से   स्वयं  ही  बंधे  हुए  हैं , ये  जंजीरें  ही  हमारी  समस्या  बन   जाती  हैं  l  इसका  एक  ही  समाधान  है ----- विवेक  !   विवेक  असंभव  को   संभव  करता  है  l  यदि  हमारे  पास  विवेक  होगा    तो   हम  जब  तक  चाहें  इन  सांसारिक  सुख  रूपी  जंजीरों  में  बंधे  भी  रहेंगे   और  जब  चाहेंगे  इनसे  मुक्त  भी  हो  सकेंगे  l  ' विवेक  ' जरुरी  है  l  श्रीमद भगवद्गीता  में  कहा  गया  है -- निष्काम  कर्म  से , सन्मार्ग  पर  चलने  से  मन  निर्मल  होता  है   फिर  हम  अपनी  आत्मा  की  आवाज  को  सुन  पाते  हैं  l  आत्मा  पवित्र  होती  है , आत्मा  ही  परमात्मा  है  ,  हमें  उसकी  आवाज  को  सुनने  की  जरुरत  है  l  

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