पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " ईश्वर ने मनुष्य को अतुलनीय संपदाओं से भरा-पूरा जीवन दिया है और वह सफल तभी हो पाता है , जब वह संपदाओं का सदुपयोग करना जानता है l यह तभी संभव है जब मनुष्य के पास विवेक होगा , सद्बुद्धि होगी l विवेक असंभव को संभव बनाता है l एक प्राचीन कहानी है ----- यूनान में एक हमला हुआ और एथेंस के सारे प्रतिष्ठित लोग पकड़ लिए गए l सौ प्रतिष्ठित लोगों को जंजीरों में बांधकर बेड़ियाँ पहनाकर जंगलों में फेंकने की तैयारी की जाने लगी l यह सोचा गया कि जंगली जानवर उन्हें खा लेंगे l उन बेड़ियों में वहां के प्रतिष्ठित लोहार का जोड़ था l वह जोड़ आसानी से टूटता नहीं था l सैनिक सभी को जंगल की ओर ले जा रहे थे l सभी दुःखी थे , रो रहे थे l उनमें एक लोहार था जो गीत गुनगुना रहा था l उनमें से एक ने पूछा ---- " तू हँस रहा है , पागल हो गया है ? हम मरने की तरफ जा रहे हैं , तू होश में तो है ? " लोहार ने कहा ---- " मैं लोहार हूँ l जीवन भर मैंने जंजीरें ही बनाई हैं l जो बना सकता है वह मिटा भी सकता है l घबराओ मत ! मैं अपनी जंजीरें तोड़ लूँगा , साथ ही तुम्हारी भी तोड़ दूंगा l तुम चिंता न करो l एक बार इनको हमें फेंक कर जाने दो l बस ! फिर मैं जंजीरें तोड़ दूंगा और हम सब इन जंजीरों से आजाद हो जाएंगे l l " सब में हिम्मत आ गई l दुश्मन उन्हें जंगल में छोड़कर भाग गए l रात होने को थी , जंगली जानवरों की आवाज आ रही थी l सब लोग घिसट कर लोहार के पास इकट्ठे होने लगे , सभी को उन जंजीरों से मुक्त होने की चाह थी l लेकिन यह क्या ? उन्होंने देखा कि लोहार तो रो रहा है l उन्होंने पूछा --- " क्या हुआ ? अभी तो तुम गीत गा रहे थे , अब तुम रो रहे हो l " लोहार ने कहा --- " ये जंजीरें नहीं टूटेंगी l ये तो मेरी ही बनाई हुई हैं , इन पर मेरे हस्ताक्षर हैं l इन्हें कोई भी नहीं तोड़ सकता , मैं भी नहीं l इन्हें तोड़ना असंभव है l " अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में वह लोहार भी फँसा रहा , और वे सब भी , कोई भी मुक्त नहीं हो पाया l पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' लोहार का काम अच्छा था , पर असली कुशलता इसमें है कि हम यह भी जान लें कि जो जंजीरें बनाई हैं , उन्हें तोड़ना कैसे है ? हम सब लोभ , मोह , कामना , वासना , लालच की जंजीरों से स्वयं ही बंधे हुए हैं , ये जंजीरें ही हमारी समस्या बन जाती हैं l इसका एक ही समाधान है ----- विवेक ! विवेक असंभव को संभव करता है l यदि हमारे पास विवेक होगा तो हम जब तक चाहें इन सांसारिक सुख रूपी जंजीरों में बंधे भी रहेंगे और जब चाहेंगे इनसे मुक्त भी हो सकेंगे l ' विवेक ' जरुरी है l श्रीमद भगवद्गीता में कहा गया है -- निष्काम कर्म से , सन्मार्ग पर चलने से मन निर्मल होता है फिर हम अपनी आत्मा की आवाज को सुन पाते हैं l आत्मा पवित्र होती है , आत्मा ही परमात्मा है , हमें उसकी आवाज को सुनने की जरुरत है l
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