इस धरती पर ही नहीं , देवलोक में भी इन्द्रासन के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा रहता है l अहंकार , अति की महत्वाकांक्षा , स्वार्थ , लालच सुख -भोग की लालसा ---- ऐसे अनेक कारण इन युद्धों के लिए उत्तरदायी हैं l त्रेतायुग , द्वापर युग में असुरों की एक पहचान थी l अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना के लिए युद्ध हुआ करते थे l उन युद्धों में कायरता नहीं थी , वे निर्दोष प्राणियों , महिलाओं , बच्चों , गर्भ में पल रहे बच्चों पर आक्रमण नहीं किया करते थे लेकिन अब असुरता लोगों के भीतर समा गई है , धर्म और अधर्म का भेद करना मुश्किल है l नैतिकता और मर्यादा अंधकार में खो गई है l अब पापकर्म कर के भी व्यक्ति ठप्पे से समाज में रहते हैं और सम्मान पाते हैं l अब देवत्व तो मुट्ठीभर हैं , असुरता सम्पूर्ण धरती पर व्याप्त है l इस युग में न्याय ' जिसकी लाठी उसकी भैंस ' है , ईश्वर के दरबार में भी अनेक कारणों से अपराधियों को दंड देने में बहुत देर लगती है , इस कारण असुरता को फलने -फूलने का पर्याप्त मौका मिल जाता है l धरती माँ , प्रकृति , सम्पूर्ण पर्यावरण इस असुरता से दुःखी है l
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