11 December 2025

WISDOM ------

  मनुष्य  के  जीवन  में  ' मौन  ' का  बहुत  महत्त्व  है  l  इमर्सन  कहते  हैं --- "  आओ  हम  चुप  रहें  , ताकि  फरिश्तों  के  वार्तालाप  सुन  सकें  l  "   पं . श्रीराम   शर्मा   आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " शांत  और  एकाग्र  मन  से  ही   ईश्वर  से  वार्तालाप  संभव  है  l  मौन  रहकर  ही   अपने  अन्तराल  में  उतरने  वाले  ईश्वर  के  दिव्य  संदेशों  , प्रेरणाओं  को  सुना  समझा  जा  सकता  है  l  "  मानव  जीवन  में  अनेक  समस्याएं  हैं  ,  इन  समस्याओं  का  कभी  अंत  नहीं  होता    क्योंकि  मनुष्य  इनके  समाधान   बाहर  खोजता  है   और  बाहर  के  संसार  में  स्वार्थ  है  , कामनाएं , वासना , लालच , अहंकार  सभी  बुराइयाँ   हैं   l  इन  बुराइयों , विकृतियों  से  घिरा  व्यक्ति  आपको  कभी  सच्चा  समाधान  दे  ही  नहीं  सकता  l  इसलिए  हमारे  आचार्य , ऋषियों  ने  कहा  है  --- यदि  समाधान  चाहिए  तो  उसे  अपने  भीतर  ही  खोजो  l  संसार  में  ऐसी  कोई  समस्या  नहीं ,  जिसका  समाधान  न  हो  l  यदि  अपने  प्रश्नों  का  उत्तर  चाहिए   तो  कुछ  समय  मौन  रहो  ,  सच्चे  ह्रदय  से  ईश्वर  को  पुकारो  ,  प्रत्येक  समस्या  का  समाधान अपने  भीतर  से  ही  आएगा  l  ईश्वर  हमें  कभी  स्वप्न  में या  किन्ही  भी   माध्यम  से  संकेत  देते  हैं   , जब   हमारा  मन  शांत  होगा  तभी  हम  उन  संकेतों  को  समझ  पाएंगे  ,  फिर  उन्हें   उन  संकेतों  को  समझकर  स्वीकार  करना , उसके  अनुरूप  आचरण  करना  हमारी  इच्छा  पर  निर्भर  करता  है  l  ---- महाभारत  का  महायुद्ध  होना  निश्चित  हो  गया  , उसे  रोकने  के  सारे  प्रयत्न  असफल  हो  गए  थे  l  महारथी  कर्ण   दुर्योधन   के  पक्ष  में  था  l   सूर्य  देव  को  अपने  पुत्र  की  चिंता  थी  ,  उस  समय  तक  कर्ण  स्वयं  को  सूत पुत्र  ही  समझता  था  l  लेकिन  पिता  तो  अपनी  संतान  को   नहीं    भूलते  l  एक  रात्रि   सूर्य  देव  कर्ण  के  स्वप्न  में  आए   और  उससे  कहा  ---- 'तुम्हारे  शरीर  पर  जन्मजात  कवच -कुंडल  है  ,  इन  कवच -कुंडल  के  रहते  किसी  भी  अस्त्र -शस्त्र  से  तुम्हारा  अहित  नहीं  होगा  l  कल  देवराज  इंद्र  तुमसे  यह  कवच -कुंडल  मांगने  आयेंगे ,  तुम उनकी  बातों  में  न  आना  l  मैं  जानता  हूँ  तुम  महादानी  हो  लेकिन  इन  कवच -कुंडल  का  दान  मत  करना  l  l इतना  कहकर  सूर्य देव  चले  गए  l    कर्ण  ने  उनकी  बात  नहीं  मानी   और  दूसरे  दिन  जब  ब्राह्मण  वेश  में   देवराज  इंद्र  उसके  पास  आए   तो  वह  यही  सोचकर  खुश  हुआ  कि  आज  स्वर्ग  उसके  द्वार पर  भिक्षा  मांगने  आया  है  ,  उसने  व्यवहारिक  पक्ष  को  समझा  ही  नहीं   और   बड़ी  प्रसन्नता  से   तलवार  से  अपने कवच -कुंडल  को  शरीर  से  अलग  कर  इंद्र  को  सौंप  दिया  l   यह  उसके  अंत  की   एक  और कील  थी  l   इसी  तरह  परम  पिता  परमेश्वर  हम  सभी  को   समय -समय  पर  विभिन्न  संकेत  देते  हैं  ,  हमें  जीवन  जीने  का  सही  मार्ग  सुझाते  हैं  l  ईश्वर  ने  हमें  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  ,  हम  सही  राह  चुने  या  खाई  में  गिरें , यह  हमारा चुनाव  है  l  आज  जब  घोर कलियुग  है  l  देवत्व  को  मिटाकर ,  असुरता  अपना साम्राज्य स्थापित  करने  को  बेताब  है  ,  ऐसे  में  सुरक्षा  का  एक  ही  मार्ग  है  ---- स्वयं  को  ईश्वर  के  प्रति  समर्पित  करें और  प्रार्थना  करें  कि  वे  हमें  सद्बुद्धि  दें  ताकि  हम  ईश्वर  के  दिए  संकेतों  को  समझ  कर    सही  मार्ग  का  चयन  करें  l  संसार  में  आकर्षण  का  मायाजाल  इतना  घना  है  कि  मनुष्य  उस  आकर्षण  के  पीछे  दिन -रात  भागता  है  l  जब  मौन  रहकर   ईश्वर  से  प्रार्थना  करते  हैं  उस  समय  यदि  पल  भर  के  लिए  भी   यह  माया  का   परदा  हट  जाए   तो   हमारी  आत्मा  , हमारा  ईश्वर  हम  से  क्या  कहना  चाहते  हैं  ,  उसे हम  समझ  सकते  हैं  l  

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