पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' कथनी और करनी का अंतर समाज की बहुत बड़ी विडंबना है l इस समय ऐसे बहुत से ऐसे शूरवीर मिलेंगे जो बातें तो बहुत बढ़ -चढ़ कर करते हैं , किन्तु जब कार्य को सिद्धांत रूप में अपनाने की बात आती है तो पीछे हट जाते हैं l महापुरुष वही होते हैं जो कहने से पहले किसी भी सिद्धांत को अपने जीवन में उतारते हैं l ऐसे महामानवों की वाणी में वह शक्ति आ जाती है कि वह दूसरों को जो भी उपदेश देते हैं , जनता उनकी बात मानती है l ' पर उपदेश कुशल बहुतेरे ' के अनुसार दूसरों को उपदेश देना बहुत सरल है , पर उस सिद्धांत पर आचरण करना बहुत कठिन है l --------- एक बालक मिठाई बहुत खाता था l उसकी यह आदत उसके स्वास्थ्य को बिगाड़ रही थी l बालक मानता ही नहीं था l उसकी माता उसे रामकृष्ण परमहंस के पास ले गई l उसे विश्वास था कि परमहंस जी के उपदेश से , उनकी शिक्षा से बालक की आदत सुधर जाएगी , उसके जीवन को सही दिशा मिलेगी l परमहंस जी ने उसे एक सप्ताह बाद आने को कहा l महिला चली गई l एक सप्ताह बाद वह पुन: बालक को लेकर उनके पास आई l परमहंस जी ने बालक को उपदेश दिया और समझाया तो बालक ने मिठाई छोड़ दी l महिला ने एक सप्ताह विलंब लगाने का कारण पूछा तो परमहंस जी ने कहा --- तब तो मैं स्वयं मिठाई खाता था l जब बालक को उपदेश देना आवश्यक प्रतीत हुआ , तो पहले मैंने स्वयं मिठाई छोड़ी , तब बालक को कहा l जो स्वयं करता है , उसी की शिक्षा का प्रभाव पड़ता है l
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