17 May 2024

WISDOM ------

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " संपदा  बाहर  भी  है  और   भीतर  भी  l   बाहर  की , द्रश्य , भौतिक  संपदा  मिलने  पर   उसका  खोना  सुनिश्चित  है  ,  लेकिन  भीतर  की  संपदा  मिल  जाने  पर  वह  सदा   बनी  रहती  है  l  उसे  पा  लेने  के  बाद   कुछ  और  पा  लेना  शेष  नहीं  रह  जाता  l  "  समय  कितना  बदल  गया   !   एक  समय  था  जब   ऋषि , मुनि   तपस्या , यम , नियम , साधना  आदि  के  द्वारा  आंतरिक  संपदा  के   धनी  थे , समृद्ध  थे  l  भौतिक  सुख -साधनों  की  उनकी  कोई  मांग  नहीं  थी  , उन्होंने  अपना  जीवन  संसार  के  कल्याण  में  और   मनुष्य  की  चेतना  को  कैसे  परिष्कृत  किया  जाए , इन  खोजों  में  व्यतीत  किया  था  l  लेकिन   अब  इस  वर्ग  के  लोग  केवल  बाना   पहनकर  स्वयं  को  आध्यात्मिक  दिखाते  हैं  , उनके  पास   आंतरिक    संपदा  नहीं   है  और  बाहरी  सुख - भोग  के  अपार  साधन  हैं  l  इसलिए  अब  वे  समाज  को  दिशा  नहीं  दे  पाते  बल्कि   शक्तिशाली  लोग  उन्हें  अपने  स्वार्थ  के  लिए  इस्तेमाल  कर  लेते  हैं  l  अपवाद  स्वरुप  प्राचीन  ऋषियों  की  श्रेणी  के  भी   हैं  लेकिन  उनकी  संख्या  बहुत  कम  है  l बुराई  ने  अच्छाई  को  ढक  दिया  है  l  ---- महर्षि  कणाद  केवल  अन्न  के  कण  बीनकर  अपनी  गुजर  कर  लेते  थे  l  राजा  को  जब  इस  बात  का  पता  चला  तो  उन्होंने  प्रचुत  धन सामग्री  उनके  पास  भेजी  l   मंत्री  सब  लेकर  पहुंचा  तो  महर्षि  ने  कहा --- "  मैं  सकुशल  हूँ  l  इस  धन  को  तुम  उन्हें  बाँट  दो  जिन्हें  इसकी  जरुरत  है  l "  ऐसा  तीन  बार  हुआ  , अंत  में  राजा  स्वयं  बहुत  सा  धनधन  लेकर  उनके  पास  पहुंचे  तो  महर्षि  ने  कहा ---- " देखो  मेरे  पास  तो  सब  कुछ  है  l  यह  धन  उन उन  लोगों  में  वितरित  कर  दो  जिनके  पास  कुछ  नहीं  है  l "   राजा  ने  चकित  होकर  महर्षि  को  देखा  कि  जिनके  तन  पर   केवल  एक  लंगोटी  है  और  कह  रहे  हैं  कि  उनके  पास  सब  कुछ  है  l  राजा  ने  महर्षि  से  कुछ  नहीं  कहा  लेकिन  महल  पहुंचकर  रानी  को   सब  कथा  कह  सुनाई  l  रानी  विवेकवान  थी  , उसने  कहा ---" आपने  भूल  की  l  जिनके  पास  भीतर  की  संपदा  है  ,  वे  ही  बाहर  की  संपदा   छोड़ने  में  समर्थ  होते  है  l  आप  महर्षि  को  कुछ  देने  नहीं , उनसे    अनमोल  ज्ञान  प्राप्त  करने  जाएँ  l"    रानी  की  बात  सुनकर   राजा  महर्षि  के  पास  गए  और  उनसे  ज्ञान  प्राप्त  कर  अपने  जीवन  को  सार्थक  किया   l   

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