एक बार एक जिज्ञासु आदि शंकराचार्य से मिलने पहुंचा l उसने शंकराचार्य जी से प्रश्न किया --- " दरिद्र कौन है ? " आचार्य शंकर ने उत्तर दिया --- " जिसकी तृष्णा का कोई पार नहीं है , वही सबसे बड़ा दरिद्र है l " उस जिज्ञासु ने पुन: प्रश्न किया ---- "धनी कौन है ? " शंकराचार्य बोले ---- " जो संतोषी है , वही धनि है l संतोष से बड़ा धन दूसरा नहीं है l " जिज्ञासु ने पुन: एक प्रश्न किया ---- " वह कौन है , जो जीवित होते हुए भी मृतक के समान है ? " उन्होंने उत्तर दिया --- " वह व्यक्ति जो उद्यमहीन है और निराश है , उसका जीवन एक जीवित मृतक के समान है l " पं . श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- 'आदि शंकराचार्य के ये वचन मनुष्य के आंतरिक उत्कर्ष के लिए बहुत मूल्यवान हैं l मनुष्य अनंत तृष्णाओं को पार करने के प्रयत्न में दरिद्रता को प्राप्त करता है और संतोष धन को पाते ही ऐसे खजाने का स्वामी हो जाता है , जो कभी चुक नहीं सकता l '
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