'जो दूसरों  की  भलाई  में  निरत  रहता  है, वह भगवान  की  ही  भक्ति  करता  है  | परोपकार  से  बढ़कर कोई  उपासना  नहीं  । यह  सरल  है, उत्तम  है  और  सुखदायक  है  ।   परोपकार  करने  में  आत्मा  की  प्रसन्नता  इतनी  बढ़  जाती  है  कि  रोमांच  हो  जाता  है  ।  भलाई   साक्षात्  परमात्मा  का  निराकार  रूप  है  ।
जिब्राइल का आमंत्रण पाकर हजरत मुहम्मद एक बार जन्नत गये । ऊँचे-ऊँचे स्वर्ण महल देखकर उन्हें बड़ी खुशी हुई, पर आश्चर्य भी कि सब खाली पड़े हैं । जिब्राइल से पूछा कि ये इतने भव्य भवन किनके लिये हैं ? उनने कहा---" जो कभी गुस्सा नहीं करते, कभी किसी का अपमान नहीं करते, हमेशा शांत रहते हैं, ऐसी पुण्य आत्माओं के लिये बनाएं गएँ हैं "
मुहम्मद साहब बोले --- 'तब ये सब खाली क्यों हैं ? "
जिब्राइल ने कहा ये सभी महापुरुष धरती पर रहते हैं । वे वहीँ जन्म लेकर वहीँ सेवा करना पसंद करते हैं । उनकी अंतिम आकांक्षा जन - जन का कल्याण होती है, जन्नत नहीं । इसलिए उनके भवन खाली हैं । "
जिब्राइल का आमंत्रण पाकर हजरत मुहम्मद एक बार जन्नत गये । ऊँचे-ऊँचे स्वर्ण महल देखकर उन्हें बड़ी खुशी हुई, पर आश्चर्य भी कि सब खाली पड़े हैं । जिब्राइल से पूछा कि ये इतने भव्य भवन किनके लिये हैं ? उनने कहा---" जो कभी गुस्सा नहीं करते, कभी किसी का अपमान नहीं करते, हमेशा शांत रहते हैं, ऐसी पुण्य आत्माओं के लिये बनाएं गएँ हैं "
मुहम्मद साहब बोले --- 'तब ये सब खाली क्यों हैं ? "
जिब्राइल ने कहा ये सभी महापुरुष धरती पर रहते हैं । वे वहीँ जन्म लेकर वहीँ सेवा करना पसंद करते हैं । उनकी अंतिम आकांक्षा जन - जन का कल्याण होती है, जन्नत नहीं । इसलिए उनके भवन खाली हैं । "
 
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